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भारतीय वायुसेना के लिए बनेंगे 1000kg के MK-84 सीरीज बम... जानिए इसकी ताकत

भारतीय वायुसेना (IAF) के लिए जबलपुर स्थित खमरिया ऑर्डनेंस फैक्ट्री में जल्द ही 1000 किलोग्राम वजन के बम बनाए जाएंगे. ये बम NATO के मार्क 84 सीरीज बम की तरह होंगे. इन बमों के बनने के बाद इंडियन एयरफोर्स की ताकत में कई गुना इजाफा हो जाएगा. आइए जानते हैं इस बम की ताकत...

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ये है NATO के MK 84 सीरीज जनरल परपज बम, इसी तरह के होंगे भारतीय बम.
ये है NATO के MK 84 सीरीज जनरल परपज बम, इसी तरह के होंगे भारतीय बम.

इंडियन एयरफोर्स के लिए जबलपुर के खमरिया आयुध फैक्ट्री में जल्द ही 1000 किलोग्राम वजन के जनरल परपज बम बनाए जाएंगे. इन बमों को NATO के मार्क 84 बमों की श्रेणी में रखा जाएगा. आइए जानते हैं कि मार्क 84 बम की ताकत क्या है. क्योंकि अगर इसी स्टैंडर्ड पर भारतीय बम बनाए गए तो दुश्मन की हालत खराब होने पक्की है. 

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Mark 84 बम जिसे BLU-117 भी कहते हैं. उसका वजन करीब 907 किलोग्राम होता है. इसे अमेरिका में बनाया जाता है. यह एक जनरल परपज बम है. मतलब यह धमाका कर सकता है. बंकर उड़ा सकता है. इमारत गिरा सकता है. किसी भी सैन्य वस्तु को कई टुकड़ों में तोड़ सकता है. भयानक विस्फोट के साथ भारी तबाही मचा सकता है. 

MK-84 Bomb

मार्क 84 बमों के फिलहाल दुनिया में चार वैरिएंट मौजूद हैं. GBU-10 Paveway 1, GBU-15, GBU-24 Paveway 3 और GBU-31 JDM. इनका औसत वजन 894 से 1000 किलोग्राम तक होता है. लेकिन अमेरिका ने इन बमों 14 हजार kg वजन तक बना लिया है. वो बड़ी इमारतों या हथियार डिपो को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल होते हैं. 

12.7 फीट लंबे इन बमों का व्यास 18 इंच होता है. इनके अंदर ट्राइटोनल, H6 और PBXN-109 जैसे मिलिट्री ग्रेड केमिलक्स की फिलिंग होती है. बम के वजन के आधे के बराबर इन्हें भरा जाता है. इस श्रेणी के बमों का इस्तेमाल अमेरिका ने वियतनाम युद्ध के समय शुरू किया था. इसके बाद ऐसा ही बम सऊदी कोलिशन ने यमन के बाजार में गिरा दिया था. ये बात मार्च 2016 की है. वहां पर बम फटने की वजह से 97 लोगों की मौत हो गई थी. 

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MK-84 Bomb

इन बमों को आमतौर पर बमवर्षकों में लगाया जाता है. या फिर अटैक फाइटर जेट्स में. क्योंकि ये कई तरह से इस्तेमाल किए जा सकते हैं. ये बाकी बमों की तुलना में सस्ते भी होते हैं. अक्सर इन बमों के पीछे की तरफ रिटार्डर्स, पैराशूट या पॉप-आउट फिन्स होते हैं, जो आसमान से गिरते समय बम की गति को धीमा करते हैं. ताकि इसे गिराने वाले फाइटर जेट या विमान को बम की रेंज से दूर जाने का मौका मिल जाए. 

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