Chandrayaan-3 आज यानी 23 अगस्त 2023 की शाम को साढ़े पांच से साढ़े छह बजे के बीच चांद पर कदम रखेगा. लैंडिंग दक्षिणी ध्रुव के पास होगी. इसरो ने जो लॉन्गीट्यूड और लैटीट्यूड बताया है वो मैनिंजस क्रेटर की ओर इशारा करता है. इसलिए शायद उसके आसपास ही लैंडिंग हो. पहले जो चंद्रयान-3 अंतरिक्ष में 40 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चल रहा था. अब वह लैंडिंग कछुए की गति से भी कम स्पीड में करेगा.
औसत कछुए 4 से 5 मीटर प्रति सेकेंड की गति से तैरते हैं. 1 से 2 मीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से जमीन पर चलते हैं. कछुए के नए बच्चे तो 30 घंटे में 40 किलोमीटर की यात्रा पूरी करते हैं. मादा कछुए अपने बच्चों या नर कछुओं से ज्यादा स्पीड में तैरती या चलती है. ताकि वह अपने बच्चों को शिकारियों से बचा सके. खैर... चंद्रयान-3 की लैंडिंग 1 से 2 मीटर प्रति सेकेंड की गति से होगी.
वहीं, रूस का Luna-25 स्पेसक्राफ्ट खरगोश की तरह जल्दी पहुंचने के चक्कर में रेस हार गया. दक्षिणी ध्रुव पर जाकर क्रैश हो गया. रूसी स्पेस एजेंसी के प्रमुख का कहना है कि लूना-25 तय गति से करीब डेढ़ गुना ज्यादा गति से आगे बढ़ गया. फिक्स ऑर्बिट की तुलना में ओवरशूट कर गया. इसलिए जाकर चांद की सतह पर क्रैश कर गया. वहीं, इसरो का चंद्रयान-3 अपनी 42 दिन की यात्रा धीमे-धीमे कर रहा था. ग्रैविटी का फायदा उठा रहा था.
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अब जानिए कैसे चंद्रयान-3 की गति कछुए जैसी है...
- विक्रम लैंडर 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चांद पर उतरने की यात्रा शुरू करेगा. अगले स्टेज तक पहुंचने में उसे करीब 11.5 मिनट लगेगा. यानी 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई तक.
- 7.4 किलोमीटर की ऊंचाई पर पहुंचने तक इसकी गति 358 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी. अगला पड़ाव 6.8 किलोमीटर होगा.
- 6.8 किलोमीटर की ऊंचाई पर गति कम करके 336 मीटर प्रति सेकेंड हो जाएगी. अगला लेवल 800 मीटर होगा.
- 800 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर के सेंसर्स चांद की सतह पर लेजर किरणें डालकर लैंडिंग के लिए सही जगह खोजेंगे.
- 150 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की गति 60 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी. यानी 800 से 150 मीटर की ऊंचाई के बीच.
- 60 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 40 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी. यानी 150 से 60 मीटर की ऊंचाई के बीच.
- 10 मीटर की ऊंचाई पर लैंडर की स्पीड 10 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी.
- चंद्रमा की सतह पर उतरते समय यानी सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर की स्पीड 1.68 मीटर प्रति सेकेंड रहेगी.
अभी कहां है चंद्रयान-3, कौन संभालेगा उसे?
Chandrayaan-3 का विक्रम लैंडर 25 km x 134 km की ऑर्बिट में घूम रहा है. इसी 25 km की ऊंचाई से इसे नीचे चांद की सतह पर जाना है. पिछली बार चंद्रयान-2 अपनी ज्यादा गति, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन फेल्योर की वजह से गिर गया था. इस बार वह गलती न हो इसलिए चंद्रयान-3 में कई तरह के सेंसर्स और कैमरे लगाए गए हैं.
LHDAC कैमरा इसी काम के लिए बनाया गया है कि कैसे विक्रम लैंडर को सुरक्षित चांद की सतह पर उतारा जाए. इसके साथ ये पेलोड्स लैंडिंग के समय मदद करेंगे, वो हैं- लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC), लेजर अल्टीमीटर (LASA), लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC) मिलकर काम करेंगे. ताकि लैंडर को सुरक्षित सतह पर उतारा जा सके.
बचाव के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है
विक्रम लैंडर में इस बार दो बड़े बदलाव किए गए हैं. पहला तो ये कि इसमें बचाव मोड (Safety Mode) सिस्टम है. जो इसे किसी भी तरह के हादसे से बचाएगा. इसके लिए विक्रम में दो ऑनबोर्ड कंप्यूटर लगाए गए हैं, जो हर तरह के खतरे की जानकारी देंगे. इन्हें यह जानकारी विक्रम पर लगे कैमरे और सेंसर्स देंगे.
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग को लेकर रूस का 47 साल का सपना टूट गया. कुछ दिन पहले इसरो के पूर्व वैज्ञानिक विनोद कुमार श्रीवास्तव ने आजतक डॉट इन से खास बातचीत में कहा था कि इतिहास देखिए... जो भी डायरेक्ट पाथ पर चंद्रमा के लिए मिशन भेजे गए हैं. उनमें तीन में से एक मिशन फेल हुआ है. चंद्रयान-3 ने जो रास्ता लिया था उसपर फेल होने की आशंका कम रहती है.
Luna-25 के क्रैश होने के बाद रूसी स्पेस एजेंसी ने कहा था कि Luna-25 असली पैरामीटर्स से अलग चल गया था. तय ऑर्बिट के बजाय दूसरी ऑर्बिट में चला गया जहां पर उसे जाना नहीं चाहिए था. इसकी वजह से वह सीधे चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास जाकर क्रैश हो गया.
चांद की सतह पर उतरना क्यों है कठिनाई?
पूरी दुनिया के वैज्ञानिक यह जानते हैं कि चांद की सतह पर उसके ऑर्बिट से उतरना आसान नहीं है. पहला दूरी. दूसरा वायुमंडल. तीसरा ग्रैविटी. चौथा वर्टिकल लैंडिंग कराते समय इंजन का सही मात्रा में प्रेशर क्रिएट करना. यानी थ्रस्टर्स का सही तरीके से ऑन रहना. नेविगेशन सही मिलना. लैंडिंग की जगह समतल होनी चाहिए. इतनी समस्याओं के अलावा कई और होंगी जो सिर्फ वैज्ञानिकों को पता होंगी.
कितनी बार सफल लैंडिंग हुई है चांद पर?
चांद पर पिछले सात दशकों में अब तक 111 मिशन भेजे गए हैं. जिनमें 66 सफल हुए. 41 फेल हुए. 8 को आंशिक सफलता मिली. पूर्व इसरो प्रमुख जी माधवन नायर भी इस बात को बोल चुके हैं कि मून मिशन के सफल होने की संभावना 50 फीसदी रहती है. 1958 से 2023 तक भारत, अमेरिका, रूस, जापान, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कई तरह के मिशन चांद पर भेजे. इनमें इम्पैक्टर, ऑर्बिटर, लैंडर-रोवर और फ्लाईबाई शामिल हैं.
अगर 2000 से 2009 तक की बात करें तो 9 साल में छह लूनर मिशन भेजे गए थे. यूरोप का स्मार्ट-1, जापान का सेलेन, चीन का चांगई-1, भारत का चंद्रयान-1 और अमेरिका का लूनर रीकॉनसेंस ऑर्बिटर. 1990 से अब तक अमेरिका, जापान, भारत, यूरोपीय संघ, चीन और इजरायल ने कुल मिलाकर 21 मून मिशन भेजे हैं.
चांद के ऑर्बिट में ऐसे पहुंचा था Luna-25
रूस ने सोयुज रॉकेट से लॉन्चिंग की थी. Luna-25 लैंडर को धरती के बाहर एक गोलाकार ऑर्बिट में छोड़ा गया. जिसके बाद यह स्पेसक्राफ्ट सीधे चांद के हाइवे पर निकल गया. उस हाइवे पर उसने 5 दिन यात्रा की. इसके बाद चांद के चारों के ऑर्बिट में पहुंचा. लेकिन तय लैंडिंग से एक दिन पहले ही क्रैश कर गया.
लैंडिंग को लेकर की गई थी ये प्लानिंग
रूस का प्लान था कि 21 या 22 अगस्त को लूना-25 चांद की सतह पर उतरता. इसका लैंडर चांद की सतह पर 18 km ऊपर पहुंचने के बाद लैंडिंग शुरू करेगा. 15 km ऊंचाई कम करने के बाद 3 km की ऊंचाई से पैसिव डिसेंट होगा. यानी धीरे-धीरे लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा. 700 मीटर ऊंचाई से थ्रस्टर्स तेजी से ऑन होंगे ताकि इसकी गति को धीमा कर सकें. 20 मीटर की ऊंचाई पर इंजन धीमी गति से चलेंगे. ताकि यह लैंड हो पाए.