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साइंस न्यूज़

दूसरे के मल से होगा आपका इलाज, तेजी से बढ़ रहा है 'मल दान' का ट्रेंड

Super Poo stool transplant
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नेत्रदान, रक्तदान, अंगदान, शरीरदान के बाद अब एक नया दान ट्रेंड में है, इसे कहते हैं मल दान (Poo Donation). इसकी डिमांड इसलिए बढ़ी है क्योंकि इससे आंत संबंधी बीमारियों का नया इलाज किया जा रहा है. दान में आने वाले मल (Poo or Stool) को सुपर पू कहा जा रहा है. दानदाताओं को 'गुड पू डोनर्स' कहा जा रहा है. यानी दूसरे के उच्च गुणवत्ता वाले मल से आपकी आंतों की बीमारियों का इलाज होगा. साथ ही डिजाइनर गट बैक्टीरिया बनाने के काम आता है, ताकि लोगों को पेट संबंधी बीमारियों से ठीक किया जा सके.  (फोटोः गेटी)

Super Poo stool transplant
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'गुड पू डोनर्स' को यूनिकॉर्न्स कहा जा रहा है, क्योंकि इन्हें खोजना बेहद मुश्किल होता है. अच्छे मल के दान से बहुत से लोग फीकल ट्रांसप्लांट (Faecal Transplant) यानी मल प्रत्यारोपण करवा रहे हैं. इस नए ट्रेंड की वजह से इंसानी माइक्रोबायोम यानी आंतों के माइक्रोब्स पर नए अध्ययन हो पा रहे हैं. आंतों के माइक्रोब्स यानी आंतों के बैक्टीरिया में बदलाव करके इंसानों की सेहत को सुधारा जा रहा है.  (फोटोः गेटी)

Super Poo stool transplant
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आंतों के माइक्रोब्स यानी बैक्टीरिया सिर्फ खाना पचाने और पाचन क्रिया से संबंधित काम नहीं करते. बल्कि यह आपके मूड को सही रखने, प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सही रखने में मदद करते हैं. दिक्कत ये है कि पश्चिमी भोजन की परंपरा यानी फास्ट फूड और एंटीबायोटिक्स हमारे माइक्रोबायोटा (Microbiota) को बिगाड़ रहे हैं. माइक्रोबायोटा यानी आंतों में मौजूद सूक्ष्म बैक्टीरिया की दुनिया.  (फोटोः गेटी)

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कई बार तो ऐसा भी होता है कि कुछ लोगों का माइक्रोबायोम इतना बिगड़ जाता है कि उसे ठीक करने के लिए लोगों को दूसरे के मल की जरूरत होती है. अब आप सोच रहे होंगे कि दूसरे के शरीर से निकला मल हमारी मदद कैसे कर सकता है. अगर कोई स्वस्थ इंसान अपने उच्च गुणवत्ता का मल दान करता है, जिसका प्रत्यारोपण यानी ट्रांसप्लांट आपके शरीर में किया जाता है तो उसके ताकतवर बैक्टीरिया हमारे शरीर को सुधारने में मदद करते हैं. हमारी बीमारियों को ठीक करने या बीमारियों से बचाने में मददगार होते हैं.  (फोटोः गेटी)

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अगर किसी स्वस्थ इंसान के उच्च गुणवत्ता वाले मल का प्रत्यारोपण अस्वस्थ इंसान की आंतों और पेट में किया जाता है तो इससे कई तरह की बीमारियां ठीक हो सकती हैं. जैसे- क्लॉसट्रिड्रियम डिफिसिल कोलाइटिस या सी डिफ. इसकी वजह से ही डायरिया, सेप्सिस और मौत तक हो सकती है. लेकिन अगर सही मल आपकी आंतों में डाल दिया जाए तो आप कई तरह की बीमारियों से मुक्त हो सकते हैं. मल डालने का मतलब है फीकल ट्रांसप्लांट या स्टूल ट्रांसप्लांट.  (फोटोः गेटी)

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एडिलेड स्थित बायोमबैंक के चीफ मेडिकल ऑफिसर सैम कोस्टेलो और चीफ एक्जीक्यूटिव थॉमस मिशेल ऐसे ही स्वस्थ लोगों को खोज रही है, जिनसे उच्च गुणवत्ता का मल हासिल किया जा सके. यानी लोग अपना मल दान करें. फिर इस मल को बायोमबैंक अपनी प्रयोगशाला में संवर्धित करके उसे प्रत्यारोपण के लायक बना देती है. ताकि जब किसी अस्वस्थ इंसान की आंतों में यह मल डाला जाए तो उसकी बीमारियां ठीक की जा सकें. (फोटोः बायोमबैंक)

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इस काम के लिए बायोमबैंक में एक शानदार टॉयलेट बनाया गया है. लोगों का मल यहां से सीधे लैब की मशीन में जाता है. वहां उसके बेहतरी और अच्छे बैक्टीरिया को निकाला जाता है. उन्हें कंपनी अपनी सीक्रेट थैरेपी से और ज्यादा बेहतर बनाती है. इसके बाद अलग-अलग बीमारियों को ठीक करने के लिए मल और उसके बैक्टीरिया में रसायनों को मिलाया जाता है, जिससे बैक्टीरिया की ताकत बढ़ जाती है. फिर उसे अलग-अलग सीरिंज में भरकर रख दिया जाता है. (फोटोः बायोमबैंक)

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मल दान से मिले सैंपल की जांच इस संस्था की एक्सपर्ट डॉ. एमिली टकर करती हैं. हम किसी व्यक्ति से उसका मल लेने से पहले कई तरह की जांच करते हैं. जब यह पुख्ता हो जाता है कि उसे किसी तरह का संक्रमण या बीमारी नहीं है, तब हम उसका मल लेते हैं. इस दौरान हम उसकी मेडिकल हिस्ट्री, ट्रैवल हिस्ट्री और एंटीबायोटिक हिस्ट्री की भी जांच करते हैं. जो लोग मलदान करना चाहते हैं, उनके लिए हमारे पास 8 हफ्ते का कार्यक्रम है. (फोटोः गेटी)

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सैम कोस्टेलो कहते हैं कि इंसान इकलौता ऐसा जीव है, जिसके शरीर में बैक्टीरिया का अथाह भंडार है. इनमें इतनी विभिन्नताएं हैं, जिनकी कल्पना नहीं की जा सकतीं. कई बैक्टीरिया के बारे में तो अभी अध्ययन भी नहीं पाया है. इंसान ही कई तरह के खाद्य सामग्रियों को खाता है, जो अलग-अलग होते हैं. इसलिए उसके शरीर की आंतों और मल में लाखों तरह के बैक्टीरिया मौजूद होते हैं.  (फोटोः गेटी)

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सैम कोस्टेलो ने बताया कि हम जिस तरह से खा-पी रहे हैं, हमारे समय में माइक्रोबियल एक्सटिक्शंन हो रहा है. यानी माइक्रोब्स खत्म होते जा रहे हैं. अगर ये खत्म हो गए तो हमारा शरीर भी खत्म हो जाएगा. कई तरह की बीमारियां पैदा होंगी. इसलिए शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी है कि शरीर में सही बैक्टीरिया मौजूद रहे. इसलिए अगर किसी की बीमारियों को दूसरे के मल से ठीक किया जा सकता है तो उससे कोई दिक्कत नहीं है.  (फोटोः गेटी)

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