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12वीं के लक्ष्य का एक ही लक्ष्य, खत्म करना है बुढ़ापा, IIT के साथ रिसर्च

अगर आपको बूढ़ा नहीं होना है. ज्यादा दिन युवा रहना है तो यह ख्वाब निकट भविष्य में पूरा हो सकता है. इतना ही नहीं इसके साथ-साथ बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियां भी खत्म हो जाएंगी. अब अगर ऐसा होगा तो जाहिर सी बात है कि आप ज्यादा दिनों तक जीवित रहेंगे, वह भी स्वस्थ, चुस्त और दुरुस्त. असल में गुरुग्राम के सेक्टर 45 स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल के 12वीं के छात्र लक्ष्य शर्मा बुढ़ापे की वजह खोजने वाले रिसर्च में शामिल रहे हैं.

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बुढ़ापे को खत्म करने और इससे जुड़ी बीमारियों को ठीक करने की रिसर्च में लगे हैं लक्ष्य शर्मा.
बुढ़ापे को खत्म करने और इससे जुड़ी बीमारियों को ठीक करने की रिसर्च में लगे हैं लक्ष्य शर्मा.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गुरुग्राम के दिल्ली पब्लिक स्कूल के स्टूडेंट हैं लक्ष्य शर्मा
  • बुढ़ापे और उससे जुड़ी बीमारियों को खत्म करने वाली दवा पर करना चाहते हैं रिसर्च
  • देश के कई बड़े प्रोफेसर्स और कंपनियों के साथ कर चुके हैं काम

अगर आपको बूढ़ा नहीं होना है. ज्यादा दिन युवा रहना है तो यह ख्वाब निकट भविष्य में पूरा हो सकता है. इतना ही नहीं इसके साथ-साथ बुढ़ापे से जुड़ी बीमारियां भी खत्म हो जाएंगी. अब अगर ऐसा होगा तो जाहिर सी बात है कि आप ज्यादा दिनों तक जीवित रहेंगे, वह भी स्वस्थ, चुस्त और दुरुस्त. असल में गुरुग्राम के सेक्टर 45 स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल के 12वीं के छात्र लक्ष्य शर्मा बुढ़ापे की वजह खोजने वाले रिसर्च में शामिल रहे हैं. जल्द ही वह आईआईटी दिल्ली में इसकी दवा बनाने की रिसर्च शुरू करने वाले हैं. लक्ष्य देश में सबसे कम उम्र का रिसर्चर होने का दावा भी करते हैं. 

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मुद्दा ये है कि इतनी कम उम्र का लड़का इतनी बड़ी रिसर्च की तरफ आया कैसे? इस सवाल पर लक्ष्य कहते हैं कि उनकी दादी की मौत कैंसर से हुई थी. उन्होंने सोचा कि मेरे परिवार में किसी और की मौत इस तरह से न हो. उन्होंने कैंसर के बारे स्टडी करने के लिए IIT बॉम्बे के प्रोटियोमिक्स लेबोरेटरी में संपर्क साधा. उन्होंने वहां जाकर कैंसर से संबंधित कई चीजों की स्टडी की. प्रोटियोमिक्स और प्रोटियोजिनोमिक्स पर पेपर पब्लिश हुआ. अब वो IIT दिल्ली के बायोसेपरेशन और बायोप्रोसेसिंग लेबोरेटरी में उम्र बढ़ाने और बीमारियां घटाने की दवा पर काम करने जा रहे हैं.  

IIT बॉम्बे के प्रोटियोमिक्स प्रयोगशाला में कैंसर पर स्टडी कर चुके हैं लक्ष्य शर्मा.
IIT बॉम्बे के प्रोटियोमिक्स प्रयोगशाला में कैंसर पर स्टडी कर चुके हैं लक्ष्य शर्मा.

ये जानना जरूरी है कि बुढ़ापा आता कैसे है?

लक्ष्य शर्मा बताते हैं कि जैसे-जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, वैसे-वैसे हमारे शरीर में सेन्सेंट कोशिकाओं (Senscent Cells) की मात्रा बढ़ने लगती है. यह कोशिकाएं उम्र संबंधी बीमारियों को बढ़ावा देने लगती हैं. जैसे- दिल, फेफड़े संबंधी बीमारियां, टाइप-2 डायबिटीज और हड्डियों से संबंधित बीमारियां जैसे- ऑस्टियोपोरोसिस, याद्दश्त खोना, दृष्टि कमजोर होना, सुनाई कम पड़ना, आर्थराइटिस आदि. अब अगर इन सेन्सेंट कोशिकाओं को दुरुस्त कर दिया जाए, तो ये बीमारियां हो ही न. इंसान बूढ़ा भी न हो. क्योंकि बुढ़ापे को अब धीरे-धीरे एक बीमारी की तौर पर माना जा रहा है. जिसे लेकर अमेरिका के BUCK इंस्टीट्यूट ऑफ एजिंग फेज-1 ह्यूमन ट्रायल्स चल रहे हैं. मेयो क्लीनिक साथ में टेस्टिंग कर रहे हैं. यूनिटी बायोटेक्नोलॉजी दवा कंपनी दवाएं बनाने लगे हैं. जेफ बेजोस इन्हें फंडिंग करते हैं. 

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बुढ़ापे की बीमारियों की दवा को लेकर क्या है लक्ष्य का 'लक्ष्य'

लक्ष्य शर्मा कहते हैं कि वो IIT दिल्ली में बायोसेपरेशन और बायोप्रोसेसिंग लेबोरेटरी में डॉ. अनुराग राठौड़ के निर्देशन में काम करेंगे. दवा बनने के बाद बीमार बुजुर्गों को देंगे. उसके बाद इसे सस्ता बनाने की कोशिश करेंगे. छोटे देशों में पहुंचाएंगे. सीनियर सिटिजन्स की मदद करेंगे. ये कोई लाइफस्टाइल मेडिसिन नहीं होगी. कुछ सालों में अपने देश में भी उम्र बढ़ना एक बीमारी मान ली जाएगी. फिर उनका इलाज होगा. WHO का एस्टीमेट 2012 से 2030 तक नॉन कम्यूनिकेबल डिजीसेस 1.30 लाख करोड़ रुपये खर्च करेगा. 

ये है लक्ष्य की वो किताब जिसमें वो सेनेसेंट कोशिकाओं, सिनोलिटिक रिसर्च और तकनीकों के बारे में बता रहे हैं.
ये है लक्ष्य की वो किताब जिसमें वो सेनेसेंट कोशिकाओं, सिनोलिटिक रिसर्च और तकनीकों के बारे में बता रहे हैं.

पहले कैंसर पर फिर बुढ़ापे को खत्म करने की रिसर्च में जुटे

लक्ष्य ने बताया कि वो चार साल से रिसर्च कर रहे हैं. दो साल से प्रोफेसर्स और कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं. इसके अलावा IIT-बॉम्बे, दिल्ली, रोपड़, जम्मू समेत कई तकनीकी संस्थानों से भी जुड़े हैं. मार्च में 12वीं की परीक्षा है. उसकी तैयारी भी कर रहे हैं. पिता संजय शर्मा निजी कंपनी में इंजीनियर हैं. मां अपर्णा शर्मा होम मेकर. बहन हर्षिता शर्मा डेटिंस्ट हैं. लक्ष्य ने बुढ़ापे में होने वाली बीमारियों, उसे ठीक करने की तकनीक और दवाओं को लेकर एक किताब भी लिखी है. जिसका नाम है Cellular Senescence & Secretory Phenotypes through the lens of Ageing, In Vivo Reprogramming Technology. IIT जम्मू के प्रोफेसर गौरव अशोक भादुड़ी ने कहा कि लक्ष्य अपनी उम्र के हिसाब से बेहतरीन काम कर रहे हैं. उनकी तकनीकी समझ अन्य स्टूडेंट्स की तुलना में ज्यादा अच्छी है.

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हाल ही में एक रिसर्च में सामने आई थे ये चौंकाने वाली बात

अंगूर के बीज में मिलने वाला यह रसायन अगर कीमौथैरेपी के साथ दिया जाए तो यह कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो सकता है. शंघाई स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ चाइनीज एकेडमी के साइंटिस्ट किसिया शू और उनके साथियों ने अंगूर के बीज में मौजूद इस रसायन के फायदों पर रिसर्च किया है. इस रसायन का नाम है प्रोसाइनीडिन सी1 (Procyanidin C1). इसे PCC1 भी कहते हैं. जब इस रसायन का असर सेन्सेंट कोशिकाओं पर देखा गया तो किसिया शू समेत अन्य वैज्ञानिक हैरान रह गए. इस रसायन की मदद से इंसान ज्यादा दिन युवा और बीमारियों से मुक्त रह सकता है. 

इस रसायनिक प्रक्रिया की पुख्ता जांच करने लिए किसिया शू ने दो साल की उम्र वाले 171 चूहों में प्रोसाइनीडिन सी1 (Procyanidin C1) रसायन डाला. दो साल के चूहे यानी 70 साल का इंसान. उन्होंने देखा कि बाकी चूहों की तुलना में इन चूहों की उम्र में 9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. साथ ही वो ज्यादा चुस्त और फुर्तीले हो गए. उनके शरीर से बुढ़ापे की कोशिकाएं खत्म हो चुकी थीं. सिर्फ युवा कोशिकाएं ही बची थीं. लक्ष्य कहते हैं कि इसलिए यह उम्मीद है भविष्य में वो ऐसी दवा बना सकें जिससे बुढ़ापे में होने वाली बीमारियां खत्म की जा सकें और ज्यादा लंबा जिया जा सके. 

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