इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने आज यानी 20 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 का चौथा ऑर्बिट बदल दिया. इसके बाद एक बार और ऑर्बिट बदला जाएगा. फिर चंद्रयान-3 चंद्रमा के लिए निर्धारित लंबे लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में चला जाएगा. यह रास्ता ही पृथ्वी और चंद्रमा के बीच का हाइवे है. चंद्रयान की पेरीजी और एपोजी बदली गई है. अब चंद्रयान 71,351 किलोमीटर की एपोजी और 233 किलोमीटर की पेरीजी में चक्कर लगा रहा है.
चौथे ऑर्बिट मैन्यूवर के बाद पांचवां जल्दी ही किया जाएगा. अब तक अर्थ बाउंड ऑर्बिट मैन्यूवर हो रहे थे. यानी धरती के चारों तरफ चंद्रयान-3 की कक्षाएं बदली जा रही थीं. फिलहाल चंद्रयान 71,351 किलोमीटर की एपोजी वाली ऑर्बिट में चक्कर लगा रहा है. इसरो वैज्ञानिकों का लक्ष्य है कि वो 31 जुलाई तक चंद्रयान-3 को एक लाख किलोमीटर वाली ऑर्बिट तक पहुंचा दे. ताकि उसके बाद हाइवे पर जाने के लिए स्लिंगशॉट किया जाए.
चौथे और पांचवें अर्थ बाउंड मैन्यूवर में भी एपोजी यानी धरती की सतह से चंद्रयान-3 की लंबी दूरी ही बदली जाएगी. अगली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग 25 जुलाई 2023 की दोपहर 2 से 3 बजे के बीच होगी. इसके बाद इसे लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में डाला जाएगा.
हाइवे पर पांच दिन यात्रा करेगा चंद्रयान-3
फिलहाल इसरो ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि यह कितना होगा. इसके लिए कितनी देर तक इंजन ऑन करना होगा. जल्द ही यह पता चल जाएगा. लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी में वह पांच दिन यात्रा करेगा. 5-6 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की ऑर्बिट को पकड़ने की कोशिश करेगा. एक बार चंद्रमा की ग्रैविटी में फंसकर ऑर्बिट को पकड़ लिया तो उस पर उतरना आसान होगा. एक बड़ी मुश्किल से छुटकारा मिल जाएगा.
चंद्रमा का ऑर्बिट पकड़ना होगा चुनौती
अगर ऑर्बिट नहीं पकड़ाया तो चंद्रयान चंद्रमा के पीछे चला जाएगा. इसलिए हाइवे से चंद्रमा के ऑर्बिट में जाना, चंद्रयान के लिए कठिन और इसरो वैज्ञानिकों ने लिए चुनौतीपूर्ण होगा. हालांकि चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन सिस्टम को चालू किया जाएगा. चंद्रमा की कक्षा की ओर धकेला जाएगा. यानी चंद्रमा की 100X100 KM की कक्षा में डाला जाएगा.
चंद्रमा पर उतरने के लिए कम होगी गति
17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम लैंडर-रोवर से अलग होगा. मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर-रोवर को चंद्रमा की 100X30 KM की कक्षा में डाला जाएगा. इस ऑर्बिट में लाने के लिए चंद्रयान-3 की डीबूस्टिंग करनी होगी. मतलब उसकी गति कम करनी होगी. इसके लिए चंद्रयान जिस दिशा में जा रहा है, उसके विपरीत दिशा में भेजना होगा. ये काम 23 अगस्त को होगा. यहीं से शुरू होगी लैंडिंग की प्रकिया.
लैंडर की असली परीक्षा 23 अगस्त को
विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है. नए सेंसर्स लगाए गए हैं. नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था. इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था. जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं. इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है. यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है.