Chandrayaan-3 के विक्रम लैंडर में एक ऐसा यंत्र लगाया गया है, जो इसकी गति संभालेगा. उसे सुरक्षित तरीके से चांद की जमीन पर उतारेगा. क्योंकि चंद्रयान-2 के लैंडर में यह यंत्र नहीं था. पिछली बार एक थ्रस्टर्स की गड़बड़ी से लैंडर की हालत बिगड़ी थी. उसकी गति में गड़बड़ी थी. इसलिए विक्रम लैंडर औंधे मुंह चांद की सतह पर गिर पड़ा. वह जमीन पर उतरने की कोशिश में कन्फ्यूज था.
इस बार जो यंत्र विक्रम लैंडर में लगाया गया है, उसका नाम है लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC). लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर जमीन पर उतरते समय थ्रीडी लेजर फेंकता है. यह लेजर जमीन से टकराकर वापस वेलोसिटीमीटर को यह बताती है कि सतह कैसी है. ऊंची-नीची. ऊबड़-खाबड़. इसके आधार पर वह लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव करता है.
बाकी दो दिशाओं में जो लेजर जाते हैं, वो ये देखते हैं कि कहीं सामने या पीछे की तरफ कोई ऊंची चीज तो नहीं है, जिससे लैंडर के टकराने का खतरा हो. इसके साथ ही काम करता है LHVC जो जमीन की नीचे के हिस्से की तस्वीर लेता है. वह भी गति में. ताकि लैंडर के उतरने और हेलिकॉप्टर की तरह हवा में तैरते रहने की गति पता चल सके. साथ ही खतरों का अंदाजा हो सके.
हम दक्षिणी ध्रुव पर नहीं जा रहेः डॉ. सोमनाथ
डॉ. एस सोमनाथ ने बताया कि हम दक्षिणी ध्रुव पर नहीं जा रहे हैं. हम उसके पास जा रहे हैं. क्योंकि दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रोशनी नहीं आती है. या बेहद कम रहती है. तापमान माइनस में रहता है. ऐसे में लैंडर काम नहीं करेगा. इसलिए लैंडर को दक्षिणी ध्रुव के करीब उतारा जाएगा. रोशनी वाले इलाके में. ताकि उसके सोलर पैनल सूरज की रोशनी से ऊर्जा लेकर 14 दिनों तक काम कर सकें.
चंद्रयान-2 पूरी तरह से असफल नहीं था
उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 असफल नहीं था. हम पहली बार दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग का प्रयास कराने वाले पहले देश थे. इस बार भी हो सकते हैं. हर सफल मिशन के पीछे कुछ झटके जरूर होते हैं. अब भी उसका ऑर्बिटर काम कर रहा है. हमने उसे संचार और अन्य चीजों के लिए इमरजेंसी में इस्तेमाल करने की योजना बनाई है. हम उसके जरिए इस बार की लैंडिंग पर भी नजर रखेंगे.
हर प्रोजेक्ट का गहन अध्ययन होता है, फिर टेस्टिंग
डॉ. सोमनाथ ने कहा कि हमारे पास साइंटिफिक टीम है. जो किसी भी प्रोजेक्ट से पहले गहन अध्ययन करती है. उस मिशन के लक्ष्य तय किए जाते हैं. उसके बाद सारे काम होते हैं. चंद्रयान-2 में मिली असफलता की वजह ये थी हमनें ज्यादा उम्मीद रख ली थी. इस बार लैंडर के 100 से ज्यादा परीक्षण हुए हैं. हम हर गलती से सीखते हैं. उसे सुधारते हैं. हजारों इंजीनियर्स और वैज्ञानिक इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने में पिछले पांच साल से लगे हैं.