ISRO ने आज यानी 18 जुलाई 2023 की दोपहर 2 से 3 बजे के बीच चंद्रयान-3 का तीसरा ऑर्बिट मैन्यूवर किया गया है. इसरो ने कहा कि चंद्रयान-3 की तीसरी कक्षा को सफलतापूर्वक बदल दिया गया है. अगली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग 20 जुलाई 2023 को दोपहर 2 से 3 बजे ही होगी. फिलहाल इसरो ने यह नहीं बताया है कि दूरी में कितना बदलाव किया गया है. लेकिन एपोजी में बदलाव किया गया है.
इसके बाद चौथे और पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में भी एपोजी बदला जाएगा. मतलब धरती की सतह से ज्यादा दूरी. मकसद है 31 जुलाई तक चंद्रयान-3 को एक लाख किलोमीटर दूर तक पहुंचाना है. तीसरी ऑर्बिट मैन्यूवरिंग से पहले चंद्रयान 226 किलोमीटर की पेरीजी और 41,762 किलोमीटर की एपोजी वाली अंडाकार ऑर्बिट में चक्कर लगा रहा है. इस ऑर्बिट मैन्यूवरिंग में 41,762 किलोमीटर की दूरी को बढ़ाया गया है.
फिलहाल इसरो ने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि इसके लिए कितनी देर तक इंजन ऑन किया गया. लेकिन जल्द ही यह पता चल जाएगा. इसके बाद चंद्रयान-3 को लूनर ट्रांसफर ट्रैजेक्टरी यानी लंबी दूरी वाले ऑर्बिट में धकेला जाएगा. इस ऑर्बिट में वह पांच दिन यात्रा करेगा. 5-6 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की कक्षा में प्रवेश करने के लिए तैयार होगा.
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) July 18, 2023
The mission is on schedule.
The third orbit-raising maneuver (Earth-bound perigee firing) is performed successfully from ISTRAC/ISRO, Bengaluru.
The next firing is planned for July 20, 2023, between 2 and 3 pm IST.
इसके बाद चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन सिस्टम को चालू किया जाएगा. उसे चंद्रमा की कक्षा की ओर धकेला जाएगा. यानी चंद्रमा की 100X100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा. 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम लैंडर-रोवर से अलग हो जाएगा. मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर और रोवर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा में लाया जाएगा.
100x30 किलोमीटर की मून ऑर्बिट में लाने के लिए चंद्रयान-3 की डीबूस्टिंग करनी होगी. यानी उसकी गति कम करनी होगी. इसके लिए चंद्रयान-3 जिस दिशा में जा रहा है, उसकी दिशा विपरीत करनी होती है. ये काम 23 अगस्त को होगा. ये काम इसरो वैज्ञानिकों के लिए कठिन होगी. यहीं से शुरू होगी लैंडिंग की प्रकिया.
विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है. नए सेंसर्स लगाए गए हैं. नया सोलर पैनल लगाया गया है. पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था. इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था. जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं. इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है. यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है.