कुछ दिनों पहले दुनिया के सबसे रईस लोगों में से एक, फ्रांसीसी बिजनेसमैन बर्नार्ड अरनॉल्ट ने अपना जेट बेच दिया. अब वे भाड़े के विमान से यात्राएं करेंगे. अरनॉल्ट के इस फैसले की एक वजह कार्बन फुटप्रिंट छोटा करना भी थी. नामी-गिरामी लोग दुनिया को प्रदूषण से बचाने के लिए ऐसी कोशिशें कर रहे हैं, तो आम लोग भी कहां पीछे रहेंगे. अब कई यूरोपीय देश नाइटक्लबों की मदद से प्रदूषण घटा रहे हैं. नाइटक्लब जाइए, जमकर नाचिए, और क्लाइमेट चेंज को रोकिए.
क्लब में झूमकर नाचने से प्रदूषण रोकने में मदद मिल सकती है, ये जानने से पहले समझते हैं कि कार्बन फुटप्रिंट क्या है. कोई शख्स, पशु, वस्तु या संस्था अपने कामों से पर्यावरण में जितनी ग्रीनहाउस गैस निकालती है, उसे कार्बन फुटप्रिंट कहते हैं. इस गैस के कारण ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है, जिसका सीधा असर दिखता है क्लाइमेट चेंज के रूप में.
इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर आप अपनी बड़ी सी कार से दफ्तर जाएं तो आपका फुटप्रिंट उस आदमी से कहीं ज्यादा होगा, जो बस या ट्रेन या मेट्रो इस्तेमाल करता है. हम क्या खाते हैं, से लेकर किस तरह का क्रीम-पावडर लगाते हैं- ये भी तय करता है कि हम पर्यावरण को कितना ज्यादा या कम नुकसान कर रहे हैं.
अब जानते हैं कि कैसे क्लब में डांस पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकता है. दरअसल नाचने या तेजी से मूव करने के दौरान हमारे शरीर से जो एनर्जी निकलती है, उसे जमा करके बिजली बनाने का काम हो सकता है. वही बिजली, जिससे घरों-दफ्तरों में सारे काम होते हैं.
हल्का-फुल्का डांस करते हुए शरीर से लगभग 250 वाट एनर्जी पैदा होता है. लेकिन म्यूजिक अगर तेज हो, और आपका पसंदीदा भी हो, तो ये एनर्जी बढ़कर 500 से 600 वाट भी हो जाती है. इसी थर्मल एनर्जी को दीवारों और छत पर लगी पाइप्स के सहारे जमा किया जाता है, जहां से उसे जमीन के नीचे भेज दिया जाता है. यहां से एनर्जी का इस्तेमाल, जहां जरूरत हो, वहां हो सकता है.
कई नाइटक्लब इस दिशा में काम कर रहे हैं. जैसे हाल ही में ग्लासगो में इसकी शुरुआत हुई. यहां एक मल्टी-वेन्यू कॉम्प्लेक्स बनाया गया, जिसमें बड़े-बड़े कन्सर्ट होते. यहां थिरक रहे लोगों की एनर्जी को जमा करने का काम लिया एक जिओथर्मल स्टार्टअप ने, जिसका नाम है टाउनरॉक एनर्जी. ये तेज म्यूजिक बजाएगा, लोग नाचेंगे, और उनसे निकल रही एनर्जी सेव कर ली जाएगी.
प्रयोग अभी शुरुआत चरण में है, लेकिन अभी से इसपर खूब बात हो रही है. कई जगहों पर इलेक्ट्रिक फ्लोर भी बनाया जा रहा है ताकि बॉडी हीट को सीधे जमा किया जा सके. ये एक किस्म की रिन्यूएबल एनर्जी होगी, जो लगातार पैदा हो सकेगी.
लंदन की कंपनी पेवेगन भी बॉडी हीट पर काम कर रही है, लेकिन दूसरे अंदाज में. पैदल चलने वाले लोग जब इलेक्ट्रोमैग्नेटिक जेनरेटर पर पांव रखते हैं, जो कि टाइल्स के नीचे होता है, तो उनकी एनर्जी जमा हो जाती है. यानी इंसान का हर कदम ऊर्जा दे रहा है. ये टाइल्स अब अमेरिका तक जा चुकी हैं.
यहां ये समझना भी जरूरी है कि हमारे पास एनर्जी के रिन्यूएबल जरिए बहुत कम हैं. जमीन के नीचे जमा तेल या गैस एक न एक दिन खत्म हो जाएंगे. और जिस तेजी से हम ऊर्जा खर्च कर रहे हैं, वो दिन बहुत जल्दी आ जाएगा. यही कारण है कि वैज्ञानिक रिन्यूएबल सोर्स ऑफ एनर्जी पर जोर दे रहे हैं, जैसे सूरज की गर्मी से पैदा होने वाली ऊर्जा.
वैसे अगर आप सोच रहे हों कि शरीर की गर्मी से भला क्या हो सकता है, तो बता दें कि हमारा सेलफोन लगभग 1 वाट एनर्जी लेता है और लैपटॉप 45 वाट. जबकि एक सोता हुआ इंसान भी लगभग 70 वाट एनर्जी पैदा करता है. इसी कंसेप्ट को लेकर काफी पहले साल 2006 में रूसी वैज्ञानिक व्लादिमीर लेओनॉव ने शरीर की ऊर्जा से मेडिकल उपकरण चलाने में कामयाबी पाई थी. खास बात ये थी कि सोए हुए मरीजों की ऊर्जा से ये किया जा सकता था. चर्चा पाने के बाद भी किन्हीं वजहों से उपकरण बाजार में नहीं आ सके.