सर्दियों का मौसम जोर पकड़ चुका है. लोगों को ऐसे में ठंड लगती है. रोएं खड़े हो जाते हैं, उंगलियां सुन्न हो जाती हैं. कान ठंडे पड़ जाते हैं. आखिर ये सब होता क्यों है? कभी सोचा है आपने कि हमें ठंड क्यों लगती हैं. अचानक ज्यादा क्यों लगने लगती है. किसी को कम तो किसी को ज्यादा ठंड क्यों लगती हैं. आइए जानते हैं इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण... (फोटोः गेटी)
हर इंसान के खान-पान, रहन-सहन और शरीर की आंतरिक क्षमता के अनुसार उसे ठंड लगती है. लेकिन ठंड लगने की शुरुआत सबसे पहले कहां महसूस होती है. क्या पता है आपको? ठंड सबसे पहले त्वचा (Skin) पर महसूस होती है. रोएं खड़ें हो जाते हैं. जब तापमान गिरता है तब शरीर के पहले सुरक्षा घेरे यानी त्वचा को यह महसूस होता है. त्वचा के ठीक नीचे मौजूद थर्मो-रिसेप्टर नर्व्स (Thermo-receptors Nerves) दिमाग को तरंगों के रूप में संदेश भेजती हैं कि ठंड लग रही है. यह साधारण सी फीलिंग अलग-अलग इंसान के शरीर में अलग-अलग स्तर और तीव्रता पर होती है. (फोटोः गेटी)
त्वचा को ठंड लगी तो पूरा शरीर कैसे संभलने लगता है. इसके पीछे कहानी ये है कि त्वचा से निकलने वाली तरंगें दिमाग के हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) में पहुंचती हैं. हाइपोथैलेमस ही शरीर के आंतरिक तापमान और पर्यावरण का संतुलन बनाता है. संतुलन बनाने की प्रक्रिया में रोएं खड़े होते हैं. क्योंकि उनके नीचे की मासंपेशियां सिकुड़ने लगती हैं. शरीर पर मौजूद बाल की परत आपको सर्दी से बचाने में मदद करती है. (फोटोः गेटी)
हाइपोथैलेमस शरीर के नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र को यह बताता है कि शरीर के तापमान में गिरावट महसूस हो रही है. यह महत्वपूर्ण सूचना है क्योंकि हमारा शरीर तापमान के गिरने को बर्दाश्त नहीं कर सकता. अगर ज्यादा तापमान नीचे गिरा तो कई अंग काम करना बंद कर देंगे. मल्टी ऑर्गन फेल्योर होने की वजह से इंसान की मौत हो सकती है. यानी ज्यादा ठंड जिसे हाइपोथर्मिया कहते हैं, उससे लोगों की मौत हो जाती है. (फोटोः गेटी)
इसलिए भले ही आपकी त्वचा पर सर्दी महसूस हो रही हो लेकिन दिमाग शरीर के अंदर के तापमान को गिरने से रोकता है. दिमाग पूरे शरीर को चेतावनी देता है कि तापमान गिर रहा है, आपको तापमान संतुलित करना है. इसलिए सारे अंग, मांसपेशियां अपने काम करने की गति को धीमा कर देती हैं. (फोटोः गेटी)
धीमी गति से काम कर रहे अंगों से ज्यादा मेटाबॉलिक हीट (Metabolic Heat) पैदा होती है, जो अन्य स्थानों पर न जाकर अंग के आसपास के इलाके को गर्म रखती है. यहीं पर आपके शरीर में अचानक से कंपकपी होती है. या कई बार कई लहर में कंपकपी आती है. कंपकपी आने का मतलब है कि आपका शरीर बाहर के तापमान की तुलना में अंदर के तापमान को संतुलिनत कर रहा है. (फोटोः गेटी)
जब आप कांपना शुरु करते हैं या कांपते हैं, तब आपकी खून की नसें सिकुड़ती हैं, खून और उसकी गर्मी के बहाव को शरीर के अंगों में रोकती हैं. उन्हें ठंडी त्वचा तक जाने से रोकती हैं. इससे आप सुरक्षित रहते हैं. ऐसे स्थिति में आपके शरीर के अंग गर्म रहते हैं लेकिन त्वचा हो सकती है ठंडी महसूस हो. लेकिन यह तरीका शरीर के तापमान को संतुलित बनाए रखने के लिए होता है. (फोटोः गेटी)
हैरानी की बात ये है कि जब हम बार-बार ठंडे तापमान से जूझते हैं, हमारा शरीर तुरंत उसके हिसाब से संतुलन बनाने लगता है. एकदम विपरीत परिस्थितियों की बात अलग है. जैसे ही शरीर या बाहर का तापमान एकदूसरे के लिए अनुकूल होता है, हमें ठंड लगना बंद हो जाता है. ऐसे में आपके शरीर की वह गतिविधि बंद हो जाती है, जिससे शरीर के अंदरूनी हिस्से का तापमान संतुलिन हो रहा था. (फोटोः गेटी)
ऐसे कई शोध पत्र हैं जो यह कहते हैं कि लिंग, उम्र और जीन्स पर भी यह निर्भर करता है कि इंसान को कितनी सर्दी लगेगी. क्योंकि जिस प्रकार लोगों के जूते का साइज एक दूसरे से अलग होता है, उसी तरह उनमें मौजूद तापमापी सेंसरों की संख्या भी अलग हो सकती है. साथ ही उनकी ठंड महसूस करने की क्षमता भी अलग होती है. (फोटोः गेटी)