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चांद से वापस आया Chandrayaan-3 का Propulsion Module, इसरो ने धरती की ऑर्बिट में डाला

Chandrayaan-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल (PM) जो चांद का चक्कर लगा रहा था, उसे ISRO धरती की कक्षा में वापस ले आया है. यानी इसरो अपने यान को वापस बुलाने की क्षमता रखता है. इसके पहले चांद की सतह पर विक्रम लैंडर की छलांग लगवाकर इसरो ने पूरी दुनिया को सरप्राइज किया था.

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बाएं से दाएं... 17 अगस्त 2023 को विक्रम लैंडर से अलग हुआ था प्रोपल्शन मॉड्यूल. धरती की ऑर्बिट में वापस आया PM. (सभी फोटोः ISRO)
बाएं से दाएं... 17 अगस्त 2023 को विक्रम लैंडर से अलग हुआ था प्रोपल्शन मॉड्यूल. धरती की ऑर्बिट में वापस आया PM. (सभी फोटोः ISRO)

ISRO ने फिर से पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है. उसने साबित कर दिया है कि वह अपने यान को वापस बुला सकता है. चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहे प्रोपल्शन मॉड्यूल (Propulsion Module - PM) को वापस धरती की कक्षा में बुला लिया गया है. अब इसके अंदर लगे SHAPE पेलोड के जरिए धरती की स्टडी की जाएगी. 

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SHAPE यानी स्पेक्ट्रोपोलैरीमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ. पहले योजना थी कि इस पेलोड को सिर्फ तीन महीने चलाया जाएगा. क्योंकि ये माना जा रहा था कि PM सिर्फ इतने ही दिन काम कर पाएगा. उसके बाद इसकी जिंदगी खत्म. लेकिन प्रोपल्शन मॉड्यूल में इतना फ्यूल है कि अभी वह सालों तक काम कर सकता है. 

Chandrayaan-3 Propulsion Module

शेप के जरिए धरती की स्टडी करने के लिए प्रोपल्शन मॉड्यूल को धरती के नजदीक और उसकी सही ऑर्बिट में लाना था. तो फैसला हुआ उसे चांद की 100 किलोमीटर ऊंचाई वाली गोलाकार ऑर्बिट से वापस लाने का. इसके बाद 9 अक्टूबर 2023 को इसरो वैज्ञानिकों ने PM को अपनी ऑर्बिट बदलने का निर्देश दिया. 

ऐसे बुलाया गया चांद से धरती की ओर PM

PM चांद के चारों तरफ आगे बढ़ा. उसने अपनी कक्षा 150x5112 km कर ली. पहले वह 100 km वाली ऑर्बिट में चांद के चारों तरफ एक चक्कर 2.1 घंटे में लगा रहा था. फिर यह 7.2 घंटे में लगाने लगा. इसके बाद वैज्ञानिकों ने PM में मौजूद फ्यूल की जांच की. इसके बाद 13 अक्टूबर को दूसरा ऑर्बिट बदलकर 1.8 lakh x 3.8 lakh किलोमीटर किया गया. इसे ट्रांस-अर्थइंजेक्शन (TEI) मैन्यूवर कहा जाता है. 

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इसके बाद 22 नवंबर इसके ऑर्बिट में सुधार किया गया. इसकी पेरिजी 1.15 लाख किलोमीटर की गई. जबकि एपोजी 3.8 लाख किलोमीटर ही है. अब वह ऐसी जगह से धरती पर नजर रख रहा है, जहां उसे किसी अन्य ग्रह, सैटेलाइट, उल्कापिंड या मेटियोर से खतरा नहीं है. अब प्लान के मुताबिक SHAPE पेलोड को धरती की तरफ घुमाया गया. 

इस एक्सपेरिमेंट से ISRO को हुआ ये फायदा

SHAPE के जरिए 28 अक्टूबर 2023 को सूर्य ग्रहण के समय भी स्पेशल ऑपरेशन किया गया. शेप लगातार काम कर रहा है. इस एक्सपेरिमेंट से इसरो को चार तरह के फायदे हुए. 

पहला- चांद से धरती की तरफ कोई यान वापस लाने के लिए प्लानिंग और एग्जीक्यूशन.  
दूसरा- यान को इस तरह वापस लाने के लिए सही सॉफ्टवेयर मॉड्यूल बनाना. 
तीसरा- किसी ग्रह के चारों तरफ ग्रैविटी का फायदा उठाते हुए ऑर्बिट बदलना.
चौथा- चांद की सतह पर PM को टकराने से बचाना. ताकि अंतरिक्ष में कचरा न फैले. 

Chandrayaan-3 Propulsion Module

परमाणु तकनीक से चल रहा है प्रोपल्शन मॉड्यूल

Chandrayaan-3 का प्रोपल्शन मॉड्यूल परमाणु तकनीक (Nuclear Technology) से ऊर्जा हासिल कर रहा है. कुछ दिन पहले एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन अजित कुमार मोहंती ने इस बात की पुष्टि की थी. उन्होंने बताया कि प्रोपल्शन मॉड्यूल में दो रेडियोआइसोटोप हीटिंग यूनिट्स (Radioisotopes Heating Units - RHU) हैं. यह एक वॉट की ऊर्जा पैदा कर रहा है. इससे यान को चलते रहने के लिए जरूरी तापमान मिल रहा है. 

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17 अगस्त को विक्रम लैंडर से अलग हुआ था PM
 
17 अगस्त 2023 को जो प्रोपल्शन मॉड्यूल विक्रम लैंडर से अलग हुआ था. पहले उसकी लाइफ 3 से 6 महीने बताई जा रही थी. लेकिन अभी वो कई सालों तक काम कर सकता है. ये दावा किया था ISRO ने. अब यह समझ में आ रहा है कि आखिरकार परमाणु तकनीक की मदद से प्रोपल्शन मॉड्यूल कई सालों तक चांद के चारों तरफ चक्कर लगा सकता है.  

Chandrayaan-3 Propulsion Module Seperation

जब चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग हुई थी. तब प्रोपल्शन मॉड्यूल में 1696.4 kg फ्यूल था. इसके बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल के सहारे ही पृथ्वी के चारों तरफ पांच बार ऑर्बिट बदली गई. ऑर्बिट करेक्शन को मिलाकर छह बार इंजन ऑन किया गया. फिर चंद्रयान-3 चांद के हाइवे पर गया. यानी ट्रांस-लूनर ट्रैजेक्टरी में पहुंचा. 

कहां, कब और कितना फ्यूल खर्च किया PM ने

फिर चंद्रमा के चारों तरफ छह बार प्रोपल्शन मॉड्यूल ऑन हुआ. कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल खत्म हुआ. पृथ्वी के चारों तरफ छह बार प्रोपल्शन मॉड्यूल के थ्रस्टर्स को ऑन किया गया. तब 793 kg फ्यूल लगा. चांद के चारों तरफ छह बार ऑर्बिट घटाने के लिए थ्रस्टर्स ऑन किए गए. तब 753 kg फ्यूल लगा. कुल मिलाकर 1546 kg फ्यूल की खपत हुई. 

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Chandrayaan-3 Propulsion Module Seperation

अब बचा हुआ है 150 kg फ्यूल. यानी यह 3 से 6 महीने तक ही काम नहीं करेगा. बल्कि यह कई सालों तक काम कर सकता है. इसकी पुष्टि ISRO चीफ डॉ. एस. सोमनाथ ने भी की थी. उन्होंने कहा था कि हमारे पास उम्मीद से ज्यादा फ्यूल बचा है. यानी अगर सबकुछ सही रहा और ज्यादा कोई दिक्कत नहीं आई तो प्रोपल्शन मॉड्यूल कई सालों तक काम कर सकता है. यह सब चांद के चारों तरफ ऑर्बिट करेक्शन पर निर्भर करता है. 

आप ही सोचिए... जब चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) का ऑर्बिटर अभी तक काम कर रहा है. तो चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन मॉड्यूल में तो बहुत ज्यादा फ्यूल बचा है. ये कितने सालों तक काम करेगा. इसरो वैज्ञानिक ये मानकर चल रहे हैं कि सबकुछ सही रहता है तो प्रोपल्शन मॉड्यूल चार-पांच साल से ज्यादा भी काम कर सकता है. 

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