रविवार सुबह यानी 29 मई 2022 को नेपाल के तारा एयर का एक ट्विन ओटर (Twin Otter) प्लेन लापता हो गया. कई घंटों तक खोजबीन के बाद भी इसका पता नहीं लग पाया. नेपाल की सेना ने कहा कि अंधेरा होने और बादलों की वजह से खोजबीन को रात में रोकना पड़ेगा. हालांकि किसी तरह प्लेन का पता चला. विमान की तकनीक की वजह से नहीं बल्कि, उसे उड़ा रहे पायलट के मोबाइल फोन के जियो-लोकेशन की वजह से, जो उस समय ऑन था.
तारा एयर का डीएचसी-6 एयरक्राफ्ट जिसमें 22 लोग सवार थे, वो पोखरा से जोमसोम के लिए उड़ा था. खराब मौसम में शुरु की गई यह उड़ान मंजिल तक नहीं पहुंच पाई. नेपाल टाइम्स के मुताबिक तुकुचे (Tukuche) इलाके के एक चश्मदीद ने बताया कि उसने विमान को बादलों में उलटा होते देखा था. उसके बाद इस प्लेन का पता नहीं चला, जो लेते (Lete) के पास मिला. (फोटोः एपी)
नेपाल में हवाई सुरक्षा का रिकॉर्ड खराब ही रहा है. हालांकि पिछले 6 सालों से यानी साल 2016 से नेपाल के घरेलू उड़ानों को लेकर कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ था. अब हम आपको बताते हैं कि आखिरकार ये हादसा हुआ क्यों? क्या वजह थी इस हादसे के पीछे. वह विमान किस रूट से उड़ान भर रहा था, जहां उसे ऐसे अंत का सामना करना पड़ा. (फोटोः टिटस गुरुंग/अन्स्प्लैश)
दुनिया की सबसे गहरी तंग घाटी से गुजर रहा था विमान
पोखरा से जोमसोम का हवाई रास्ता बेहद ट्रिकी है. यह अन्नपूर्णा (Annapurna) और धौलागिरी (Dhaulagiri) के बीच मौजूद दुनिया की सबसे गहरी तंग घाटी (World's Deepest Gorge) के बीच से गुजर रहा था. जहां पर तेज हवाएं और घने बादल मौजूद थे. इस रूट पर पहले भी कई हादसे हो चुके हैं. ज्यादातर हादसे खराब मौसम के दौरान कंट्रोल्ड फ्लाइट इंटू टिरेन (CFIT) की वजह से हुए हैं. (फोटोः रोशन हारमेंस/अन्स्प्लैश)
नेपाल में मॉनसून में ज्यादा होते हैं विमान हादसे
नेपाल में ज्यादातर विमान हादसे मॉनसून के सीजन में होते हैं. जब पायलटों को बादलों से ढंके हिमालय की ऊंची चोटियों के बीच या ऊपर से निकलना होता है. यहां पर हादसा होने पर उसका मलबा खोजना बहुत मुश्किल हो जाता है. क्योंकि खोजने के लिए जाने वाले हेलिकॉप्टरों और विमानों के साथ भी यही खतरा रहता है. मौसम ज्यादा खराब है तो किसी तरह की उम्मीद न करिए. (फोटोः टूमस टार्टेस/अन्स्प्लैश)
20 साल पहले गायब हेलिकॉप्टर आज तक नहीं मिला
31 मई 2002 को मकालू बेस कैंप (Makalu Base Camp) से लुकला (Lukla) के लिए उड़ान भरने वाला हेलिकॉप्टर लापता है. उसका आज तक पता नहीं चला. एशिय एयरलाइंस द्वारा संचालित इस Mi-17 हेलिकॉप्टर में 8 पर्वतारोही गाइड्स और 2 क्रू मेंबर बैठे थे. इनमें एक रूसी पायलट था. हफ्तों तक खोजबीन अभियान चलता रहा लेकिन इन लोगों का कोई पता नहीं चला. आखिरकार खोजबीन को बंद करना पड़ा. ऐसा माना जाता है कि यह हेलिकॉप्टर किसी बर्फीली चोटी से टकराया होगा. टक्कर से पैदा हुए हिमस्खलन में ही दब गया होगा. (फोटोः टेडी हार्टांटो/अनस्प्लैश)
जो मौसम हादसे की वजह, वही खोजबीन से रोकता है
हिमालय में किसी भी तरह उड़ान बेहद कठिन होती है. क्योंकि घाटियों और चोटियों के बीच से विमान को निकालना आसान नहीं होता. अगर कोई विमान हादसाग्रस्त होता है, तो उतना ही खतरा उसे खोजने जाने वाले विमानों, हेलिकॉप्टरों को भी रहता है. अगस्त 1962 में रॉयल नेपाल एयरलाइंस के डीसी-3 विमान का भी ऐसा ही हादसा हुआ था. काठमांडू से दिल्ली की उड़ान थी. लेकिन काठमांडू से उड़ान भरने के कुछ मिनट बाद ही विमान गायब. क्रैश हो गया. चार क्रू, छह पैसेंजर मारे गए. इसमें भारत में तैनात नेपाल के राजदूत भी थे. इसे खोजने के चक्कर में एक पिलेटस पोर्टर प्लेन भी क्रैश हो गया था. इसके बाद भारतीय वायुसेना के प्लेन ने दस दिन बाद धोरपटन (Dhorpatan) के सुदूर पहाड़ों पर खोजा था. (फोटोः एपी)
जुलाई 1992 में थाई इंटरनेशनल का एयरबस 310 बैंकॉक से काठमांडू के लिए मॉनसून में उड़ा. लेकिन लापता हो गया. क्रैश भी हो गया. सारे 113 पैसेंजर मारे गए. इसे चार दिन लगे थे खोजने में. यह काठमांडू से 20 किलोमीटर दूर उत्तर की तरफ स्थित लांगतांग नेशनल पार्क में मिला था. इसके अलावा 1996 में जोमसोम से पोखरा जा रहे लुंबिनी एयर ट्विन ऑटर प्लेन हादसाग्रस्त हो गयाय था. इसमें बैठे हुए 18 लोगों की मौत हो गई थी. इस विमान को खोजने में भी काफी दिन लगे थे. (फोटोः पिक्साबे)
इसके बाद सितंबर 2006 में Mi-17 हेलिकॉप्टर जिसमें नेपाल के सबसे फेमस पर्यावरणविद समेत 22 यात्री बैठे थे, वो कंचनजंघा के नीचे गुंशा से उड़ा. लेकिन लापता हुआ. बाद में क्रैश हो गया. इसका मलबा और शव कई दिनों के बाद मिले थे. साल 2014 में नेपाल एयरलाइंस का ट्विन ओटर अरघाकांची में हादसाग्रस्त हो गया था. इसे भी पूरे एक दिन बाद खोज पाया गया था. वह सिर्फ इस वजह से क्योंकि एक पैसेंजर का मोबाइल फोन किसी तरह से ऑन रह गया था. (फोटोः दीमा बुराकोव/पिक्साबे)