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चांद पर पहुंचा विक्रम, प्रज्ञान की चहलकदमी भी शुरू... जानें- अब 14 दिन तक मून पर क्या करेगा चंद्रयान

23 अगस्त 2023, शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर भारत का सूर्योदय इस चमकते हुए मिशन चंद्रयान की लैंडिंग के साथ हुआ है. इसरो के सेंटर से आम लोगों के बीच भी तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी. इन तालियों की गड़गड़ाहट से कुछ सेकेंड पहले तक देशभर के लोगों की सांसें थमी हुई थीं. लेकिन इस बार देश के वैज्ञानिक अपनी मेहनत पर पूरी तरह से आश्वस्त थे. और वो मेहनत रंग लाई. 

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भारत ने रच दिया इतिहास
भारत ने रच दिया इतिहास

हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वो कर दिया, जो दुनिया में अमेरिका, चीन जैसे तमाम बड़े बड़े देश कभी नहीं कर पाए. हमारे देश के वैज्ञानिकों ने वो कर दिया जो करते हुए पिछले हफ्ते रूस तक फेल हो गया. भारत का चंद्रयान जैसे ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर पहुंचा, ये इतिहास रचने वाला विश्व का पहला देश भारत बन गया.

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23 अगस्त 2023, शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चांद पर भारत का सूर्योदय इस चमकते हुए मिशन चंद्रयान की लैंडिंग के साथ हुआ है. इसरो के सेंटर से आम लोगों के बीच भी तालियों की गड़गड़ाहट गूंजने लगी. इन तालियों की गड़गड़ाहट से कुछ सेकेंड पहले तक देशभर के लोगों की सांसें थमी हुई थीं. लेकिन इस बार देश के वैज्ञानिक अपनी मेहनत पर पूरी तरह से आश्वस्त थे. और वो मेहनत रंग लाई. 

ऐसे में देशवासियों के मन में एक सवाल यह भी उठ रहा है कि अब विक्रम और रोवर क्या काम करेंगे? 

विक्रम लैंडर पर चार पेलोड्स क्या काम करेंगे?

1. रंभा (RAMBHA)... यह चांद की सतह पर सूरज से आने वाले प्लाज्मा कणों के घनत्व, मात्रा और बदलाव की जांच करेगा. 

2. चास्टे (ChaSTE)... यह चांद की सतह की गर्मी यानी तापमान की जांच करेगा. 

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3. इल्सा (ILSA)... यह लैंडिंग साइट के आसपास भूकंपीय गतिविधियों की जांच करेगा. 

4. लेजर रेट्रोरिफ्लेक्टर एरे (LRA) ... यह चांद के डायनेमिक्स को समझने का प्रयास करेगा. 

प्रज्ञान रोवर पर दो पेलोड्स हैं, वो क्या करेंगे? 

1. लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (Laser Induced Breakdown Spectroscope - LIBS). यह चांद की सतह पर मौजूद केमकल्स यानी रसायनों की मात्रा और गुणवत्ता की स्टडी करेगा. साथ ही खनिजों की खोज करेगा. 

2. अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (Alpha Particle X-Ray Spectrometer - APXS). यह एलिमेंट कंपोजिशन की स्टडी करेगा. जैसे- मैग्नीशियम, अल्यूमिनियम, सिलिकन, पोटैशियम, कैल्सियम, टिन और लोहा. इनकी खोज लैंडिंग साइट के आसपास चांद की सतह पर की जाएगी. 

वैज्ञानिकों के लिए क्या है फायदा...

कुल मिलाकर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर मिलकर चांद के वायुमंडल, सतह, रसायन, भूकंप, खनिज आदि की जांच करेंगे. इससे इसरो समेत दुनियाभर के वैज्ञानिकों को भविष्य की स्टडी के लिए जानकारी मिलेगी. रिसर्च करने में आसानी होगी. ये तो हो गई वैज्ञानिकों के लिए फायदे की बात. 

देश को क्या फायदा होगा...

भारत दुनिया का चौथा देश है, जिसने यह सफलता हासिल की है. इससे पहले यह कीर्तिमान अमेरिका, रूस (तब सोवियत संघ) और चीन ने स्थापित किया था.  

ISRO को क्या फायदा होगा...

इसरो दुनिया में अपने किफायती कॉमर्शियल लॉन्चिंग के लिए जाना जाता है. अब तक 34 देशों के 424 विदेशी सैटेलाइट्स को छोड़ चुका है. 104 सैटेलाइट एकसाथ छोड़ चुका है. वह भी एक ही रॉकेट से. चंद्रयान-1 ने चांद पर पानी खोजा. चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर आज भी काम कर रहा है. उसी ने चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग साइट खोजी. मंगलयान का परचम तो पूरी दुनिया देख चुकी है. चंद्रयान-3 की सफलता इसरो का नाम दुनिया की सबसे बड़ी स्पेस एजेसियों में शामिल कर देगी. 

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आम आदमी को होगा ये फायदा...

चंद्रयान और मंगलयान जैसे स्पेसक्राफ्ट्स में लगे पेलोड्स यानी यंत्रों का इस्तेमाल बाद में मौसम और संचार संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. रक्षा संबंधी सैटेलाइट्स में होता है. नक्शा बनाने वाले सैटेलाइट्स में होता है. इन यंत्रों से देश में मौजूद लोगों की भलाई का काम होता है. संचार व्यवस्थाएं विकसित करने में मदद मिलती है. निगरानी आसान हो जाती है.

चांद पर 1 दिन का ही मिशन क्यों?

चांद पर एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है. 23 अगस्त को चांद के दक्षिण ध्रुव पर सूरज निकलेगा. यहां 14 दिन तक दिन रहेगा. इस वजह से चंद्रयान-3 के लैंडर और रोवर 14 दिनों तक चांद की सतह पर रिसर्च करेगा.

14 दिन सूर्य के सहारे प्रज्ञान

1. चंद्रयान-3 का लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरने के बाद अपने मिशन का अंजाम देने के लिए सौर्य ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा.

2. चांद पर 14 दिन तक दिन और अगले 14 दिन तक रात रहती है, अगर चंद्रयान ऐसे वक्त में चांद पर उतरता कि जब वहां रात हो तो वह काम नहीं कर पाता.

3. इसरो सभी चीजों की गणना करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि 23 अगस्त से चांद के दक्षिणी ध्रुव सूरज की रौशनी उपलब्‍ध रहेगी.

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4. वहां रात्रि के 14 दिन की अवधि 22 अगस्त को समाप्त हो रही है.

5. 23 अगस्त से 5 सितंबर के बीच दक्षिणी ध्रुव पर धूप निकलेगी, जिसकी मदद से चंद्रयान का रोवर चार्ज हो सकेगा और अपने मिशन को अंजाम देगा.

चांद पर लहराया तिरंगा, देखें चंद्रयान-3 मिशन की फुल कवरेज

चांद पर छाप छोड़ेगा इसरो 

लैंडिंग के साथ ही लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान ने अपना काम शुरू कर दिया है. लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग सफल होने के बाद रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलने लगा. यह 500 मीटर तक के इलाके में चहलकदमी कर पानी और वहां के वातावरण के बारे में इसरो को बताएगा. इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे.

वैज्ञानिकों की मेहनत और देशवासियों की प्रार्थनाएं काम आईं

इस मिशन के लिए मेहनत तो इसरो के वैज्ञानिकों ने की लेकिन पीछे पूरा भारत उनके साथ खड़ा था. मंदिरों में हवन हुए, मस्जिदों में दुआएं पढ़ी गईं. स्कूलों में बच्चे प्रेयर करने लगे. सड़कों पर लोग रुककर चंद्रयान की कामयाबी देखने लगे. मुंबई के अंधेरी स्टेशन पर भारत के चंद्रयान 3 की चांद पर सफल लैडिंग के साथ ही जो जश्न मनता दिखा. यकीन मानिए ऐसे पल ना जाने आखिरी बार कब एकजुट हिंदुस्तान के इतिहास बनाते हुए दिखे. 

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आज से ठीक 40 दिन पहले यानी 14 जुलाई को जो चंद्रयान भारत की 140 करोड़ उम्मीदों के ईंधन के साथ चंद्रमा की तरफ बढ़ा था. 41वें दिन उसने पहुंचकर मैसेज भेज दिया है, 'भारत वालों मैं अपनी मंजिल तक पहुंच गया हूं.'

लैंडिंग के बाद विक्रम ने भेजी पहली तस्वीर
लैंडिंग के बाद विक्रम ने भेजी पहली तस्वीर

ISRO के बेंगलुरु में मौजूद टेलीमेट्री एंड कमांड सेंटर के मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स में 50 से ज्यादा वैज्ञानिक कंप्यूटर पर चंद्रयान-3 से मिल रहे आंकड़ों की मंगलवार रातभर पड़ताल में जुटे रहे. वैज्ञानिक लैंडर को लगातार इनपुट भेजते रहे, ताकि लैंडिंग के समय गलत फैसला लेने की हर गुंजाइश खत्म हो जाए. इसका नतीजा यह हुआ कि आज पूरी दुनिया भारत को बधाई दे रही है. चंद्रयान-3 लैंड होते ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से चांद की तस्वीरें भेजने लगा है. लेकिन इस लम्हे तक पहुंचने से पहले सांस थाम देने वाले 17 मिनट के बारे में पूरे देश को जानना जरूरी है.

वो आखिरी 17 मिनट...
 
वो 17 मिनट जब देश हाथ जोड़कर प्रार्थना करता रहा. आपको बता दें कि विक्रम कैसे ऐतिहासिक सफर पूरा करता है. ये वो वक्त होता है जब चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई से लगातार अपनी गति को नियंत्रित करते हुए विक्रम लैंडर चांद की सतह की तरफ बढ़ता है. ये वो समय होता है जब विक्रम पर इसरो का कोई कंट्रोल नहीं रहता. वो इसरो की तरफ से पहले दिए गए इनपुट के आधार पर खुद फैसले करते हुए चांद की सतह तक पहुंचता है. ये चार चरण की लैंडिंग ही सबसे खतरनाक मानी जाती रही है.

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इसमें पहला फेज है- रफ ब्रेकिंग. जब ऊंचाई चंद्रयान की 30 किमी से घटकर 7.4 किमी तक आई. इस फेज में स्पीड 1.68 किमी प्रति सेकेंड तक रहती है. ग्यारह मिनट के भीतर ये फेज पूरा होता है. 

दूसरा फेज है- एल्टीट्यूड होल्ड. जहां हमारा चंद्रयान चांद की सतह से 7.4 किमी की ऊंचाई से 6.8 किमी तक पहुंचता है. हॉरिजॉन्टल स्पीड तब 336 मीटर प्रति सेकेंड और ये स्टेज सिर्फ दस सेकेंड की रही. 

तीसरा फेज है- फाइन ब्रेकिंग. यहां ऊंचाई चंद्रमा से सिर्फ 800 मीटर से 1300 मीटर की रह गई. स्पीड बहुत कम इसीलिए शून्य किमी प्रति घंटा लिखी गई. ये स्टेज बारह सेकेंड की ही रही. यहां पर लैंडर की पोजिशन पूरी तरह से वर्टिकल हो गई. 
 
और इसके बाद चौथा फेज आता है टर्मिनल डिसेंट. जब उंचाई सिर्फ 150 मीटर रह गई. इस फेज में स्पीड तीन मीटर प्रति सेकेंड से लगातार घटती गई. यही वो स्टेज है जिस तक पहुंचते ही इसरो के कमांड सेंटर में बैठे एक-एक वैज्ञानिक के चेहरे पर कामयाबी की खुशी दिखने लगी और स्पेस सेंटर में तालियां बजने लगीं. 

2019 के मिशन से क्या सीखा 

चंदा मामा अब अगर भारत के साथ पूरी दुनिया के लिए दूर के नहीं रहे तो इसमें बड़ी वजह, कमियों को दूर करने की लगन रही है. 2019 में जिन वजहों से भारत का चंद्रयान-2 सफल नहीं हो पाया, उन कमियों पर वैज्ञानिकों ने लगातार काम किया और इसी के बाद आज भारत को कामयाबी मिली है. चंद्रयान-3 की कामयाबी ने दिखा दिया है कि हार से सबक सीखने वाला ही आगे जाता है. चंद्रयान की कामयाबी से आज सारा देश खुशी से झूम रहा है. लेकिन 4 साल पहले माहौल अलग था. चंद्रयान-2 की नाकामी से देश को धक्का लगा. लेकिन इसरो के वैज्ञानिकों ने हौसला बनाए रखा और अपने मिशन मून की हर कमजोरी पर काम किया और इतिहास बना दिया. 

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भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कामयाब लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. जिसे आज सारी दुनिया सलाम कर रही है, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया विकास की राह में मील का पत्थर बता रहे हैं. 

लेकिन सवाल ये है कि भारत ने ये कमाल कैसे किया?

पिछली बार की किन गलतियों पर इसरो के वैज्ञानिकों ने काम किया? इन्हीं सवालों में अंतरिक्ष में हिंदुस्तान की ऐतिहासिक कामयाबी का राज छिपा है. चांद पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग से पहले ही इसरो चीफ ने सारे देश को बता दिया था कि इस बार की पूरी तैयारी पिछली नाकामियों को ध्यान में रखकर की गई है. इसरो में स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर नीलेश एम देसाई के मुताबिक आमतौर पर इसरो कामयाबी को ध्यान में रखकर डिजाइन करता है, लेकिन इस बार फेलियर को ध्यान में रखा गया है, संभावना रहती है तो उसे कैसे पार किया जाए. उसकी संभावना को देखते हुए डिजाइन किया है.

2019 में क्या चूक रही?

अगर पिछली बार पहली गलती की बात करें तो वो विक्रम लैंडर की स्पीड को लेकर थी, जिसे कम करने के लिए जो पांच इंजन लगाए गए थे. उन्होंने जरूरत से ज्यादा थ्रस्ट पैदा किया. जिससे क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा और अपने रास्ते से भटक कर अनियंत्रित होकर चांद की सतह से टकराकर टूट गया. इस गलती से सबक सीखते हुए इस बार लैंडिंग साइट के लिए छोटे टारगेट की जगह किसी बड़ी जगह को टारगेट किया गया, जिससे लैंडिंग आसान हो गई. 

पिछली बार चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर चांद पर उतरने के लिए सही जगह ढूंढते हुए उसकी सतह के नजदीक पहुंचा. ज्यादा रफ्तार होने की वजह से वो चांद की सतह पर क्रैश हो गया था. इस गलती को सुधारते हुए इस बार ईंधन की क्षमता बढ़ाई गई, ताकि अगर लैंडिंग स्पॉट ढूंढने में मुश्किल हो तो उसे वैकल्पिक लैंडिंग साइट तक आसानी से ले जाया जा सके. इसका नतीजा सबके सामने है. हिंदुस्तान ने वो कर दिखाया जो आज तक अमेरिका-रूस और चीन जैसी महाशक्तियां नहीं कर पाईं. चांद के दक्षिणी हिस्से में हिंदुस्तान ने तिरंगा फहरा दिया. पिछली बार इसरो भले ही अपने मून मिशन में नाकाम रहा था, लेकिन सारी दुनिया ने इसरो की मेहनत को सराहा. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसरो चीफ को हिम्मत बंधाते हुए हार से सबक सीखने की बात कही थी.

टेरर ऑफ 17 मिनट्स में भारत को मिली कामयाबी

पिछले 4 साल की तैयारी का ही नतीजा था कि चांद पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग सटीक रही. जिन 17 मिनट इस पूरे मिशन की लिए सबसे अहम माना जा रहा था, जिन 17 मिनट ने चंद्रयान-2 की उम्मीदें तोड़ी थीं, जिन्हें इसरो ने टेरर ऑफ 17 मिनट्स कहा था, उसकी बाधा को पार करके हिंदुस्तान ने दुनिया में अपना डंका बजा दिया.

भारत से पहले रूस चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लूना-25 यान उतारने वाला था. 21 अगस्त को यह लैंडिंग होनी थी, लेकिन आखिरी ऑर्बिट बदलते समय रास्ते से भटक गया और चांद की सतह पर क्रैश हो गया. लेकिन भारत के चंद्रयान ने कमाल कर दिया और इतिहास रच डाला.

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