पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से 21 तोपों की सलामी स्वदेशी फील्ड गन से की गई. देश में बनी 105 मिमी के इंडियन फील्ड गन (105 mm Indian Field Gun) गरजीं. इससे पहले ब्रिटिश जमाने की 25-पाउंडर आर्टिलरी (25-Pounder Artillery) से होती थी.
भारत लगातार स्वदेशीकरण की तरफ बढ़ रहा है. विदेशी हथियारों और यंत्रों को स्वदेशी से बदला जा रहा है. वो समय दूर नहीं है जब हमारे सारे उपकरण और यंत्र स्वदेशी होंगे. 77वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जानते हैं कि जिन तोपों ने सलामी दी है, उनकी ताकत और कहानी क्या है.
25-पाउंडर आर्टिलरी को हटाने के लिए डीआरडीओ की शाखा आर्मामेंट रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट ने 1972 में इंडियन फील्ड गन बनाया. उत्पादन 1984 से जबलपुर की गन फैक्ट्री में शुरू हुआ. कानपुर की फील्ड गन फैक्ट्री भी मदद कर रही थी. वहां भी इसका निर्माण चल रहा था.
इंडियन फील्ड गन के कई फीचर ब्रिटिश L118 Light Gun से मिलते-जुलते हैं. यह तोप हल्की है, इसलिए इसे कहीं भी ले जा सकते हैं. खासतौर से पहाड़ों पर. यानी जरुरत पड़ने पर इसे चीन की सीमाओं पर तैनात किया जा सकता है. या फिर पाकिस्तानी सीमा पर.
इंडियन फील्ड गन के तीन मॉडल हैं. एमके-1, एमके-2 और ट्रक माउंटेड. सबसे कम वजनी तोप 2380 किलो की है. जबकि सबसे भारी वाली 3450 किलोग्राम की. इसकी लंबाई 19.6 फीट होती है. इसकी नली 7.7 फीट है. चौड़ाई 7.3 फीट और ऊंचाई 5.8 फीट है. इसमें 105x371 mm R गोला पड़ता है. इसका गोला आधा किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से बढ़ता है. इसकी रेंज 17 से 20 किलोमीटर है.
यह तोप हर मिनट में छह गोले दाग सकता है. माइनस 27 डिग्री सेल्सियस से लेकर 60 डिग्री तापमान तक काम करने की क्षमता है इस तोप में. इस तोप को किसी भी जगह पहुंचाना आसान है. क्योंकि इसके दो-तीन हिस्से हैं जो अलग-अलग हो जाते हैं. युद्धक्षेत्र में इनका इस्तेमाल अब भी हो सकता है. अब इनमें सेल्फ प्रोपेल्ड वैरिएंट्स भी आ गए हैं.
जहां तक बात रही 25-पाउंडर आर्टिलरी की तो यह 1940 से इस्तेमाल हो रही है. सबसे ज्यादा इस्तेमाल द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ था. इस तोप का वजन 1633 किलोग्राम होता है. लंबाई 15.1 फीट होती है. नली की लंबाई 8.1 फीट होती है. ऊंचाई 3.10 फीट और चौड़ाई 7 फीट. इसे चलाने के लिए 6 लोगों की जरुरत पड़ती थी. इससे 88X292 मिमी का हाई-एक्सप्लोसिव, एंटी-टैंक, स्मोक या HESH गोले दागे जा सकते हैं.