दिसंबर 2016 में छत पर धूप ताप रही एक महिला के कंधे पर अचानक 12 किलो से ज्यादा का कोई टुकड़ा गिरा. साथ में कई टुकड़े उसकी छत पर भी बिखर गए. पता लगा कि ये टुकड़े ऊपर से गुजर रही फ्लाइट से लीक हुए थे. बर्फ के ठोस टुकड़े की तरह दिख रही ये चीज एयरलाइन्स यात्रियों का मलमूत्र थी. महिला का कंधा टूट गया. घटना मध्य प्रदेश के सागर शहर की थी. संबंधित एयरलाइन्स ने मामला उछलने के बाद महिला को हर्जाना देने की भी बात की थी.
जनवरी 2018 में भी ऐसी ही घटना घटी. गुरुग्राम के फाजिलपुर बादली गांव में जोर का धमाका हुआ. लोग आए तो देखा कि एक खेत के बीचोंबीच कुछ पड़ा हुआ है, जिसके चारों ओर बर्फ थी. उसे दूसरे ग्रह की चीज मानते हुए बहुत से लोग छोटे-छोटे टुकड़े घर लेकर चले गए. बाद में पता लगा कि वो एयरलाइन्स से गिरी ब्लू आइस थी, यानी मलमूत्र.
अमेरिका से लेकर लंदन में होते रहे हादसे
अगर आपको लगता है कि सिर्फ हमारे यहां ऐसा होता है तो आप गलत हैं. अमेरिका में साल 1979 से 2003 के भीतर 27 ऐसे वाकये डॉक्युमेंट हुए. ये डेटा पुराना है. हाल में ब्रिटेन के विंडसर कासल में भी फ्लाइट से ब्लू आइस गिरने की घटना रिपोर्ट हुई. हालांकि इन घटनाओं को रेयर मानते हुए एयरलाइन्स को अपना मेंटेनेंस बेहतर करने के लिए डपटा जा रहा है. वहीं एक समय ऐसा भी था, जब उड़ान भरती हुई फ्लाइट में ऐसा अक्सर हुआ करता.
शुरुआत में फ्लाइट में टॉयलेट बनाने के बाद कई दिक्कतें हुईं. जैसे गंदगी का वजन ही इतना होने लगा कि फ्लाइट्स ने यात्रियों की संख्या घटा दी. लेकिन ये समाधान नहीं था. उस दौरान टॉयलेट फुलप्रूफ भी नहीं हुआ करते. वो लीक होते हुए जमीन पर, कारों पर, इमारतों और यहां तक कि लोगों तक पर गिर जाते. फिर सरकारें इसपर जुर्माना लगाने लगीं ताकि एयरलाइन्स रखरखाव पर ध्यान दें.
ऐसा है आधुनिक इन-फ्लाइट टॉयलेट
साल 1975 में वर्जिनियन इंजीनियर जेम्स केंपर ने मॉडर्न एयरप्लेन टॉयलेट बनाया. इसमें बहुत मजूबती से काम करने वाले वैक्यूम सिस्टम के अलावा एक तरह का डिसइन्फेटिंग लिक्विड भी होता ताकि फ्लाइट में गंध न फैले. ये सिस्टम ऐसा है कि जैसे ही आप फ्लश बटन दबाएंगे, गंदगी पाइप से होते हुए एक सील्ड टैंक में पहुंच जाएगी. यहां ये फ्रीज हो जाएगी, और तभी खाली होगी, जब फ्लाइट अपनी मंजिल तक पहुंचे. हर एयरपोर्ट पर अंडरग्राउंड सीवेज सिस्टम होता है, जहां ये खाली कर दिया जाता है.
क्यों कहते हैं ब्लू आइस
ये एविएशन की टर्म है, जो फ्रोजन सीवेज के लिए इस्तेमाल होती है. ब्लू आइस इंसानी बायोवेस्ट और डिसइन्फेक्टेंट का मिश्रण है, जो ऊंचाई पर जाकर जम जाती है. डिसइन्फेक्टेंट के नीले रंग के कारण ये गंदगी बर्फ के नीले टुकड़े की तरह दिखती है.
प्लेन के लिए भी खतरा है बायोवेस्ट
कई बार प्लेन के सेप्टिक टैंक में लीकेज के कारण जमीन पर इसके गिरने से हादसे तो होते ही हैं, खुद फ्लाइट के लिए भी ब्लू आइस खतरा है. यूएस नेशनल ट्रांसपोर्टेशन सेफ्टी बोर्ड ने कई बार इसके खतरों को लेकर आगाह किया. बोइंग 727 में ब्लू आइस लीक होकर सीधे एक इंजन से टकराई, जिससे बिजली चली गई. फ्लाइट की इमरजेंसी लैंडिंग करवाई गई. हादसे में किसी की जान नहीं गई, लेकिन इसके बाद से एयरलाइन्स बायोवेस्ट को लेकर ज्यादा सतर्क रहने लगीं.