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China ने अपने स्पेस स्टेशन में टमाटर, प्याज और लेटस उगाया... कर ली अमेरिका की बराबरी

China ने अपने स्पेस स्टेशन तियानगॉन्ग पर पहली बार बर्गर में डालने वाले लेटस पत्तों और चेरी टमाटर की खेती की है. फसलें उग भी गईं. अब चीन के वैज्ञानिक अपनी इस सफलता पर काफी ज्यादा खुश हो रहे हैं. क्योंकि इसके पहले ये काम अमेरिका के नेतृत्व में चल रहे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर ही होता था.

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चीन ने अपने स्पेस स्टेशन तियानगॉन्ग पर लेटस, टमाटर और हरी प्याज उगाई है. (सभी फोटोः गेटी)
चीन ने अपने स्पेस स्टेशन तियानगॉन्ग पर लेटस, टमाटर और हरी प्याज उगाई है. (सभी फोटोः गेटी)

चीन से शेंझोऊ 16 मिशन के एस्ट्रोनॉट्स ने तियानगॉन्ग स्पेस स्टेशन (Tiangong Space Station) पर लेटस और टमाटर उगा लिया है. फसलों का उगाना भविष्य में चीन के गहरे अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा है. मिशन कमांडर जिंग हायपेंग, एस्ट्रोनॉट्स झू यांगझू और गुई हैचो मई से तियानगॉन्ग स्पेस स्टेशन पर थे. ये लोग हाल ही में धरती पर लौटे हैं. 

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इन्हीं लोगों ने दो खास तरह के यंत्रों की मदद लेकर लेटस (Lettuce) और चेरी टमाटर (Cherry Tomatoes) की फसल स्पेस स्टेशन पर उगाई. जून में चार बैच लेटस के लगाए. दूसरा ऑपरेशन अगस्त में शुरू किया. जिसमें टेरी टमाटर और हरी प्याज (Green Onions) लगाई गई. तीनों को उगाने में सफलता भी मिली. 

China Space Station Farming

इतना ही नहीं चीन के एस्ट्रोनॉट रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर ने धरती पर स्पेस स्टेशन का रेप्लिका और वहां जैसा माहौल बना रखा है. ताकि पौधे, फसलें और फल लगाने का एक्सपेरिमेंट किया जा सके. फसलों पर होने वाले असर की स्टडी की जा सके. स्पेस के पौधों और जमीन पर उगने वाले पौधों का अंतर समझा जा सके. स्पेस में फसल उगाना लंबे प्रोजेक्ट का हिस्सा है. 

भविष्य के मिशन में बड़े पैमाने पर फसल उगाने का प्रयोग

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चाइना एस्ट्रोनॉट रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के रिसर्चर यांग रेंजे ने कहा कि स्पेस स्टेशन पर पौधे उगाने का मतलब है कि एनवायरमेंटल कंट्रोल एंड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (ECLSS) की जांच करना. इससे पता चलता है कि वो कितना काम कर रहा है. सही कर रहा है या नहीं. ऐसी तकनीकों का इस्तेमाल भविष्य में बड़े पैमाने पर फसलों को उगाने में किया जा सकता है. 

China Space Station Farming

मानव बस्ती बसाते समय ये दो तरह से करेंगे इंसानों की मदद

जब कभी किसी ग्रह पर मानव बस्ती बनेगी, तब वहां पर ECLSS की जरूरत पड़ेगी. खासतौर से चांद और मंगल ग्रह पर. जो पौधे इस तकनीक से उगेंगे, वो कार्बन डाईऑक्साइड सोख कर ऑक्सीजन देंगे. जिसका फायदा एस्ट्रोनॉट्स को मिलेगा. चीन की तैयारी है कि वो 2030 से पहले चंद्रमा पर दो एस्ट्रोनॉट्स को भेज सके. ताकि वहां पर वह अपना बेस बना सके. जिसका नाम इंटरनेशनल लूनर रिसर्च स्टेशन (ILRS) रखा गया है. 

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