जब चंद्रयान-3 का रॉकेट धरती से उड़ा तो वह करीब 43.5 मीटर ऊंचा था. चंद्रयान-3 को उसकी कक्षा तक पहुंचाते समय रॉकेट अलग हो चुका था. बचा था सिर्फ चंद्रयान-3 और उसका प्रोपल्शन मॉड्यूल. ये दोनों आगे की यात्रा पर निकले. आज ये धरती के चारों तरफ अंडाकार ऑर्बिट में चक्कर लगा रहा है.
जब यह धरती के नजदीक आता है, तब इसकी दूरी 228 किलोमीटर होती है. जिसे वैज्ञानिक पेरीजी कहते हैं. जब यह धरती से दूर जाता है. तब इसकी दूरी 51400 किलोमीटर हो जाती है. इसे कहते हैं एपोजी. लेकिन इटली के मैनसियानो में मौजूद वर्चुअल टेलिस्कोप प्रोजेक्ट (Virtual Telescope Project) ने इसकी कुछ तस्वीरें लीं. टाइम लैप्स वीडियो बनाया. जिसमें चंद्रयान-3 तेज गति से तारों के बीच से निकलता दिख रहा है.
We observed the #Chandrayaan3 spacecraft again last night! Furthermore, we created a time-lapse using our 15 July data. 🛰️🔭📷 @isro
— Virtual Telescope (@VirtualTelescop) July 17, 2023
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ये तस्वीरें और वीडियो को लिया था सेलेस्ट्रॉन सी14+पैरामाउंट एमई+एसबिग एसटी8-एक्सएमई रोबोटिक यूनिट ने. तस्वीरों को 15 से 17 जुलाई के बीच लिया गया था. इस प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस समय तस्वीरें ली गईं. उस समय या तो चंद्रयान-3 का बूस्टर यानी इंजन दूसरी दिशा में था. या तो बंद था. क्योंकि जिस गति से वह जा रहा है, अगर इंजन ऑन होता तो पीछे एक ट्रेल दिखता.
जिस समय ये तस्वीरें ली गईं तब चंद्रयान-3 कम से कम 41 हजार किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर अंतरिक्ष में घूम रहा था. इसके बाद से इसकी ऑर्बिट बदली जा चुकी है. 14 जुलाई को लॉन्चिंग के बाद पहली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग 15 जुलाई को हुई थी. तब इसकी दूरी 31,605 से बढ़ाकर 41,604 किलोमीटर की गई थी. फिर पेरीजी बढ़ाई गई.
173 किलोमीटर से बढ़ाकर 226 किलोमीटर की गई. अब यह 228 X 51400 किलोमीटर की कक्षा में घूम रहा है. इसरो चीफ डॉ. एस सोमनाथ ने कहा है कि मिशन अपने शेड्यूल के हिसाब से सही चल रहा है. चंद्रयान-3 की सेहत सही सलामत है. इसके सभी ऑर्बिट मैन्यूवर बेंगलुरु के इसरो सेंटर ISTRAC से किए जा रहे हैं.
इस बार विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है. नए सेंसर्स लगाए गए हैं. नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था. इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था. जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं. इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है. यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है.