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क्या शादियों में बजता तेज म्यूजिक बन रहा हार्ट अटैक की वजह? DJ को लेकर बेहद डराने वाली है ये स्टडी

हमारे कान सन्नाटे तक की आवाज सुन सकते हैं, जो 0 से 5 डेसिबल तक होती है. 70 डेसिबल तक आवाज परेशान नहीं करती. वहीं चौबीस घंटों में 5 डेसिबल की बढ़त से Heart Attack और स्ट्रोक का खतरा 34% तक बढ़ जाता है. इससे दरअसल दिल की धड़कनें अनियमित हो जाती हैं, जो अचानक हार्ट अटैक का कारण बन सकती हैं.

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कानफाड़ू म्यूजिक से दिल की धड़कनें बढ़ या रुक भी सकती हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
कानफाड़ू म्यूजिक से दिल की धड़कनें बढ़ या रुक भी सकती हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

शादी-ब्याह के दौरान डांस करते हुए सेहतमंद दिखते लोगों की भी हार्ट अटैक से जान जा रही है. ऐसे ही एक हादसे की खबर बिहार के सीतामढ़ी से भी आई, जिसमें रस्मों के दौरान ही दूल्हे की मौत हो गई. माना जा रहा है कि डीजे की तेज आवाज से उसे दिल का दौरा पड़ा. वैसे संगीत का दिल से सीधा कनेक्शन है. अच्छा संगीत जहां दिल के मरीजों के लिए जादू का काम करता है, वहीं कानफाड़ू म्यूजिक से दिल की धड़कनें बढ़ या रुक भी सकती हैं. 

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किन लोगों पर हुआ अध्ययन

यूरोपियन हार्ट जर्नल में नवंबर 2019 में हार्वर्ड एजुकेशन की एक स्टडी छपी, जिसमें बताया गया कि म्यूजिक या किसी भी किस्म की तेज आवाज कैसे दिल को कमजोर बनाती है. शोधकर्ताओं ने 5 सौ वयस्कों, जो पूरी तरह स्वस्थ थे, के दिल की लगभग पांच साल तक स्टडी की. ये लोग व्यस्त सड़कों के आसपास रहने या काम करने वाले लोग थे, जहां दिनरात गाड़ियों की आवाज गूंजती. पांच सालों के दौरान अच्छे-खासे स्वस्थ दिल वाले लोग भी कार्डियोवस्कुलर बीमारियों से जूझते दिखे. 

किस हद तक हो सकता है जोखिम

स्टडी की फाइंडिंग्स की मानें तो चौबीस घंटों में हर 5 डेसिबल की बढ़त से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 34% तक बढ़ जाता है. यहां तक कि इससे ब्रेन के एमिग्डेला पर भी असर होता है. ये वो हिस्सा है, जो भावनाओं और फैसला लेने की क्षमता को लीड करता है. क्रॉनिक नॉइस एक्सपोजर से ये हिस्सा सिकुड़ने लगता है, जिससे आक्रामकता और मूड स्विंग्स जैसी दिक्कतें आने लगती हैं. 

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म्यूजिक या किसी भी किस्म की तेज आवाज दिल को कमजोर बनाती है. सांकेतिक फोटो (Pixabay)

धड़कनों का अनियमित होना देता है दिक्कत

इसी तरह की एक स्टडी जर्मनी के मेन्ज यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर में भी हुई. 35 से 74 साल के 15 हजार लोगों को स्टडी का हिस्सा बनाया गया. इसमें पाया गया कि चाहे संगीत हो, या शोर, एक लिमिट के बाद उसकी आवाज का बढ़ना दिल को काबू से बाहर करने लगता है. हार्ट रेट इतनी ज्यादा हो जाती है, जैसे लंबी कसरत या दौड़ने के बाद होती है. दिल की धड़कनों के अनियमित होने को आर्टियल फाइब्रिलेशन (AFib) कहा जाता है. इससे दिल का दौरा पड़ने, ब्रेन स्ट्रोक और ब्लड क्लॉट होने जैसे खतरे रहते हैं. 

वैज्ञानिकों ने माना कि कोई भी एक्टिविटी जो ब्लड प्रेशर बढ़ाए, वो फाइब्रिलेशन को ट्रिगर कर सकती है. तेज आवाज से भी यही होता है. इसमें हार्ट के ऊपरी दो चैंबरों में खून सही तरीके से नहीं पहुंच पाता, जिससे लोअर चैंबर्स का ब्लड फ्लो भी गड़बड़ा जाता है. ये हार्ट अटैक का जोखिम बढ़ा देता है. 

कितनी हल्की या तेज आवाज सुन सकते हैं हम

इससे पहले तेज आवाज पर ज्यादातर स्टडीज इसी तरह की होती रहीं कि इससे कानों पर क्या असर होता है. ज्यादातर अध्ययनों में माना गया कि हमारे लिए 60 डेसिबल तक की आवाज सामान्य है, इससे ज्यादा आवाज से कान के परदों पर असर हो सकता है. हम जो भी सुनते हैं, साइंस में उसे डेसिबल पर मापा जाता है. पत्तों के गिरने या सांसों की आवाज को 10 से 30 डेसिबल के बीच रखा जाता है. ये वो आवाजें हैं, जो पूरे समय हमारे साथ होती हैं, लेकिन परेशान नहीं करतीं. 

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सांकेतिक फोटो (Unsplash)

15 मिनट तक इतनी आवाज सुनना खतरनाक

बातचीत की आवाज 50 से 70 डेसिबल तक होती है, जो आमतौर पर खराब नहीं लगती. इससे ऊपर की हर आवाज परेशान करने वाली मानी जाती है. माना जाता है कि अगर कोई रोज 15 मिनट से ज्यादा 100 डेसिबल पर संगीत भी सुने तो उसके सुनने की क्षमता पर असर होने लगता है. इससे ऊपर का संगीत हो तो कानों से ये असर दिल और दिमाग तक जाता है. 

पिछले साल ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सेफ लिसनिंग के लिए एक मानक करने की बात कहते हुए कहा कि म्यूजिक क्लब या कंसर्ट में जाने वाले 12 से 35 साल के लोग अपनी सुनने की क्षमता खो रहे हैं. इनमें से लगभग 40 प्रतिशत टीनएजर और यंग एडल्ट कानों और दिल को कमजोर करने वाली आवाज से एक्सपोज हो रहे हैं. 

भारतीय एक्सपर्ट भी जता रहे सहमति
फोर्टिस हॉस्प‍िटल के कॉर्ड‍ियोलॉजिस्ट व चेयरमैन डॉ अजय कौल कहते हैं कि म्यूजिक एक तरफ जहां थेरेपी का काम करता है, वहीं दूसरी तरफ हद से ज्यादा तेज म्यूजिक या साउंड नकारात्मक प्रभाव देता है. जो साउंड सूदिंग इफेक्ट देते हैं, उनका इस्तेमाल नींद और दूसरी मानसिक समस्याओं के इलाज में इस्तेमाल होता है. वहीं 60 डेसिबल से ज्यादा लाउड म्यूजिक हुआ तो ये बहुत ज्यादा हानिकारक हो सकता है. इससे हार्ट एरिदमिया या इसे इररेगुलर हार्ट बीट्स भी बोलते हैं, ये समस्या हो सकती है. इससे आपके दिल की धड़कन असामान्य और अनियमित हो जाती है. Arrhythmia कई बार हार्ट अटैक की तरफ इशारा करता है. 

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कार में भी न रखें लाउड म्यूजिक
ध्वनि प्रदूषण या बहुत ज्यादा लाउड म्यूजिक, ज‍िससे आपको लगे कि आपकी हृदयगत‍ि अनियमित हो रही है तो इससे बचें. ये हृदय के लिए नुकसानदायक है. न सिर्फ हार्ट बल्क‍ि ध्वनि प्रदूषण से कई तरह के प्रॉब्लम होते हैं. ऐसे लोगों को रेस्ट नहीं मिलता या नींद पूरी नहीं होती. लोगों में हाइपरटेंशन, एंजाइटी की समस्या हो सकती है. बहुत से लोग लाउड बीट्स बर्दाश्त नहीं कर पाते. जिनको हार्ट की बेसिक प्रॉब्लम्स हो वो बर्दाश्त नहीं कर पाते. जिस म्यूजिक में हाई बेस होता है, उसे हार्ट की छोटी सी समस्या से जूझ रहे लोग बर्दाशत नहीं कर पाते. इसलिए न सिर्फ शादी-बारात, फंक्शन या क्लब के तेज म्यूजिक से बचना चाहिए बल्क‍ि अपनी कार में भी बहुत लाउड म्यूजिक नहीं रखना चाहिए. कई बार ये भी नुकसानदायक हो सकता है. 

 

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