सूरज इस समय सक्रिय है. उसके चारों तरफ इस समय करीब 111 सनस्पॉट्स यानी सौर धब्बे हैं. सारे सक्रिय है. लेकिन सब विस्फोट नहीं कर रहे हैं. इनमें से कुछ ही विस्फोट कर रहे हैं. यानी सौर लहरें फेंक रहे हैं. चुंकि लहरें और सौर तूफान धरती की तरफ नहीं थे, इसलिए इन लहरों का असर नहीं हुआ. यहां किसी तरह का जियोमैग्नेटिक तूफान नहीं आया. अगर यह तूफान धरती पर आता तो संचार, बिजली ग्रिड की सप्लाई बिगड़ जाती. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर अरोरा का निर्माण होता. (फोटोः गेटी)
स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में हेलियोसीस्मोलॉजी विभाग के एस्ट्रोनॉमर जुनवी झाओ ने कहा कि 15 फरवरी का विस्फोट अत्यधिक बड़ा था. यह साल 2017 सितंबर के बाद रिकॉर्ड की गई सबसे बड़ी सौर लहर थी. लेकिन यह ऐसा इलाका है, जिसके सामने धरती अक्सर पड़ती है. भविष्य में ऐसी तेज लहरें धरती की तरफ आ सकती हैं. सौर एक्टिविटी पर नजर रखने वाले स्पेसवेदरलाइव के मुताबिक सूरज फरवरी महीने में हर दिन लहरें फेंक रहा है. किसी-किसी दिन तो कई लहरें देखने को मिल रही है. (फोटोः Karl Battams/Twitter)
HOW ABOUT THAT CME??!!! 😳😱😍 pic.twitter.com/HyulxmGUfW
— Karl Battams (@SungrazerComets) February 16, 2022
इनमें M Class की ताकतवर फ्लेयर्स भी शामिल हैं. 12 फरवरी को M1.4 की फ्लेयर, 14 फरवरी को M1 और 15 फरवरी को M1.3 की फ्लेयर. जनवरी में भी M क्लास की पांच फ्लेयर्स देखने को मिली थीं. एक हल्के जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म ने SpaceX के 40 नए Starlink Satellites को नष्ट कर दिया था. यह एक M क्लास की सौर लहर थी. यह बात 29 जनवरी की है. सौर लहर को धरती पर पहुंचने में कुछ दिन लगते हैं, यह निर्भर करता है उसकी गति और तीव्रता पर. (फोटोः SpaceWeatherLiver)
दिसंबर 2019 तक सूरज सोलर मिनिमम में था. यानी हर 11 साल में इसकी साइकिल बदलता है. यह 11 साल के अंतर पर सक्रिय और ठंडा होता है. दिसंबर 2019 के बाद से इसका सोलर मैक्सिमम (Solar Maximum) शुरु हो गया है. यह तब होता है जब सूरज की मैग्नेटिक फील्ड हर ग्यारह साल में उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ आती है. मिनिमम में सूरज के ऊपर कम सनस्पॉट दिखते हैं. मैक्सिमम में ज्यादा सनस्पॉट दिखते हैं. ज्यादा सनस्पॉट यानी ज्यादा सौर लहरें और ज्यादा सौर तूफान. (फोटोः SpaceWeatherLive)
Our Sun got angry for a moment yesterday just before midnight UTC. A prominence eruption (maybe combined with a powerful flare?) launched a massive CME into space. While not earth-directed, the eruption was huge and could signal there might be something interesting on its way... pic.twitter.com/z0fhjNp5mO
— SpaceWeatherLive (@_SpaceWeather_) February 16, 2022
अभी 20 जनवरी 2022 को दक्षिण भारत समेत दक्षिण पूर्व एशिया में सौर तूफान ने हिट किया है. यह M Class का तूफान था. इससे किस तरह का नुकसान हुआ है, इसकी रिपोर्ट तो नहीं आई है. कुछ देशों में इसकी जांच चल रही है. लेकिन यह सौर तूफान सूरज के सक्रिय इलाके AR12929 से निकला था. यह इलाका सूरज और धरती की लाइन के ठीक सामने 71 डिग्री के कोण पर स्थित था. सौर तूफान को कोरोनल मास इजेक्शन (CME) कहते हैं. (फोटोः गेटी)
सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन स्पेस साइंसेस इंडिया (Cessi) के वैज्ञानिकों ने कोरोनल मास इजेक्शन की गणना की है. साथ ही यह दक्षिण भारत समेत किस इलाके को हिट कर रहा है, उसका अंदाजा भी लगाया था. इस चित्र में जो हिस्सा पूरी तरह से लाल घेरे के अंदर है, वहां पर रेडियो ब्लैकआउट (Radio Blackout) होने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि इस फ्लेयर से ज्यादा नुकसान होने की आशंका नहीं है. लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. (फोटोः Cessi)
Cessi के फिजिसिस्ट प्रो. दिव्येंदु नंदी ने aajtak.in से खास बातचीत में कहा था कि इस सौर तूफान से इंसानों को घबराने की जरूरत नहीं है. हो सकता है कि इस सौर तूफान का असर संभवतः दक्षिण-पूर्व एशियन सेक्टर संचार प्रणाली, दक्षिणी हिंदा महासागर में जीपीएस और कुछ देशों की सैटेलाइट्स पर पड़ा हो. लेकिन इसका डेटा अभी तक सामने नहीं आया है. जिनके संचार या नेविगेशन पर असर पड़ा होगा, वो इस बात को जानते होंगे. (फोटोः Cessi)
प्रो. दिव्येंदु नंदी ने कहा कि 20 जनवरी 2022 को सौर तूफान ने सुबह साढ़े 11 बजे धरती को हिट किया. उस समय दक्षिण भारत उस तूफान के केंद्र में था. साथ ही ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण-पूर्व एशिया का हिस्सा. प्रो. नंदी ने बताया कि सौर तूफान का असर ज्यादातर आउटर स्पेस में होता है. यानी हमारे वायुमंडल के ऊपर. क्योंकि हमारा वायुमंडल सूरज से आने वाले आवेषित कणों को रोक लेता है. वायुमंडल के ठीक ऊपर मौजूद आयनोस्फेयर की पतली परत पर इसका असर ज्यादा होता है. आमतौर पर उसी इलाके में या थोड़ा ऊपर नीचे सैटेलाइट्स चक्कर लगाते हैं. (फोटोः गेटी)
प्रो. नंदी ने बताया कि वहीं से सिविल एविएशन, डिजास्टर मैनेजमेंट, डिफेंस, नेविगेशन आदि के लिए रेडियो वेव्स का इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि आयनोस्फेयर में होने वाले दिक्कत से रेडियो वेव्स बिगड़ती हैं. हो सकता है कि जो चित्र में इलाका दिखाई दे रहा है, उसके ऊपर रेडियो वेव्स पर असर हो. लेकिन इसे लेकर हमारी संस्था या हम लोगों के पास कहीं से फिलहाल कोई रिपोर्ट नहीं आई है. ऐसे नुकसान की गणना करने के लिए हमारे पास नेटवर्क नहीं है. अमेरिका में ऐसी गणना के लिए ग्राउंड बेस्ड नेटवर्क है. (फोटोः गेटी)
इससे पहले भी सौर तूफान आए हैं. सबसे बड़ा डर ये है कि हमारे पास सौर तूफान और उससे पड़ने वाले असर को लेकर डेटा बहुत कम है. इसलिए हम ये अंदाजा नहीं लगा सकते कि नुकसान कितना बड़ा होगा. दुनिया में सबसे भयावह सौर तूफान 1859, 1921 और 1989 में आए थे. इनकी वजह से कई देशों में बिजली सप्लाई बाधित हुई थी. ग्रिड्स फेल हो गए थे. कई राज्य घंटों तक अंधेरे में थे. (फोटोः गेटी)
1859 में इलेक्ट्रिकल ग्रिड्स नहीं थे, इसलिए उनपर असर नहीं हुआ लेकिन कम्पास का नीडल लगातार कई घंटों तक घूमता रहा था. जिसकी वजह से समुद्री यातायात बाधित हो गई थी. उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाली नॉर्दन लाइट्स यानी अरोरा बोरियेलिस (Aurora Borealis) को इक्वेटर लाइन पर मौजूद कोलंबिया के आसमान में बनते देखा गया था. नॉर्दन लाइट्स हमेशा ध्रुवों पर ही बनता है. (फोटोः गेटी)
1989 में आए सौर तूफान की वजह से उत्तर-पूर्व कनाडा के क्यूबेक में स्थित हाइड्रो पावर ग्रिड फेल हो गया था. आधे देश में 9 घंटे तक अंधेरा कायम था. कहीं बिजली नहीं थी. पिछले दो दशकों से सौर तूफान नहीं आया है. सूरज की गतिविधि काफी कमजोर है. इसका मतलब ये नहीं है कि सौर तूफान आ नहीं सकता. ऐसा लगता है कि सूरज की शांति किसी बड़े सौर तूफान से पहले का सन्नाटा है. (फोटोः गेटी)