इंसानों को एक ऐसे अनजान पूर्वज के बारे में पता चला है जो भालुओं की तरह चलते थे. हमेशा नहीं लेकिन जरूरत पड़ने पर वो भालुओं की तरह अपने पिछले पैरों की मदद से चलते या दौड़ते थे. इंसानों के ये अनजान पूर्वज उसी समय के हैं, जिस समय तंजानिया में लूसी नाम की प्रसिद्ध इंसानी पूर्वज का पता चला था. हाल ही में की गई एक स्टडी में यह हैरतअंगेज खुलासा हुआ है. जिसका आधार प्राचीन पैरों के निशान यानी फुटप्रिंट्स हैं. (फोटोः गेटी)
इंसानों के चलने के सबसे पुराने निशान तंजानिया (Tanzania) के लेटोली (Laetoli) में 1978 में मिले थे. पत्थरों पर बने इन पैरों के निशान करीब 36.60 लाख साल पुराने हैं. पुराने रिसर्च बताते हैं कि ये निशान इंसानों के पूर्वज ऑस्ट्रेलोफिथेकस अफरेनसिस (Australopithecus afarensis) के हैं. उन्हें इंसानों के पूर्वजों की प्रमुख सूची में शामिल किया गया था. जबकि, लूसी (Lucy) नाम की इंसानी पूर्वज 32 लाख साल पहले धरती पर मौजूद थी. (फोटोः ऑस्टिन सी हिल/कैथरीन मिलर)
लेटोली में मिले पांव के निशानों को लेटोली-ए ट्रैक्स (Laetoli-A tracks) नाम दिया गया था. जिनकी खोजबीन बहुत सही तरीके से नहीं की गई थी. इस रहस्य को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों ने दोबारा इस जगह की पड़ताल की. ताकि ये इंसानों के पूर्वजों, भालुओं और चिम्पैन्जी के फुटप्रिंट्स की तुलनात्मक स्टडी कर सकें. क्योंकि लेटोली-ए ट्रैक्स स्थान पर पांच तरह के पैरों के निशान मिले थे. जो इंसानों के पूर्वजों के थे, लेकिन पास में ही एक निशान ऐसा था जो भालुओं के पिछले पैरों पर चलने वाले निशान से मिलता है. (फोटोः एपी)
ओहायो यूनिवर्सिटी के हेरिटेज कॉलेज ऑफ ओस्टियोपैथिक मेडिसिन के बायोलॉजिकल एंथ्रोपोलोजिस्ट के एलिसन मैक्नट कहते हैं कि हमारी स्टडी की सबसे बड़ी समस्या ये थी कि लेटोली-ए ट्रैक्स पर मिले फुटप्रिंट्स की असली उत्पत्ति को खोजना. हमें अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इनकी उत्पत्ति कहां से हुई. लाखों सालों से सूरज की गर्मी और बारिश ने इन फुटप्रिंट्स को नुकसान पहुंचाया है. (फोटोः एपी)
एलिसन मैक्नट ने कहा कि जब लेटोली-ए ट्रैक्स पहुंचे तो देखा कि यहां पर आसपास के सेडिमेंटेशन की वजह से पुराने पैरों के निशान सही सलामत थे. हमनें इन निशानों को साफ किया. उनका आकार लिया. फोटोग्राफ लिए. थ्रीडी स्कैन करके पैरों का आकार बनाया. जब लेटोली-ए से लिए गए थ्रीडी प्रिंटस को ध्यान से देखा गया तो पता चला कि वहां पर इंसानों का एक अनजान पूर्वज था. जो भालुओं की तरह अपने पिछले पैरों के सहारे चलता था. (फोटोः स्टीफन गॉन/जेम्स एडम्स)
इसके बाद एलिसन ने बेन और फोएबे किलहम को बुलाया. ये दोनों भालुओं के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था किलहम बेयर सेंटर में काम करते हैं. ये संस्था न्यू हैंपशायर के लाइम में है. उन्होंने जब फुटप्रिंट्स देखे तो पता चला कि ये निशान भालुओं के बच्चों के पांव के निशान जितने छोटे थे. लेकिन इससे बात नहीं बनती. तो एलिसन ने बेन और फोएबो को कहा कि क्या ऐसा हो सकता है कि भालुओं के बच्चे इन निशानों पर खड़े हो सके. (फोटोः एपी)
Unknown human ancestor may have walked a bit like a bear on its hind legs https://t.co/7tVdIkKIST
— Live Science (@LiveScience) December 1, 2021
बेन और फोएबे ने भालुओं को निशान के पास लाने के लिए खाने-पीने का लालच दिया. वो आ गए. तय स्थान पर दोनों पैरों पर खडे़ होकर जब उन्होंने एपल सॉल पीने की कोशिश की तो वैज्ञानिकों ने देखा कि उनके पैर उन निशानों पर एकदम सटीक सेट हो रहे हैं. इस स्टडी के सीनियर साइंटिस्ट और डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी के पैलियोएंथ्रोपोलॉजिस्ट जेरेमी डी सेल्वा ने कहा कि यह हैरान करने वाला खुलासा है. (फोटोः एपी)
जेरेमी डी सेल्वा ने कहा कि भालू जब अपने पिछले पैरों पर चलते हैं तब वे बड़े चौड़े कदम रखते हैं. लेकिन लेटोली-ए ट्रैक पर मिले निशान भालुओं की चाल की तरह मिलते नहीं, क्योंकि जिस तरह के पैरों के निशान मिले हैं, वो भालुओं के पिछले पैरों से जरूर मिलते हैं. लेकिन उस समय लूसी नाम की इंसानी पूर्वज भी थी. जिसका शरीर सीधा था. जबकि भालू कम ही सीधा खड़े होते हैं. जब तक उन्हें कुछ खाना या शिकार न करना हो. (फोटोः गेटी)
जेरेमी ने कहा कि ऐसा भी हो सकता है कि लाखों सालों में भालुओं की चाल में बदलाव आया हो. इससे एलिसन ने अंदाजा लगाया कि इंसानों के पूर्वजों के पैर भालुओं के पिछले पैरों की तरह रहे हों या न रहे हों. उनकी चाल आज के भालुओं से मिलती हो चाहे न मिलती हो. लेकिन ये अनजान इंसानी पूर्वज उस समय भालुओं की तरह पिछले पैरों पर कुछ समय के लिए जरूर चलता रहा होगा. (फोटोः एपी)
लेटोली-ए ट्रैक्स पर मिले निशानों को ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इनके अंगूठे काफी बड़े थे, जो चलने-फिरने और ग्रिप बनाने में मदद करते थे. जैसे वानरों (Apes) के होते हैं. यानी ये इंसानों के पूर्वज तो थे लेकिन समय-समय पर भालुओं के पिछले पैरों की तरह चलते थे या फिर इस स्थिति में खड़े होकर शिकार खोजते रहे होंगे. (फोटोः जेरेमी डी सिल्वा)
एलिसन की स्टडी से पता चलता है कि ये निशान किसी ऐसे इंसानी पूर्वज के थे, जिनके बारे में हमें पता नहीं है. यह बात तो पुख्ता हो गई कि ये निशान ऑस्ट्रेलोफिथेकस अफरेनसिस (Australopithecus afarensis) के नहीं है. इनके पांवों के निशान एकदूसरे को क्रॉस करते हैं. इनके बीच की दूरी भालुओं के चलने के हिसाब से नहीं मिलती, लेकिन पांव के निशान पिछले पैरों से मिलते हैं. (फोटोः गेटी)