1900 के बाद से, पृथ्वी की सतह के औसत वायु तापमान में करीब 1°C की वृद्धि हुई है. ज्यादातर वृद्धि 1970 के दशक के मध्य से हो रही है. इस बात के सबूत थर्मामीटर देते आ रहे हैं. आज, दुनिया भर में हजारों जगहों पर, जमीन और समुद्र के ऊपर सतह के तापमान को मॉनिटर किया जाता है. बताया गया है कि हाल के दशक पिछले 2,000 सालों में सबसे गर्म रहे हैं. (Photo: Unsplash)
बात अगर समुद्र के तापमान की हो, तो समुद्र की ऊपरी परत भी गर्म हो गई है. 1960 के दशक से अब तक समुद्र का ऊपरी 6,560 फीट (2,000 मीटर) हिस्सा काफी गर्म हुआ है. ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) की वजह से आर्कटिक की समुद्री बर्फ अचानक से काफी सिकुड़ गई है. (Photo: Unsplash)
उत्तरी गोलार्ध (Northern Hemisphere) में बर्फ़ का आवरण कम हो रहा है. ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिक (Greenland and West Antarctic) की बर्फ की चादरें सिकुड़ रही हैं. समुद्र में पानी बढ़ने, ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है. गर्म हवा लगातार बढ़ रही हैं और तीव्र हो रही हैं. कोल्ड स्नैप्स और बेहद ठंडा तापमान अक्सर कम होता है. (Photo: Unsplash)
अगर समुद्र के स्तर में वृद्धि की बात करें, तो 1900 के बाद से, वैश्विक औसत समुद्र का स्तर लगभग 8 इंच बढ़ गया है. ऐसा, गर्म हो रहे महासागर, ग्लेशियरों, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों के पिघलने से हो रहा है. इसी वजह से तटीय शहरों को तूफान और बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है. ये घटनाएं अर्थव्यवस्थाओं को भी प्रभावित करती हैं. (Photo: Unsplash)
ग्लोबल वार्मिंग और बारिश में बदलाव के चलते, कई पौधों और जानवरों की प्रजातियों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है. उदाहरण के लिए, गर्म तापमान के प्रति संवेदनशील भूमि-आधारित प्रजातियां, ध्रुवों के करीब या अधिक ऊंचाई वाली जगहों पर जा रही हैं. जलवायु परिवर्तन से आक्रामक प्रजातियां ज्यादा आसानी से फैल रही हैं, जिससे कभी-कभी ईकोसिस्टम में बदलाव होते हैं. अन्य मामलों में, प्रजातियां असामान्य तरीके से पलायन कर रही हैं या फूल असमय खिल रहे हैं. (Photo: Pixabay)
वातावरण में CO2 और अन्य ग्रीनहाउस गैसों (Greenhouse Gases) में वृद्धि हो रही है. 1800 के दशक के मध्य से, वैज्ञानिकों का पता चला है कि CO2 पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन को प्रभावित करने वाली मुख्य ग्रीनहाउस गैसों में से एक है. वायुमंडलीय CO2 में 1800 से 2019 तक लगभग 45% की वृद्धि हुई है. अन्य ग्रीनहाउस गैसें, खासकर मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड भी बढ़ रही हैं. (Photo: AP)
वैश्विक वायुमंडलीय CO2 की सांद्रता अब 400 भाग प्रति मिलियन से ज्यादा है. यह वो स्तर है जो पिछली बार करीब 30 लाख साल पहले था, जब वैश्विक औसत तापमान और समुद्र स्तर दोनों आज की तुलना में काफी ज्यादा थे. वातावरण में बढ़ते कार्बन डाइऑक्साइड के लिए मानवीय गतिविधियां जिम्मेदार हैं. लंबे समय से दबे हुए जीवाश्म ईंधन को हटाने और ऊर्जा के लिए उन्हें जलाने से CO2 निकलती है. वनों की कटाई और भूमि के अन्य उपयोगों से भी वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ी है. (Photo: Unsplash)
प्राकृतिक सहित सभी प्रमुख जलवायु परिवर्तन विनाशकारी हैं. पिछले जलवायु परिवर्तन की वजह से कई प्रजातियों विलुप्त हो गईं, जनसंख्या के पलायन और भूमि की सतह और समुद्र में अहम बदलाव हुए. वर्तमान जलवायु परिवर्तन की गति पिछली ज्यादातर घटनाओं की तुलना में तेज है. (Photo: Unsplash)
पिछले हिमयुग के खत्म होने के बाद से वैश्विक तापमान में 4 से 5°C की वृद्धि हुई है. यह बदलाव करीब 7,000-18,000 साल की अवधि में हुए. वर्तमान गति से चलने पर 21वीं सदी के अंत तक पृथ्वी के उतना ही गर्म होने की उम्मीद है. वार्मिंग की यह गति, हिमयुग के अंत में देखी गई गति से 10 गुना ज्यादा है. (Photo: Unsplash)
ग्लोबल वार्मिंग में केवल कुछ डिग्री का बदलाव ही क्षेत्रीय और स्थानीय तापमान, बारिश में बदलाव के साथ-साथ मौसम में कुछ असाधारण बदलाव ला सकता है. इस तरह के बदलाव जैसे समुद्र के स्तर में वृद्धि और तूफानों का बढ़ना, मानव समाज और प्राकृतिक दुनिया पर गंभीर असर डालेंगे. जैसे- खाद्य उत्पादन पर असर, मीठे पानी का न मिलना, तटीय बुनियादी ढांचों में बदलाव, मानव स्वास्थ्य और खासरकर निचले इलाकों में रहने वाली विशाल आबादी को खतरा हो सकता है. (Photo: Unsplash)
भविष्य में पृथ्वी की जलवायु गर्म बनी रहेगी. वार्मिंग की मात्रा वातावरण में जमा होने वाली CO2 और अन्य ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा पर निर्भर करती है. अगर CO2 उत्सर्जन अपनी वर्तमान गति से बढ़ना जारी रखता है, तो वैश्विक औसत सतह का तापमान 2100 तक, 2.6 से 4.8 °C बढ़ जाएगा. (Photo: Unsplash)
अगर हम कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने या वातावरण से कार्बन हटाने के लिए कदम उठाते हैं, तो कम वार्मिंग की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि, भले ही ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन अचानक बंद हो जाए, लेकिन पृथ्वी की सतह का तापमान ठंडा नहीं होगा और हजारों सालों के लिए पूर्व-औद्योगिक युग के स्तर पर वापस आ जाएगा. (Photo: Pixabay)
What is the evidence that #climatechange is occurring on the planet? From shrinking sea ice, to decreasing snow cover in the Northern hemisphere, to more frequent and intense heatwaves, #TheScienceBehindIt says Earth’s climate is changing. Read more: https://t.co/Mp4uhqEUks pic.twitter.com/qLYA7F28as
— National Academies (@theNASEM) May 20, 2022