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खतरे में हैे ब्लू व्हेल, रोज़ाना माइक्रोप्लास्टिक के करोड़ों टुकड़े निगल जाती है दुनिया की सबसे बड़ी मछली

दुनिया के सबसे बड़े जानवर हैं ब्लू व्हेल. वैज्ञानिकों ने इनके स्वास्थ को लेकर चिंता जताई है. उनका कहना है कि व्हेल रोजाना कई किलो माइक्रोप्लास्टिक निगल रही हैं. क्योंकि समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण विकराल हो चुका है. ये प्लास्टिक इतनी बड़ी संख्या में व्हेल के शरीर में जा रहा है, इससे व्हेलों के स्वास्थ्य पर असर पड़ा सकता है.

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ब्लू व्हेल हर रोज़ कई किलो प्लास्टिक खाने के साथ खा रही हैं (Photo: pexels/silvana palacios)
ब्लू व्हेल हर रोज़ कई किलो प्लास्टिक खाने के साथ खा रही हैं (Photo: pexels/silvana palacios)

ब्लू व्हेल (Blue Whale) पृथ्वी के सबसे बड़े जानवर हैं. ये विशालकाय शक्तिशाली जीव हैं जो हर दिन कई टन खाना खा जाते हैं. लेकिन इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण का प्रभाव अब इनपर भी पड़ने लगा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, ये व्हेल अब भारी मात्रा में प्लास्टिक खा रही हैं, क्योंकि समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण विकराल हो चुका है. प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण (Microplastic) समुद्र को खराब कर रहे हैं. 

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शोधकर्ताओं ने हाल ही में अमेरिकी प्रशांत तट (U.S. Pacific coast) से बेलीन व्हेल (Baleen whales) की तीन प्रजातियों- ब्लू व्हेल (Blue whale), फिन व्हेल (Fin whale) और हंपबैक व्हेल (Humpback whale) द्वारा खाए गए माइक्रोप्लास्टिक्स की मात्रा का एक अनुमान पेश किया है. उन्होंने इन समुद्री स्तनधारियों के स्वास्थ को लेकर चिंता जताई है.

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ब्लू व्हेल रोज करीब 43.5 किलो प्लास्टिक निगल सकती है (Photo: bart-van-meele/unsplash)

बेलीन व्हेल प्रजाति फिल्टर-फीडर हैं. यानी ये खाना फिल्टर करके खाती हैं. इनके मुंह में बलीन प्लेटें लगी होती हैं, जिनकी मदद से ये अपना खाना छान लेती हैं. इनके खाने में छोटे जीव या झींगे जैसे क्रस्टेशियंस, जिन्हें क्रिल कहा जाता है, शामिल होते हैं. बेलन प्लेटें किराटिन (Keratin) की बनी होती हैं, जो हमारे नाखूनों में पाया जाता है. 

एक शोध के मुताबिक, ब्लू व्हेल प्रतिदिन करीब 1 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े या करीब 43.5 किलो प्लास्टिक निगल सकती है. फिन व्हेल का मुख्य शिकार भी क्रिल है. ये भी रोजाना करीब 0.6 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े या करीब 26 किलो प्लास्टिक निगल जाती है.

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कुछ हंपबैक व्हेल क्रिल खाती हैं, और कुछ छोटी मछलियां खाती हैं. शोध के मुताबिक, हम्पबैक रोज़ाना करीब 0.4 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े यानी करीब 17 किलो प्लास्टिक निगल सकती है, जबकि बाकी मछलियां भी बहुत कम मात्रा में, करीब 2 लाख माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े ले सकती हैं.

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हम्पबैक रोज़ाना करीब 17 किलो प्लास्टिक निगल सकती है (Photo: pexels/aurore murguet)

जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित शोध के सह-लेखक और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के समुद्री जीवविज्ञानी मैथ्यू सावोका (Matthew Savoca) का कहना है कि अमेरिका के पश्चिमी तट के कम प्रदूषित पानी में भी बेलीन व्हेल अब भी लाखों माइक्रोप्लास्टिक्स और माइक्रोफाइबर हर दिन निगल रही हैं. उनका कहना है कि हमें यह भी पता लगा है कि 99% मछलियां अपने शिकार के जरिए ही प्लास्टिक का सेवन कर रही हैं, यानी उन मछलियों को खाकर जिन्होंने पहले ही प्लास्टिक खाया हुआ है. 

शोध में बताया गया है कि कैसे बेलीन व्हेल अपने भोजन के तरीके, उनके खाने मात्रा, और कैलिफ़ोर्निया करंट जैसे प्रदूषित इलाकों में रहने के कारण, माइक्रोप्लास्टिक्स खाकर खतरे में हैं. ब्लू व्हेल ज्यादातर करीब 100 फीट लंबी होती है, फिन व्हेल करीब 80 फीट और हम्पबैक व्हेल करीब 50 फीट तक लंबी होती है.

शोधकर्ताओं ने 126 ब्लू व्हेल, 65 हंपबैक व्हेल और 29 फिन व्हेल के खान-पान के व्यवहार की जांच की और रोजाना खाए जाने वाले माइक्रोप्लास्टिक का अनुमान लगाया. इसके लिए उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक टैग डिवाइस सक्शन-कप का इस्तेमाल किया जिसे व्हेल की पीठ पर लगाया गया था. इसके साथ एक कैमरा, माइक्रोफोन, जीपीएस लोकेटर और एक ऐसा डिवाइस लगाया था दो व्हेल के मूवमेंट को ट्रेक करता है. फिर उन्होंने कैलिफ़ोर्निया करंट में माइक्रोप्लास्टिक्स की सांद्रता पर ध्यान दिया.

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व्हेल 165-820 फीट की गहराई पर भोजन करती हैं (Photo: David Mark/Pixabay)

पिछले साल इन्हीं व्हेल पर किए गए शोध में पाया गया था कि ब्लू व्हेल रोजाना करीब 10-20 टन क्रिल खाती हैं, जबकि फिन व्हेल 6-12 टन क्रिल खाती हैं और हंपबैक व्हेल 5-10 टन क्रिल या 2-3 टन मछली खाती हैं. अब नए अध्ययन में पाया गया है कि व्हेल मुख्य रूप से 165-820 फीट की गहराई पर भोजन करती हैं, जहां सबसे ज्यादा माइक्रोप्लास्टिक पाया जाता है. 

माइक्रोप्लास्टिक प्लास्टिक, प्लास्टिक के मलबे के कण होते हैं. ये करीब 5 मिमी लंबे होते हैं जो अलग-ललग किस्म के उपभोक्ता उत्पादों और औद्योगिक कचरे से आते हैं. हाल के दशकों में महासागरों में उनकी सांद्रता बढ़ रही है. व्हेल के ये प्लास्टिक खाने से होने वाले संभावित स्वास्थ्य प्रभावों के बारे में अभी जानकारी नहीं है.

 

कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी की समुद्री जीवविज्ञानी और शोध की मुख्य लेखक शिरेल कहाने-रेपोर्ट (Shirel Kahane-Rapport) का कहना है कि व्हेल के स्वास्थ्य प्रभावों को जानना हमारे शोध का फोकस नहीं था, लेकिन बाकी शोधों से पता चला है कि अगर प्लास्टिक काफी छोटे हैं तो वे आंत की दीवार को पार कर, आंतरिक अंगों में प्रवेश कर सकते हैं. हालांकि इसके दीर्घकालिक प्रभाव अभी भी स्पष्ट नहीं हैं. 

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