डायबिटीज को कंट्रोल करना बेहद मुश्किल माना जाता है. ऐसे में इलाज की हर पद्धत्ति पर लोग भरोसा भी नहीं करते. डायबिटीज को लेकर आयुर्वेदिक दवाओं पर रिसर्च कम होते हैं. इसलिए उनकी खासियत पता नहीं चलती और उपयोग भी कम होता है. हाल ही में एक ऐसा रिसर्च हुआ है, जिसमें पता चलता है कि एक आयुर्वेदिक दवा ऐसी है जो डायबिटीज को नियंत्रित करती ही है, वह क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को भी दुरुस्त कर देती है.
पंजाब में मौजूद चितकारा यूनिवर्सिटी के कॉलेज ऑफ फॉर्मेसी के रिसर्चर रवींद्र सिंह और उनकी टीम ने डायबिटीज से पीड़ित 100 लोगों पर चौथे स्टेज का क्लीनिकल ट्रायल किया. उन्होंने मरीजों को दो हिस्सों में बांटा. एक हिस्से को एलोपैथिक दवा सीटाग्लिप्टिन और दूसरे को आयुर्वेदिक बीजीआर-34 दवा दी गई. सर्बियन जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिक रिसर्च में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार मरीजों को दो समूह में रखा गया और डबल ब्लाइंड ट्रायल किए गए. यानी मरीजों को बिना बताए ये दवाएं दी गईं.
स्टडी में पता चला कि आयुर्वेदिक दवा न सिर्फ मधुमेह रोगियों में शुगर के लेवल को कम करती है बल्कि अग्नाशय में बीटा कोशिकाओं की कार्यप्रणाली में भी सुधार करती है. स्टडी के दैरान कुछ दिन तक निगरानी के बाद जब परिणाम सामने आया तो पता चला कि मधुमेह उपचार में आयुर्वेदिक दवा काफी असरदार है. पहले नतीजे में ग्लाइकेटेड हेमोग्लोबिन (एचबीए1सी) की बेसलाइन में गिरावट आने की जानकारी मिली. वहीं रैंडम शुगर जांच में भी दवा का असर मिला.
स्टडी के अनुसार ट्रायल शुरू करते समय रोगियों में एचबीए1सी की बेसलाइन वेल्यू 8.499% थी लेकिन आयुर्वेदिक दवा लेने वाले मरीजों में चार सप्ताह के बाद यह वैल्यू कम होकर 8.061%. आठ सप्ताह बाद 6.56% और 12 सप्ताह बाद 6.27% तक आ गई. बता दें कि बीजीआर-34 को वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की लखनऊ स्थित दो प्रयोगशालाओं सीमैप एवं एनबीआरआई ने विकसित किया है. इसे एमिल फार्मास्युटिकल ने बाजार में उतारा है.