धरती...नीले रंग का खूबसूरत ग्रह. इस करीब-करीब गोल ग्रह पर हम रहते हैं. अगर यही धरती चपटी (Flat) हो जाए तो क्या होगा? फिर कैसे चलेगा हमारा जीवन? फिर क्या सूरज-चांद दिखेंगे? क्या हम एक जगह से दूसरी जगह जा पाएंगे? गुरुत्वाकर्षण शक्ति का क्या होगा? चिपटी धरती पर समुद्र कहां जाएंगे? बारिश कैसे होगी? चक्रवाती तूफान आएंगे या नहीं? अगर धरती चपटी होती है तो आपके जीवन में 8 तरह के प्रमुख बदलाव आएंगे. जिनकी वजह से सिर्फ परेशानियों का ही सामना करना पड़ेगा. इन परेशानियों को बर्दाश्त कर पाना अत्यधिक मुश्किल होगा. (फोटोः गेटी)
धरती से खत्म हो जाएगा गुरुत्वाकर्षण...आप हवा में टंगे नजर आएंगे!
जब तक धरती गोल है, तब तक सभी स्थानों पर सभी वस्तुओं पर एक जैसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity) लग रही है. अगर धरती एक तरफ से चपटी होती है तो गुरुत्वाकर्षण शक्ति खत्म हो जाएगी. गणितज्ञ और भौतिक विज्ञानी जेम्स क्लार्क मैक्सवेल ने 1850 में था कि अभी गुरुत्वाकर्षण शक्ति के संचालन का जो नियम है, वह चपटी धरती पर खत्म हो जाएगा. या फिर चपटी धरती का गुरत्वाकर्षण उसके केंद्र में जाकर टिक जाए. यानी चपटी धरती की सारी चीजें तेजी से केंद्र की तरफ जाकर जमा हो जाएंगी. (फोटोः गेटी)
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में स्थित लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जरवेटरी के जियोफिजिसिस्ट जेम्स डेविस ने कहा कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति का कम होना या किसी केंद्र में खिसक जाना या खत्म हो जाना पृथ्वी पर प्रलय ला देगा. लोग हवा में तैर रहे होंगे. मजाक में कहें तो ऊंची कूद का विश्व रिकॉर्ड भी टूट सकता है. लेकिन यह चपटी धरती पर रहना किसी भी जीव के लिए संभव नहीं होगा. यह अत्यधिक उच्च स्तर की भयावह प्राकृतिक आपदा होगी. (फोटोः गेटी)
वायुमंडल के खत्म होने की पूरी संभावना...आप सांस कैसे लेंगे?
जब धरती पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति ही नहीं रहेगी, तो ये बात भी पुख्ता है कि उसके चारों तरफ मौजूद वायुमंडल की परतें खत्म हो जाएंगी. जिसे हम एटमॉसफियर (Atmosphere) कहते हैं. इसी गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से धरती के ऊपर अलग-अलग गैसों की परत टिकी रहती है. यह धरती के चारों तरफ एक सुरक्षात्मक कंबल की तरह है. जैसे ही ये परत हटेगी सूरज से आने वाली रोशनी का फैलना बंद हो जाएगा. हमें जो आसमान अभी नीले रंग का दिखता है वह पूरा काला दिखेगा. (फोटोः गेटी)
जीव विज्ञानी लुईस विलाजोन ने कहा कि यह परत हटते ही वायुमंडलीय दबाव खत्म हो जाएगा. इससे धरती पर कई जीव-जंतु और पौधे अंतरिक्ष के वैक्यूम में चले जाएंगे. या फिर इस वैक्यूम की वजह से हवा की कमी होगी और कुछ ही सेकेंड्स में धरती पर चारों तरफ जीव-जंतुओं की लाशें और सूखते-गिरे हुए पेड़-पौधे दिखाई पड़ेंगे. धरती के चारों तरफ वायुमंडल के खत्म होते ही धरती पर मौजूद सारा पानी ऊबलते हुए वैक्यूम में गायब हो जाएगा. क्योंकि वायुमंडल के खत्म होते ही सूरज और धरती की गर्मी से पानी उबलने लगेगा. लेकिन इस आपदा में एक ही जीव बच पाएगा. वह है समुद्र की गहराइयों में रहने वाले कीमोसिंथेटिक बैक्टीरिया, जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं होती. (फोटोः गेटी)
बगल से होगी बारिश, बादलों की दीवारें दिखेंगी...सिर्फ एक ही जगह पर बूंदें गिरेंगी
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में स्थित लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जरवेटरी के मुताबिक चपटी धरती पर गुरुत्वाकर्षण एक जगह पर केंद्रित हो जाएगी. जिसे तब उत्तरी ध्रुव माना जाएगा. बारिश में भी ठीक उसी जगह होगी. क्योंकि बादलों से पानी जमीन पर गुरुत्वाकर्षण की वजह से ही गिरता है. जब एक ही जगह ग्रैविटी होगी तो बारिश भी वहीं होगी. आपको एक ही जगह पर पानी गिरते हुए दिखाई देगा. बादलों की दीवार वहीं बनेगी. समुद्रों और नदियों का पानी भी उत्तरी ध्रुव यानी चपटी धरती के केंद्र की तरफ बहेगा. यानी इतने बड़े समुद्र धरती का हर कोना छोड़कर सिर्फ केंद्र में पहुंच जाएंगे. (फोटोःगेटी)
8 ways life would get weird on a flat Earth https://t.co/xouBp1Bbch
— Live Science (@LiveScience) July 23, 2021
हम लोग खो जाएंगे...क्योंकि जीपीएस काम नहीं करेगा
धरती के चपटे होते ही सैटेलाइट्स नहीं रहेंगे. उन्हें चपटी धरती की कक्षा में घूमने में दिक्कत आएगी. जेम्स डेविस ने कहा कि ऐसी स्थिति में जीपीएस (GPS) कनेक्शन खो देंगे. हवाई जहाजों का उड़ना बंद हो जाएगा. मिसाइल और रॉकेट टेक्नोलॉजी काम नहीं करेगी. पानी के जहाज सब एक ही जगह पहुंच जाएंगे. समुद्री यातायात बंद हो जाएगा. चपटी धरती पर जीपीएस काम नहीं करेगा. ग्लोबल नैविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) खत्म हो जाएगा. आप ऑनलाइन खाना नहीं मंगा पाएंगे. रियल टाइम ट्रैवल जैसे ऑनलाइन कैब बुक करके चलना मुश्किल हो जाएगा. रियल टाइम स्टॉक मैनेजमेंट खत्म हो जाएगा. इस समय बिना जीपीएस की दुनिया बहुत मुश्किल होगी. सिर्फ धरती के उत्तरी ध्रुव की दिशा यानी केंद्र की दिशा दिखेगी. (फोटोः गेटी)
कुछ यात्राएं तो खत्म ही नहीं होंगी...कहां तक भटकते रहेंगे?
एक तो जीपीएस नहीं होगा. दूसरा हमें दिशा और दूरी का ज्ञान नहीं हो पाएगा. जब धरती चपटी होगी तो उत्तरी ध्रुव केंद्र हो जाएगा और अंटार्कटिका की मोटी बर्फ किनारों पर ऊंची-ऊंची दीवारों की तरह दिखाई देंगी. यह दीवार लोगों को चपटी धरती से अंतरिक्ष में गिरने से रोकेगी. लेकिन जब आप धरती पर उड़ नहीं पाएंगे, तब यात्राएं बहुत लंबी हो जाएंगी. इसका मतलब ये होगा कि ऑस्ट्रेलिया से उड़कर अंटार्कटिका की यात्रा अभी कम समय लेती है, लेकिन तब आपको पूरी धरती की यात्रा करनी होगी, वो भी जमीन से. तो सोचिए आप कितने दिन में एक जगह से दूसरी जगह जाएंगे. (फोटोः गेटी)
उत्तरी ध्रुव के देशों में नहीं दिखेगी नॉर्दन लाइट्स...सूरज की रोशनी आपको पका देगी
नासा के मुताबिक करीब-करीब गोल धरती के अंतर पिघली हुई धातु तैरती रहती है. जिसकी वजह से एक चुंबकीय शक्ति धरती के चारों तरफ घूमती है. इससे वायुमंडल टिका रहता है. लेकिन चपटी धरती चुंबकीय शक्ति वाली परत यानी मैग्नेटोस्फीयर (Magnetosphere) खत्म हो जाएगा. वायुमंडल से टकराने वाली सूरज की किरणों की वजह से उत्तरी ध्रुव पर दिखने वाले अरोरा (Aurora) यानी नॉर्दन लाइट्स दिखते हैं. लेकिन चुंबकीय शक्ति खत्म होने से वायुमंडल खत्म. उससे फिर अरोरा बंद हो जाएंगे. सूरज की रोशनी सीधे आपको पका कर रख देगी. आप जलभुनकर खाक हो जाएंगे. सूरज की अल्ट्रावॉयलेट किरणों से जितना नुकसान होगा, उसका कोई अंदाजा भी नहीं लगा पाएगा. (फोटोः NASA)
चपटी धरती पर सबको दिखेगी एक ही रात...समय की गणना खत्म होगी क्या?
अभी धरती गोल है, इसलिए जब अमेरिका में रात होती है, तब एशिया में दिन. यह पूरा खेल धरती के अपनी धुरी पर घूमने और सूरज के चारों तरफ चक्कर लगाने की वजह से होता है. इसलिए हर देश का अलग-अलग टाइमजोन है. लेकिन चपटी धरती पर एक साथ दिन होगा, एक साथ ही रात होगी. यानी अमेरिका वाला व्यक्ति और भारत का व्यक्ति एक साथ रात का मजा लेगा. उसे अलग-अलग टाइमजोन में रहने की जरूरत नहीं होगी. फिर पूरी धरती का एक ही टाइमजोन बनाना होगा. इसके अलावा अभी हमें धरती के चारों तरफ से जो ब्रह्मांड के नजारे मिलते हैं, वो नहीं दिखेंगे. सिर्फ सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद टेलिस्कोप से मिलने वाली तस्वीरों के सहारे रहना होगा. (फोटोः गेटी)
चक्रवाती तूफान, हरिकेन, साइक्लोन हो जाएंगे खत्म...
NOAA के मुताबिक हर साल धरती पर अलग-अलग स्थानों पर हरिकेन (Hurricanes) आते हैं. जिन्हें तूफान, साइक्लोन जैसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है. इनकी वजह से काफी नुकसान भी होता है. सिर्फ 2017 में हरिकेन हार्वे ने अमेरिका में 9.29 लाख करोड़ का नुकसान कराया था. ये गोल घूमते हुए भयावह तूफान धरती के कोरियोलिस (Coriolis) एफेक्ट की वजह से बनते हैं. यानी उत्तरी गोलार्द्ध में बनने वाले तूफान क्लॉकवाइज घूमेंगे. दक्षिणी गोलार्ध में बनने वाले तूफान एंटी-क्लॉकवाइज. लेकिन जब दोनों गोलार्द्ध रहेंगे ही नहीं तो ये तूफान बनेंगे कहां से. इसलिए वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसे तूफान खत्म हो जाएंगे. (फोटोः NOAA)