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साइंस न्यूज़

आखिर मलेरिया की पहली वैक्सीन बनने में 30 साल से ज्यादा क्यों लगे?

First malaria vaccine Mosquirix
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तीन दशकों की मेहनत के बाद दुनिया को 6 अक्टूबर 2021 को मलेरिया की पहली वैक्सीन मिली. दुनिया की सबसे पुरानी और जानलेवा बीमारियों में से एक मलेरिया के इलाज के लिए अब तक कोई एक वैक्सीन नहीं थी. इस वैक्सीन की मदद से हर साल लाखों बच्चों को बचाया जा सकेगा, क्योंकि मलेरिया की वजह से प्रति वर्ष 5 लाख से ज्यादा लोगों की मौत होती थी. इसमें से 2.60 लाख बच्चे होते थे, जिनकी उम्र पांच साल से कम होती थी. अब इस नई वैक्सीन से दुनिया को यह उम्मीद है कि भुनभुनाते हुए मच्छरों से उन्हें मौत नहीं मिलेगी. आइए जानते हैं कि कैसे शुरु हुई इस वैक्सीन के बनने की कहानी...(फोटोःगेटी)

First malaria vaccine Mosquirix
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मलेरिया एक पैरासाइट जनित बीमारी है. यह बीमारी धरती पर हजारों सालों से है. इसे फैलाने में मच्छरों की बड़ी भूमिका रही है. इसकी वजह से सबसे ज्यादा मौतें सब-सहारन अफ्रीकाई देशों में होती हैं. पिछले 30 सालों से अलग-अलग तरह की वैक्सीनों का उपयोग करके लोगों को मलेरिया से बचाया जाता रहा है. लेकिन कोई एक कारगर वैक्सीन नहीं थी. अब दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline- GSK) ने एक वैक्सीन बनाई है. इसका नाम मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन की मान्यता भी दे दी है. 

First malaria vaccine Mosquirix
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मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) का वैज्ञानिक नाम रीकॉम्बीनेंट प्रोटीन बेस्ड मलेरिया वैक्सीन (recombinant protein-based malaria vaccine - RTS,S) भी है. यह वैक्सीन लगने के बाद आपके शरीर में मलेरिया संक्रमण करने वाले पैरासाइट प्लाजमोडियम फाल्सीपैरम (Plasmodium falciparum) का असर बेहद कम हो जाएगा. क्योंकि इस वैक्सीन की बीमारी से लड़ने की क्षमता यानी एफिकेसी करीब 77 फीसदी है. यह पैरासाइट पूरी दुनिया में पाया जाता है, इसका सबसे ज्यादा असर तो अफ्रीकी देशों में देखा गया है. (फोटोःगेटी)

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First malaria vaccine Mosquirix
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न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार WHO मलेरिया कार्यक्रम के प्रमुख डॉ. पेड्रो अलोन्सो ने कहा कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) बच्चों के लिए भी सुरक्षित है. यह पांच तरह के मलेरिया पैरासाइट से लोगों को बचाएगा. अब यह दवा कंपनी जीएसके इसे दुनियाभर में बांटने के लिए तैयार है. अमेरिका जैसे विकसित देशों में मलेरिया के मामले दुर्लभ होते हैं. वहां पर हर साल करीब 2000 मलेरिया के केस सामने आते हैं. खासतौर से उन लोगों में मलेरिया संक्रमण होता है जो इस बीमारी से ग्रसित देश या लोगों के बीच से होकर आते हैं. (फोटोःगेटी)

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GSK का दावा है कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) सिर्फ मलेरिया के लिए ही नहीं बल्कि किसी भी तरह के पैरासाइट जनित बीमारी के इलाज में कारगर है. पैरासाइट किसी भी वायरस या बैक्टीरिया से ज्यादा जटिल होते हैं. डॉ. पेड्रो अलोन्सो ने कहा कि मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) का विकास अभी पहली सीढ़ी है. यह पैरासाइट के खिलाफ इंसानों के लड़ाई में पहली पीढ़ी की वैक्सीन है. अभी इसके कई नए ताकतवर वैरिएंट्स विकसित किए जाएंगे. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बचाया जा सके. एक मॉडलिंग स्टडी में यह दावा भी किया गया है कि मॉसक्विरिक्स हर साल लाखों लोगों को बचा सकती है.

First malaria vaccine Mosquirix
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मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) को बनाने का आइडिया 1980 के दशक में बेल्जियम स्थित स्मिथक्लाइन बीचम कंपनी के बायोलॉजिस्ट्स को आया था.  बाद में इस वैक्सीन को विकसित करने के लिए वॉल्टर रीड आर्मी इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च, PATH मलेरिया वैक्सीन इनिशिएटिव और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का भी साथ मिला. यूरोपियन ड्रग रेगुलेटर्स ने जुलाई 2015 में ही इस वैक्सीन को मान्यता दे दी थी. लेकिन वैश्विक स्तर पर मान्यता के लिए इसे WHO से मंजूरी मिलना जरूरी था. 23 अक्टूबर 2015 को WHO के स्ट्रैटेजिक एडवाइजरी ग्रुप ऑफ एक्सपर्ट्स ऑन इम्यूनाइजेशन और मलेरिया पॉलिसी एडवाइजरी कमेटी ने अफ्रीका में पायलट प्रोजेक्ट चलाने की अनुमति दी. (फोटोःगेटी)

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मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) को लेकर 23 अप्रैल 2019 को मलावी में बतौर पायलट प्रोजेक्ट लोगों को लगाना शुरु किया गया. 30 अप्रैल को घाना और 12 सितंबर 2019 को केन्या में वैक्सीन लोगों को लगाई जाने लगी. मलावी, घाना और केन्या में हर साल करीब 3.60 लाख बच्चे मलेरिया से बीमार होते हैं. साल 2021 में WHO ने देखा कि इन इलाकों में मलेरिया की अन्य दवाओं के साथ मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) का उपयोग करने से मलेरिया संक्रमण और उससे होने वाली मौतों में 70 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. इससे बेहतर परिणाम की उम्मीद कोरोना काल में की भी नहीं जा सकती थी. (फोटोःगेटी)

First malaria vaccine Mosquirix
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इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने यह फैसला लिया कि अब मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) यानी RTS,S को वैश्विक स्तर पर मलेरिया की पहली वैक्सीन के तौर पर घोषित किया जा सकता है. क्योंकि यह मलेरिया सहित पांच अन्य तरह के पैरासाइट जनित बीमारियों से लोगों को बचाने में सक्षम है. इस वैक्सीन के चार डोज लगाए जाते हैं. यह इंट्रामस्क्यूलर वैक्सीन है. यानी मांसपेशियों के बीच में सुई के जरिए इसकी दवा को पहुंचाया जाता है. दवा कंपनी जीएसके इसे उत्पादन के समय RTS,S/AS01 के नाम से बुलाती थी. (फोटोःगेटी)

First malaria vaccine Mosquirix
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100 फीसदी बचाव वाली मलेरिया वैक्सीन अभी तक उपलब्ध नहीं है. लेकिन इस वैक्सीन के अलावा कुछ और वैक्सीन भी विकसित की जा रही है. जैसे- R21/Matrix-M. इसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड, केन्या मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन, नोवावैक्स, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और बुर्किना फासो की वैज्ञानिक संस्था मिलकर बना रही है. इस वैक्सीन ने अपने शुरुआती ट्रायल्स में ही 77 फीसदी एफिकेसी दिखाई है. जबकि, मॉसक्विरिक्स (Mosquirix) की एफिकेसी 77 फीसदी है. यानी R21/Matrix-M क्लीनिकल ट्रायल्स के बाद ज्यादा एफिकेसी दिखा सकती है. R21/Matrix-M को भारत की दवा कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया बनाएगी. (फोटोःगेटी)

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इसके अलावा PfSPZ वैक्सीन बन रही है. इसे Sanaria नाम की कंपनी विकसित कर रही है. अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में हुए क्लीनिकल ट्रायल्स में इसके परिणाम बेहद सकारात्मक दिखे हैं. यह 80 फीसदी एफिकेसी का दावा कर रही है. लेकिन इस वैक्सीन के साथ एक विवाद यह भी छिड़ा है कि इसे लिक्विड नाइट्रोजन में रखना पड़ता है. PfSPZ वैक्सीन को अमेरिका के FDA ने सितंबर 2016 को ग्रांट दिया था. इसके आखिरी स्टेज के ट्रायल्स अब भी चल रहे हैं.  (फोटोःगेटी)

First malaria vaccine Mosquirix
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इन दो प्रमुख मलेरिया वैक्सीन के अलावा दर्जनों मलेरिया वैक्सीन को विकसित किया जा रहा है. इनमें से कुछ RNA आधारित हैं, तो कुछ पेप्टाइड आधारित. वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि मलेरिया के पैरासाइट भी अलग-अलग प्रकार के हैं, एक वैक्सीन सभी प्रकारों पर एक जैसा असर नहीं कर सकती. इसलिए एक सटीक और मारक वैक्सीन बनाना बेहद जटिल प्रक्रिया साबित हो रही है. (फोटोःगेटी)

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