प्लूटो (Pluto)... कभी सौर मंडल का सबसे दूर स्थित ग्रह था. अब ग्रह नहीं बचा. सौर मंडल की सूची से बाहर है. लेकिन इसके सबसे बड़े चांद शैरोन (Charon) के सिर पर लाल निशान क्यों है. इसकी वजह अब शायद पता चल गई है. नासा के स्पेसक्राफ्ट यानी अंतरिक्षयान न्यू होराइजन (New Horizon) प्लूटो के करीब तो गया लेकिन कभी शैरोन के नजदीक नहीं पहुंच पाया. (फोटोः NASA)
शैरोन (Charon) के उत्तरी ध्रुव पर बना निशान ऐसे लगता है, जैसे उसने लाल रंग की टोपी पहन रखी हो. इसके उत्तरी ध्रुव वैज्ञानिकों ने मॉरडोर माकुला (Mordor Macula) नाम दिया गया है. ये चांद और इससे संबंधित खोज इस उम्मीद को जगाती है कि प्लूटो को शायद फिर से सौर मंडल के ग्रहों में शामिल कर लिया जाए. क्योंकि वैज्ञानिक लगातार इसके अध्ययन में लगे हैं. हर स्टडी के साथ नए राज खुल रहे हैं. (फोटोः NASA)
न्यू होराइजन स्पेसक्राफ्ट से मिली तस्वीरों और डेटा से वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि शैरोन (Charon) की 'लाल टोपी' थॉलिन्स (Tholins) से बनी है. ये एक प्रकार का चिपकने वाला हाइड्रोकार्बन है जो अल्ट्रावायलट प्रकाश की वजह से टूटने वाले मीथेन से बनता है. ऐसा माना जाता है कि प्लूटो से मीथेन निकल कर इसके चांद पर पहुंचा होगा. शैरोन का उत्तरी ध्रुव बेहद ठंडा है. ग्रैविटी भी कम है. इसलिए वहां से वापस अंतरिक्ष में निकल नहीं पाया. (फोटोः गेटी)
साइंस एडवांसेज जर्नल में साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने शैरोन (Charon) की लाल टोपी के बारे में स्टडी रिपोर्ट प्रकाशित की है. उन्होंने हैरान करने वाला खुलासा किया है. शैरोन का वायुमंडल बेहद हल्का है. हल्के वायुमंडल की वजह से मौसम बदलता रहता है. मौसमी बदलाव से इस लाल टोपी का रंग भी हल्का और गाढ़ा होता रहता है. (फोटोः गेटी)
शैरोन रीफैक्ट्री फैक्ट्री नाम की रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने इस चांद की सर्दियों के कई स्तर दिखाए हैं. जहां पर लीमैन-अल्फा रेडिएशन की वजह से मीथेन जम जाता है. लीमैन-अल्फा रेडिएशन एक तरह की अल्ट्रावायलेट किरणें होती हैं जो सौर मंडल में मौजूद दो ग्रहों के बीच बहने वाले हाइड्रोजन की वजह से पैदा होती हैं. इसकी स्टडी करने के लिए सेंटर फॉर लेबोरेटरी एस्ट्रोफिजिक्स एंड स्पेस साइंस एक्सपेरीमेंटस में शैरोन की रेप्लिका बनाई गई. (फोटोः गेटी)
डॉ. उज्जवल रावत ने अपने बयान में कहा कि हमारे प्रयोग में हमने कंडेस मीथेन को अल्ट्रा-हाई वैक्यूम चैंबर में डाल दिया. उसे लीमैन-अल्फा फोटोंस की किरणें डाली. इसके बाद वह ठीक वैसा ही दिखने लगा जैसा कि शैरोन (Charon) का उत्तरी ध्रुव दिखता है. पहले तो वह रंगहीन इथेन था, जो जमा हुआ था. वसंत के मौसम में वह गर्म होकर मीथेन बनने लगा. इसके बाद हमने उसका रंग बदलते देखा. (फोटोः गेटी)
डॉ. उज्जवल रावत ने अपनी स्टडी में बताया कि सौर हवाओं के आयोनाइजिंग रेडिएशन की वजह से शैरोन (Charon) का उत्तरी ध्रुव पिघलने लगता है. इसका रंग बदलने लगता है. लेकिन वह इलाका इतना ठंडा है कि ज्यादा असर नहीं पड़ता. थॉलिन्स की वजह से शैरोन के ऊपर लाल टोपी बनी ही रहती है. (फोटोः गेटी)
इसी टीम ने एक स्टडी और की. जिसमें बताया शैरोन (Charon) का एक साल धरती के 248 साल के बराबर होता है. शैरोन पर सूरज की रोशनी ज्यादा नहीं पड़ती. इसलिए वहां पर मीथेन जमी रहती है. जहां पर ज्यादा रोशनी पड़ती है, वहां पर ये लाल रंग नहीं दिखता है. (फोटोः पिक्साबे)
Pluto's largest moon, Charon, has a red region over its north pole. Seven years after its discovery, we may finally have an explanation.https://t.co/WYpUwNiVSH
— IFLScience (@IFLScience) June 23, 2022