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बिना बादल के दिल्ली में कैसे होगी बारिश... जानिए Artificial Rain पर कितना आएगा खर्च?

दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी की सरकार इस बार ठंड में प्रदूषण से बचने के लिए कृत्रिम बारिश का सहारा ले सकती है. मन पूरा बना चुकी है. लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या आर्टिफिशियल रेन करवाना इतना आसान है? बारिश की गारंटी है? कितने दिन प्रदूषण कम रहेगा इससे? इस काम में कितना खर्च आएगा?

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कृत्रिम बारिश की तैयारी में है दिल्ली की सरकार, जानिए इस बारिश का प्रोसेस क्या होगा और ये किस तरह के फायदे कर सकती है.
कृत्रिम बारिश की तैयारी में है दिल्ली की सरकार, जानिए इस बारिश का प्रोसेस क्या होगा और ये किस तरह के फायदे कर सकती है.

दिल्ली में नई सरकार बनी है. फिर अक्टूबर-नवंबर का वही महीना आ रहा है, जब प्रदूषण का स्तर चरम पर रहता है. इसलिए सरकार की तैयारी है कि इस बार ठंड के मौसम में आर्टिफिशियल बारिश करवाई जाए. इससे स्मोग और प्रदूषण से कुछ दिनों की निजात मिल जाती है. लेकिन ये सवाल भी तो उठ रहे हैं.

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कितने दिन प्रदूषण से निजात मिलेगी?
कृत्रिम बारिश में कितना खर्च आएगा?
इसकी असल में जरूरत है भी क्या?  

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Artificial Rain In Delhi

पिछली साल दिल्ली सरकार की योजना थी कि वो 20 और 21 नवंबर को दिल्ली के ऊपर आर्टिफिशियल रेन करवाएंगे. इस काम की जिम्मेदारी IIT कानपुर को दी गई थी. संभवतः इस बार भी उसे ही दी गई है. 

कृत्रिम बारिश के लिए क्या-क्या जरूरी है? 

पहली हवा की गति और दिशा. दूसरी आसमान में 40 फीसदी बादल होने चाहिए. उसमें पानी होना चाहिए. अब इन दोनों स्थितियों में थोड़ा बहुत उन्नीस-बीस चल जाता है. लेकिन ज्यादा अंतर हुआ तो दिल्ली पर कृत्रिम बारिश कराने का ट्रायल बेकार साबित हो सकता है. या इसका गलत असर हो सकता है.  

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कैसे होती है आर्टिफिशियल बारिश? 

कृत्रिम बारिश के लिए वैज्ञानिक आसमान में एक तय ऊंचाई पर सिल्वर आयोडाइड, ड्राई आइस और साधारण नमक को बादलों में छोड़ते हैं. इसे क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहते हैं. जरूरी नहीं कि इसके लिए विमान से बादलों के बीच उड़ान भरी जाए. यह काम बैलून या रॉकेट से भी कर सकते हैं.  

Artificial Rain In Delhi

इन सभी कार्यों के लिए बादलों का सही सेलेक्शन जरूरी है. सर्दियों में बादलों में पर्याप्त पानी नहीं होता. इतनी नमी नहीं होती कि बादल बनें. मौसम ड्राई होगा तो पानी की बूंदे जमीन पर पहुंचने से पहले ही भांप बन जाएंगी. 

कृत्रिम बारिश से प्रदूषण कम होगा क्या? 

अभी तक इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिले हैं कि ऐसी बारिश से प्रदूषण कम होगा या नहीं. या कितना कम होगा. क्लाउड सीडिंग के लिए छोटे सेसना या उसके जैसे विमान से सिल्वर आयोडाइड को हाई प्रेशर वाले घोल का बादलों में छिड़काव होता है. इसके लिए विमान हवा की दिशा से उल्टी दिशा में उड़ान भरता है. 

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सही बादल से सामना होते ही केमिकल छोड़ दिया जाता है. इससे बादलों का पानी जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है. जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जम जाते हैं. कण इस तरह से बनते हैं जैसे वो कुदरती बर्फ हों. इसके बाद बारिश होती है.   

Artificial Rain In Delhi

एक बार बारिश की लागत 10-15 लाख रुपए

दिल्ली में अगर कृत्रिम बारिश होती है, तो उस पर करीब 10 से 15 लाख रुपए का खर्च आएगा. अब तक दुनिया में 53 देश इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं. कानपुर में छोटे विमान से इस आर्टिफिशियल रेन के छोटे ट्रायल किए गए हैं. कुछ में बारिश हुई तो कुछ में सिर्फ बूंदाबांदी. दिल्ली में 2019 में भी आर्टिफिशिल बारिश की तैयारी की गई थी. लेकिन बादलों की कमी और ISRO के परमिशन की वजह से मामला टल गया था. 

क्या कहते हैं वैज्ञानिक? 

वैज्ञानिकों के अनुसार कृत्रिम बारिश स्मोग या गंभीर वायु प्रदूषण का स्थाई इलाज नहीं है. इससे कुछ देर के लिए राहत मिल सकती है. 4-5 या 10 दिन. दूसरा खतरा ये है कि अगर अचानक तेज हवा चली तो केमिकल किसी और जिले के ऊपर जा सकता है. आर्टिफिशियल बारिश दिल्ली में होने के बजाय मेरठ में हो गई तो सारी मेहनत बेकार. इसलिए बादलों और हवा के सही मूवमेंट की गणना भी जरूरी है.  

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