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Supermoon Relation with Chandrayaan-3: इस महीने दिखने वाले सुपरमून से क्या है चंद्रयान की यात्रा का संबंध?

इस महीने दो सुपरमून हैं. यानी हमारी धरती से चंद्रमा की दूरी कम रहेगी. ISRO के वैज्ञानिक क्या इसी मौके के इंतजार में थे? चंद्रयान-3 की यात्रा क्या छोटी हो जाएगी? चंद्रमा की नजदीकी का फायदा किस तरह से चंद्रयान-3 को मिलेगा?

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सुपरमून यानी धरती से चंद्रमा की दूरी में कमी. क्या इसका फायदा चंद्रयान-3 को मिलेगा? (फोटोः एपी)
सुपरमून यानी धरती से चंद्रमा की दूरी में कमी. क्या इसका फायदा चंद्रयान-3 को मिलेगा? (फोटोः एपी)

Chandrayaan-3 का सुपरमून से क्या कनेक्शन हो सकता है? क्या चंद्रयान-3 बड़े आकार के चंद्रमा पर जा रहा है? या फिर इसके पीछे कोई खास वजह है. असल में इस महीने यानी अगस्त में दो बार सुपरमून देखने को मिल रहा है. पहला 1 अगस्त को था और दूसरा 30 अगस्त को. चंद्रयान और सुपरमून का खास संबंध है. आइए जानते हैं कैसे?

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एक अगस्त को चंद्रमा सुपरमून था. उसकी दूरी धरती से 357,530 किलोमीटर थी. जबकि इससे पहले जो सुपरमून दिखा था, वह 2-3 जुलाई को दिखा था. उस समय चंद्रमा की दूरी 361,934 किलोमीटर थी. इसके बाद चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक 30 अगस्त को आएगा. तब उसकी दूरी 357,344 किलोमीटर होगी. यह इस महीने का दूसरा सुपरमून होगा. इसलिए इसे ब्लू मून भी कहते हैं. 

इसके बाद 28-29 सितंबर को चंद्रमा फिर सुपरमून बनेगा. तब उसकी दूरी धरती से 361,552 किलोमीटर होगी. सुपरमून सामान्य चंद्रमा से 14 फीसदी ज्यादा बड़े होते हैं. 30 फीसदी ज्यादा चमकदार होते हैं. इस साल चार ही सुपरमून दिखने वाले हैं. अब समझते हैं कि चंद्रयान-3 से सुपरमून का क्या लेना-देना है. 

Chandrayaan-3 Supermoon

चंद्रयान-3 इस समय चंद्रमा के हाइवे पर

चंद्रयान-3 इस समय 288 किलोमीटर की पेरीजी और 369328 किलोमीटर की एपोजी वाली कक्षा में यात्रा कर रहा है. यानी अगर यह चंद्रमा की ग्रैविटी को नहीं पकड़ पाता है, तो यह दस दिन की यात्रा करके वापस धरती 288 किलोमीटर वाली पेरीजी में वापस आ जाएगा. सुपरमून दिखने का मतलब ये है कि इस महीने चंद्रमा धरती के नजदीक रहेगा. जिसका फायदा चंद्रयान-3 को होगा. इससे उसे कम यात्रा करनी पड़ेगी. 

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चंद्रमा की दूरी घटती-बढ़ती रहती है

आमतौर पर चंद्रमा धरती से 3.60 लाख किलोमीटर से 4.00 लाख किलोमीटर की दूरी मेंटेन करता है. इसरो वैज्ञानिकों का इंटेलिजेंस देखिए कि उन्होंने चंद्रयान-3 को ऐसे समय लॉन्च किया है. जब चंद्रमा धरती के नजदीक दो बार आ रहा है. यानी जितनी कम दूरी उतना ही किफायती पड़ता है स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च करना. नहीं तो ज्यादा ईंधन की जरुरत होती. ज्यादा समय लगता. ऐसे में रिस्क बढ़ जाता है. 

चांद का ऑर्बिट पकड़ना जरूरी 

कुल मिलाकर इस महीने चंद्रमा धरती से औसतन नजदीक ही रहेगा. इसी नजदीकी का फायदा इसरो के वैज्ञानिकों ने उठाया है. चंद्रयान-3 इस समय 38,520 KM प्रतिघंटा की गति से चांद की ओर जा रहा है. हर दिन इसकी गति धीमी की जाएगी. क्योंकि जिस समय यह चांद के नजदीक पहुंचेगा. यानी उसकी सतह से करीब 11 हजार किलोमीटर दूर, वहां पर पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण जीरो होगा. चांद का भी करीब जीरो होगा. इसे L1 प्वाइंट कहते हैं. 

Chandrayaan-3 Supermoon

चंद्रमा की गुरत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की ग्रैविटी से 6 गुना कम है. इसलिए भी चंद्रयान की गति भी कम करनी होगी. नहीं तो वह चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ेगा नहीं. अगर ऐसा हुआ तो चंद्रयान 3.69 लाख किलोमीटर से वापस धरती की पांचवीं ऑर्बिट के पेरीजी यानी 288 किलोमीटर की दूरी पर करीब 10 दिन बाद वापस आ जाएगा.  

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स्पीड में लानी होगी दस गुना की कमी

5 अगस्त से लेकर 23 अगस्त तक चंद्रयान-3 की गति को लगातार कम किया जाएगा. चंद्रमा की ग्रैविटी के हिसाब से फिलहाल चंद्रयान-3 की गति बहुत ज्यादा है. इसे कम करके 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड पर लाना होगा. यानी 3600 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार. इस गति पर ही चंद्रयान-3 चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ेगा. फिर धीरे-धीरे उसके दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराया जाएगा. 

घुमाया जाएगा प्रोपल्शन मॉड्यूल का मुंह

अभी तक चंद्रयान-3 के इंटिग्रेटेड मॉड्यूल का मुंह चांद की ओर था. जल्द ही इसे घुमाया जाएगा. ताकि डीऑर्बिटिंग या डीबूस्टिंग करते समय चंद्रयान-3 को दिक्कत न हो. डीऑर्बिटिंग यानी जिस दिशा में चंद्रयान-3 चक्कर लगा रहा था, उसके विपरीत दिशा में घूमना. डीबूस्टिंग यानी गति को कम करना. इसी तरह से चंद्रयान-3 की गति कम करके दक्षिणी ध्रुव के पास इसके लैंडर को उतारा जाएगा. 

ऐसा है सुपरमून से चंद्रयान-3 का कनेक्शन

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