अंटार्कटिका (Antarctica) की समुद्री बर्फ हाल ही में अपने सबसे न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई है. जब से सैटेलाइट के ज़रिए इसका रिकॉर्ड रखना शुरू हुआ है, तब से ये लगातार दूसरा साल है जब बर्फ अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंची है.
ये समुद्री बर्फ समुद्री पानी के जमने से बनती है, जो पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों के आसपास, समुद्र की सतह पर तैरती है. मीठे पानी की बर्फ की तुलना में, यह करीब शून्य से 1.8 डिग्री सेल्सियस पर बहुत कम तापमान पर बनती है. समुद्री बर्फ सर्दियों के दौरान तब तक बनती है जब तक कि यह अपनी अधिकतम सीमा तक नहीं पहुंच जाती. फिर गर्मियों में ये बर्फ पिघलकर अपनी न्यूनतम सीमा तक पहुंच जाती है.
अंटार्कटिका में समुद्री बर्फ आमतौर पर सितंबर में अपनी अधिकतम सीमा तक पहुंच जाती है. तब समुद्री बर्फ करीब 185 लाख वर्ग किलोमीटर हिस्से को ढ़क लेती है. नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर (NSIDC) के मुताबिक, फरवरी के अंत में, जब बर्फ अपने न्यूनतम स्तर पर होती है, तो सिर्फ़ 25 लाख वर्ग किमी हिस्सा ही बचता है.
पिछले साल, समुद्री बर्फ की न्यूनतम सीमा 20 लाख वर्ग किमी से कम थी. जब से बर्फ का आधुनिक रिकॉर्ड रखा जा रहा है, उसके बाद से यह सीमा सबसे कम है. वैज्ञानिकों ने 1979 में सैटेलाइट के ज़रिए समुद्री बर्फ को रिकॉर्ड करना शुरू किया था. इस साल 21 फरवरी को यह संख्या घटकर सिर्फ 18 लाख वर्ग किमी रह गई, जो कि 1981 और 2010 के बीच के औसत से करीब 40% कम है.
नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के मुताबिक, जनवरी में पड़ी असाधारण गर्मी के बाद यह आंकड़ा अपेक्षित था. 174 साल पहले जब बर्फ का रिकॉर्ड रखना शुरू हुआ था, उसके बाद से ये सातवां सबसे गर्म स्तर था. कहा जा रहा है कि मानव जनित जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाले दशकों में अंटार्कटिका की न्यूनतम समुद्री बर्फ की मात्रा में कमी जारी रहेगी.
वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
वरिष्ठ रिसर्च साइंटिस्ट टेड स्कैम्बोस (Ted Scambos), का कहना है कि समुद्री बर्फ की निचली सीमा का मतलब है कि समुद्र की लहरें विशाल बर्फ की चादर के तट को हिला देंगी, और इससे अंटार्कटिका के चारों ओर बर्फ की शेल्फ़ और कम हो जाएंगी.
आइस शेल्फ़ में होने वाली अस्थिरता, बड़े पैमाने पर पाइन द्वीप और थवाइट्स ग्लेशियरों के लिए खतरा पैदा कर सकती है. थवाइट्स ग्लेशियर को आमतौर पर डूम्सडे ग्लेशियर के तौर पर जाना जाता है, जो पहले के मुकाबले थोड़ी धीमी गति से पिघलने के बावजूद, अभी भी आपदा के करीब है.
NSIDC के एक वरिष्ठ रिसर्च साइंटिस्ट और कनाडा में मैनिटोबा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जुलिएन स्ट्रोव (Julienne Stroeve) का कहना है कि अगर ये ग्लेशियर जमीनी बर्फ को ज़्यादा तेजी से नुकसान पहुंचाना शुरू करते हैं, तो इससे सदी के अंत से पहले ही समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर ट्रिगर हो सकती है.
Antarctica's sea ice reaches its lowest level since records began, for the 2nd year in a row https://t.co/r57b7xtjxc pic.twitter.com/EDpC2vwCqP
— SPACE.com (@SPACEdotcom) April 3, 2023
ध्रुवों पर रहने वाले जानवरों के लिए समुद्री बर्फ ज़रूरी है. जैसे अंटार्कटिका में पेंगुइन और आर्कटिक में पोलर बियर, जो बर्फ में ही शिकार करते हैं. समुद्री बर्फ भी अंटार्कटिका पर बर्फ को स्थिर रखने में मदद करती है. समुद्री बर्फ सूर्य की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर देती है, जो पृथ्वी को ठंडा करने में मदद करती है. समुद्री बर्फ का निचला स्तर परावर्तित प्रकाश यानी अल्बेडो को भी कम करता है, जो ग्लोबल वार्मिंग को और बढ़ाएगा.