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साइंस न्यूज़

Solar Storm: धरती की ओर 21.85 लाख KM/घंटा की गति से आ रहा सौर तूफान

solar storm to hit earth
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कोलकाता स्थित द सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन स्पेस साइंसेज के वैज्ञानिकों ने 28 मार्च 2022 को सूरज में भयानक विस्फोट देखे. यानी कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejection - CME). इस विस्फोट से निकलने वाली सौर लहर 31 मार्च 2022 को धरती से टकराएगी. माना जा रहा है कि इस सौर लहर की गति 21.85 लाख किलोमीटर प्रति घंटा है. यानी धरती से काफी ज्यादा ऊर्जा के तीव्र प्लाज्मा किरणों का टकराव होने वाला है. (फोटोः NASA SDO)

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यह एक मध्यम दर्जे का सौर तूफान है. लेकिन यह धरती के चुंबकीय क्षेत्र को करीब 496 से 607 किलोमीटर प्रतिसेकेंड की गति से टकराएगा. द सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन स्पेस साइंसेज ( CESSI) कोलकाता के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER) की सह-संस्था है. CESSI के वैज्ञानिकों ने 28 को ही दो भयावह स्पॉट देखे हैं. उन्हें AR 12975 और AR12976 नाम दिया गया है. (फोटोः CESSI)

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ये दोनों स्पॉट एक्टिव हैं और M/X क्लास के सौर लहर पैदा कर रहे हैं. तीसरी लहर AR 12978 ज्यादा तेज है, यह X क्लास का तीव्र सौर लहर है. Cessi के फिजिसिस्ट प्रो. दिव्येंदु नंदी ने कहा कि इस सौर तूफान से इंसानों को घबराने की जरूरत नहीं है. साल 2019 से एक्टिव सोलर साइकिल शुरु हुआ है. अभी 11 सालों तक यह ऐसे ही सक्रिय रहेगा. इसकी तीव्रता 2025 में ज्यादा रहने की उम्मीद है. (फोटोः CESSI)

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प्रो. दिव्येंदु नंदी ने बताया कि जनवरी के महीने में ऐसी ही घटना घटी थी. तब सौर तूफान ने दक्षिणी भारत समेत दक्षिणी गोलार्ध के कई इलाकों पर असर डाला था. इस चित्र में जो हिस्सा पूरी तरह से लाल घेरे के अंदर है, वहां पर रेडियो ब्लैकआउट (Radio Blackout) होने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि इस फ्लेयर से ज्यादा नुकसान होने की आशंका नहीं है. लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. (फोटोः Cessi)

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जनवरी में आया सौर तूफान M Class का था. इससे किस तरह का नुकसान हुआ है, इसकी रिपोर्ट तो नहीं आई. कुछ देशों में इसकी जांच चल रही थी. लेकिन यह सौर तूफान सूरज के सक्रिय इलाके AR12929 से निकला था. यह इलाका सूरज और धरती की लाइन के ठीक सामने 71 डिग्री के कोण पर स्थित था. सौर तूफान को कोरोनल मास इजेक्शन (CME) कहते हैं. (फोटोः NASA SDO)

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प्रो. दिव्येंदु नंदी ने कहा कि 20 जनवरी 2022 को सौर तूफान ने सुबह साढ़े 11 बजे धरती को हिट किया. उस समय दक्षिण भारत उस तूफान के केंद्र में था. साथ ही ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा. सौर तूफान का असर ज्यादातर आउटर स्पेस में होता है. यानी हमारे वायुमंडल के ऊपर. क्योंकि हमारा वायुमंडल सूरज से आने वाले आवेषित कणों को रोक लेता है. वायुमंडल के ठीक ऊपर मौजूद आयनोस्फेयर की पतली परत पर इसका असर ज्यादा होता है. आमतौर पर उसी इलाके में या थोड़ा ऊपर नीचे सैटेलाइट्स चक्कर लगाते हैं. (फोटोः गेटी)

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आयनोस्फेटर से ही सिविल एविएशन, डिजास्टर मैनेजमेंट, डिफेंस, नेविगेशन आदि के लिए रेडियो वेव्स का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि आयनोस्फेयर में होने वाले दिक्कत से रेडियो वेव्स बिगड़ती हैं. इससे पहले भी सौर तूफान आए हैं. सबसे बड़ा डर ये है कि हमारे पास सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर डेटा बहुत कम है. इसलिए हम ये अंदाजा नहीं लगा सकते कि नुकसान कितना बड़ा होगा. दुनिया में सबसे भयावह सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों में बिजली सप्लाई बाधित हुई थी. ग्रिड्स फेल हो गए थे. कई राज्य घंटों तक अंधेरे में थे. (फोटोः गेटी)

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1859 में इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स नहीं थे, इसलिए उनपर असर नहीं हुआ लेकिन कम्पास का नीडल लगातार कई घंटों तक घूमता रहा था. जिसकी वजह से समुद्री यातायात बाधित हो गई थी. उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाली नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा बोरियेलिस (Aurora Borealis) को इक्वेटर लाइन पर मौजूद कोलंबिया के आसमान में बनते देखा गया था. नॉर्दन लाइट्स हमेशा ध्रुवों पर ही बनता है. (फोटोः गेटी)

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1989 में आए सौर तूफान की वजह से उत्तर-पूर्व कनाडा के क्यूबेक में स्थित हाइड्रो पावर ग्रिड फेल हो गया था. आधे देश में 9 घंटे तक अंधेरा कायम था. कहीं बिजली नहीं थी. पिछले दो दशकों से सौर तूफान नहीं आया है. सूरज की गतिविधि काफी कमजोर है. इसका मतलब ये नहीं है कि सौर तूफान आ नहीं सकता. ऐसा लगता है कि सूरज की शांति किसी बड़े सौर तूफान से पहले का सन्नाटा है. (फोटोः गेटी)

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