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साइंस न्यूज़

Arctic Sea Ice: आर्कटिक तेजी से खो रहा है बर्फ, बनेंगे इतने बादल कि आसमान काला हो जाएगा

Solid aerosols in arctic atmosphere
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आर्कटिक (Arctic) में तेजी से बर्फ पिघल रही है. आर्कटिक के बर्फीले सागर में बर्फ (Arctic Sea Ice) की मात्रा में तेजी से कमी आ रही है. इसकी वजह है ठोस एयरोसोल्स (Solid Aerosols). यहा आर्कटिक वायुमंडल (Arctic Atmosphere) में बस गया है. और यह भविष्य में बड़े खतरे की घंटी है. जो लगातार बज रही है. ये एयरोसोल आर्कटिक के वायुमंडल को गर्म करते जा रहे हैं. जो कई देशों के लिए डरावनी बात है. (फोटोः गेटी)

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जब आर्कटिक से बर्फ पिघलेगी तो ओपन वाटर ज्यादा मिलेगा. यानी सूरज की रोशनी को परावर्तित करने वाली बर्फ तो खत्म हो जाएगी. बचेगा सिर्फ पानी. यानी सूरज की गर्मी, प्रदूषण, ठोस एयरोसोल की वजह से ज्यादा गैसों का निर्माण होगा. समुद्र से हवा में ज्यादा एयरोसोल उत्सर्जन होगा. वायुमंडल तेजी से गर्म होता जाएगा और उसपर बादलों का निर्माण होता रहेगा. जिससे अथाह बारिश होगी. यह खुलासा किया है यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के वैज्ञानिकों ने. (फोटोः गेटी)

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एयरोसोल साइंटिस्ट केरी प्रैट ने आर्किटक के वायुमंडल से एयरोसोल कलेक्ट किया था. उनका साथ दे रही थीं डॉक्टोरल स्टूडेंट रशेल किर्प्स उनका साथ दिया था. जो नए कण मिले हैं...उसे एयोरसोलाइज्ड अमोनियम सल्फेट (Aerosolized Ammonium Sulfate) कहते हैं. लेकिन ये साधारण तरल एयरोसोल्स जैसे नहीं है. ये असल में ठोस है. इसे लेकर की गई स्टडी प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस (PNAS) में प्रकाशित हुई है. (फोटोः गेटी)

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ठोस एयरोसोल्स (Solid Aerosols) आर्कटिक में बादलों के निर्माण की प्रक्रिया को पूरी तरह से बदल सकते हैं. जैसे-जैसे आर्कटिक की बर्फ पिघलती जाएगी. वैसे-वैसे ये एयरोसोल्स तेजी से बढ़ेंगे. क्योंकि ये समुद्र के अंदर से उत्सर्जित साथ ही इसमें समुद्री पक्षियों का मल भी मिलता है. इस मल से अमोनिया समुद्र में मिलता है. फिर वहीं एयरोसोलाइज्ड अमोनियम सल्फेट बनकर हवा में मिलता है. (फोटोः गेटी)

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अगर दोनों ध्रुवीय इलाकों में इस तरह के एयरोसोल तेजी से बढ़ते रहे तो एक समय ऐसा आएगा कि वर्तमान मौसम और भविष्य के मौसम का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाएगा. केरी प्रैट ने कहा कि आर्कटिक का इलाका तेजी से गर्म हो रहा है. यह बात तो हाल ही में आई IPCC की रिपोर्ट में भी कही गई है. जितना ज्यादा उत्सर्जन इंसान करेंगे. उतना ही ज्यादा उत्सर्जन समुद्र से होगा. इसलिए एयोरसोलाइज्ड अमोनियम सल्फेट (Aerosolized Ammonium Sulfate) की स्टडी करना जरूरी हो जाता है. (फोटोः गेटी)

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केरी प्रैट ने कहा कि ठोस एयरोसोल्स (Solid Aerosols) की स्टडी करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह पूरे आर्कटिक वायुमंडल की वर्तमान स्थिति बता देता है. कई बार ये हैरान करने वाली डिटेल्स भी देता है. हमें जो एयरोसोल्स में मिले वो 400 नैनोमीटर्स के थे. यानी इंसान के बाल के व्यास से 300 गुना कम आकार के. आमतौर पर यह माना जाता है कि एयरोसोल्स तरल होते हैं. लेकिन आर्कटिक में एयरोसोल सॉलिड है. जो हैरान करता है. उसे स्टडी करने के लिए अपनी तरफ खींचता है. ये आर्कटिक के मौसम में भारी बदलाव रखने का माद्दा रखता है. (फोटोः गेटी)

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एक बार जब वायुमंडल की सापेक्षिक नमी (Relative Humidity) 80 फीसदी तक पहुंच जाती है, तब एयरोसोल के कण तरल हो जाते हैं. अगर आप एयरोसोल को सुखाना चाहे तो वह तुरंत सॉलिड यानी ठोस नहीं होता. यह तब तक नहीं होता जब तक सापेक्षिक नमी वापस से 35 से 40 फीसदी नहीं हो जाती. क्योंकि किसी भी समुद्र के ऊपर हवा नमीदार होती है. इसलिए वैज्ञानिकों को तरल एयरोसोल मिलने की ज्यादा उम्मीद होती है. (फोटोः गेटी)

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लेकिन यहां पर वैज्ञानिकों ने नए प्रकार की रासायनिक प्रक्रिया देखी. नए एयरोसोल कण पानी की बूंदों से टकरा रहे थे. उस समय सापेक्षिक नमी 80 फीसदी से कम और 40 फीसदी से ज्यादा थी. इसकी वजह से एयरोसोल को सॉलिड बनने के लिए एक प्लेटफॉर्म मिल गया. वह भी ज्यादा सापेक्षिक नमी के दौरान. यही बात वैज्ञानिकों को हैरान कर रही है. क्योंकि ये कण बूंदों के साथ मिलकर मार्बल की तरह ठोस हो जा रहे हैं. साथ ही ये बादलों के निर्माण के लिए बीज का काम कर रहे हैं. (फोटोः गेटी)

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यह बात भी ध्यान में रखनी होगी कि ऐसे एयरोसोल मार्बल कणों के आकार, मिश्रण और वायुमंडलीय प्रकृति की वजह से जलवायु परिवर्तन होने की आशंका बहुत ज्यादा रहती है. केरी प्रैट और उनकी टीम ने अलास्का के सबसे ऊपरी इलाके उतकियागविक से सैंपल जमा किया था. इसके लिए उन्होंने मल्टीस्टेज इम्पैक्टर (Multistage Impactor) नाम के यंत्र का उपयोग किया था. यह कई स्टेज में एयरोसोल कणों को कैप्चर करता है. (फोटोः गेटी)

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इसके बाद इन कणों की जांच कई तरह की माइक्रोस्कोपी और स्पेक्ट्रोस्कोपी के जरिए की गई. उनके मिश्रण की जांच की गई. तब पता चला कि उनमें 100 नैनोमीटर जितने अत्यधिक सूक्ष्म कण भी मौजूद हैं.  पहले हमें तटों के किनारे तक बर्फ मिल जाती थी. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसा नहीं है. हमें यह समझना होगा कि आर्कटिक कितना जरूरी है इंसानों के जीवन के लिए. यह खत्म होगा तो पूरी दुनिया पर इसका बुरा असर पड़ेगा. (फोटोः गेटी)

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