1850 से 1900 के बीच दुनिया का जो औसत तापमान था वो अब 1.15 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है. यानी ग्लोबल मीन टेंपरेचर में इतना इजाफा है. जिसकी वजह से साल 2015 से 2022 तक सभी आठ साल बेहद गर्म रहे हैं. विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation - WMO) की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है. इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि दुनिया भर में हो रहे जलवायु परिवर्तन और बढ़ रहे तापमान का सबसे ज्यादा बुरा असर भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश पर होगा. यहां मौसम में भयानक स्तर का बदलाव होगा. आपदाएं ज्यादा आएंगी.
WMO की रिपोर्ट 'WMO प्रोविजिनल स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022' को 27वें UNFCC कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ में जारी किया गया है. इसमें यह भी बताया गया है कि समुद्री जलस्तर (Sea Level Rise) 1993 की तुलना में 2020 में दोगुनी बढ़ोतरी हुई है. समुद्री जलस्तर करीब 10 मिलिमीटर बढ़ा है. यह एक रिकॉर्ड है. पिछले ढाई साल में ही समुद्री जलस्तर 10 फीसदी बढ़ी है. जबकि 30 साल पहले ऐसा नहीं था. इस रिपोर्ट में इस साल सितंबर तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है. रिपोर्ट की फाइनल कॉपी अप्रैल 2023 में जारी की जाएगी.
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा कि ला नीना की वजह से वैश्विक तापमान लगातार दूसरे साल कम हुआ है लेकिन साल 2022 अब भी पांचवां या छठा सबसे गर्म साल रहा है. साल 2013-2022 के दौरान तापमान प्री-इंडस्ट्रियल पीरियड के औसत तापमान से 1.14 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रहा. इसका असर भारत और पाकिस्तान में देखने को मिला है. यहां पर मॉनसून से पहले का मौसम बेहद गर्म रहा है. तापमान ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे.
पाकिस्तान में मार्च और अप्रैल का महीना रिकॉर्डतोड़ गर्म रहा. जिसकी वजह से वहां पर फसलें खराब हो गईं. जिसकी वजह से गेहूं के निर्यात पर रोक लगानी पड़ी. ठीक इसी तरह भारत में चावल के एक्सपोर्ट पर रोक लगाई गई थी. इन दोनों देशों द्वारा एक्सपोर्ट पर लगाए गए प्रतिबंध की वजह से अंतरराष्ट्रीय खाद्य बाजार पर खतरा मंडराने लगा था. उन देशों को सबसे ज्यादा दिक्कत हो रही थी, जहां पर भारत और पाकिस्तान से फसलें जाती हैं. या वहां जहां कम फसलें उगती हैं.
इसके बाद जुलाई और अगस्त में पाकिस्तान में मूसलाधार बारिश हुई. भयानक बाढ़ आई. 1700 लोग मारे गए. 3.30 करोड़ लोग प्रभावित हुए. 79 लाख लोग विस्थापित हुए. भारत में मॉनसून के समय अलग-अलग समय पर भयानक बारिश हुई. फ्लैश फ्लड और बाढ़ की नौबत आई. जून में सबसे बुरा हाल उत्तर-पूर्वी राज्यों का रहा. 700 लोग बाढ़ और भूस्खलन की वजह से मारे गए. 900 लोग बिजली गिरने की वजह से मारे गए. असम में 6.63 लाख लोग बाढ़ की वजह से विस्थापित हुए.
WMO के सेक्रेटरी जनरल प्रो. पेट्टेरी तालस ने कहा कि जितनी ज्यादा गर्मी बढ़ेगी. आफतें और आपदाएं उतनी ही भयानक होंगी. वायुमंडल में हम इतना ज्यादा कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ रहे हैं कि पेरिस एग्रीमेंट के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान कम करना मुश्किल होता जा रहा है. काफी देर हो चुकी है. दुनिया के कई ग्लेशियर पिघल चुके हैं. सैकड़ों लगातार पिघल रहे हैं. जो ग्लेशियर हजारों सालों में पिघलने वाले थे, वो अब सैकड़ों सालों में पिघलते जा रहे हैं. भविष्य में उन देशों को सबसे ज्यादा दिक्कत होगी, जिनकी नदियां पहाड़ी ग्लेशियर से निकलती हैं.
पेट्टेरी तालस ने कहा कि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में बहने वाली नदियां हिमालय से आती हैं. हिमालय पर मौजूद ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं. भविष्य में इन देशों के लोगों को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ेगा. सिर्फ यही एक खतरा नहीं है. समुद्री जलस्तर भी तेजी से बढ़ रहा है. पिछले 30 सालों में समुद्री जलस्तर बढ़ने की दर दोगुनी हो गई है. अभी समुद्री जलस्तर के बढ़ने को हर साल मिलिमीटर में मापते हैं. इस हिसाब से भी देखिए तो एक सदी में समुद्र का जलस्तर आधा से एक मीटर बढ़ जाएगा. जिससे तटीय इलाकों में रहने वालों के मुसीबत हो जाएगी.
1993 से 2022 तक लगातार समुद्री जलस्तर 3.4 मिलिमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ है. जलस्तर बढ़ने की दर 1993-2002 से लेकर 2013-2022 के बीच दोगुना बढ़ गया. खतरनाक बात तो पिछले दो साल में देखने को मिला है. साल 2021 और 2022 में समुद्री जलस्तर 5 मिलिमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा है. साल 2020 से अब तक समुद्री जलस्तर में 10 मिलिमीटर का इजाफा हुआ है. यानी 1993 से अब तक बढ़े कुल जलस्तर का दस फीसदी. इतना ही नहीं, साल 2022 में धरती पर मौजूद समुद्रों में 55 फीसदी मरीन हीटवेव आया. यानी समुद्री के अंदर हीटवेव.
इंसानों द्वारा निकालने जाने वाले ग्रीनहाउस गैसों का 90 फीसदी हिस्सा समुद्र सोख लेते हैं. समुद्रों की ऊपरी 2000 मीटर की गहराई का तापमान लगातार बढ़ रहा है. वह भी रिकॉर्डतोड़ गति से. पिछले दो दशकों में समुद्र के ऊपर वाले 2000 मीटर का तापमान तेजी से बढ़ा है. यह ऐसा बदलाव है, जिसे खत्म होने में कई हजार साल लग जाएंगे. दूसरी तरफ यूरोप के एल्प्स के ग्लेशियर से तेजी से पिघलते और खत्म होते देखे गए. कई ग्लेशियर 3 से 4 मीटर पिघल गए. साल 2021 से 2022 के बीच स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर 6 फीसदी बर्फ खो चुके हैं. साल 2001 की तुलना में 2022 में स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर में एक तिहाई पिघल चुके हैं.
इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स की सीनियर रिसर्चर डॉ. चांदनी सिंह ने कहा कि यह रिपोर्ट स्पष्ट तौर पर बताती है कि दुनिया में एक्स्ट्रीम वेदर यानी खतरनाक मौसम का ट्रेंड बदल रहा है. हीटवेव और बाढ़ जैसी घटनाएं पाकिस्तान में बढ़ी हैं. इन आपदाओं में इंसानों के सहने की क्षमता का परीक्षण होता है. भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के रिसर्च डायरेक्टर डॉ. अंजल प्रकाश ने कहा कि यह रिपोर्ट IPCC की रिपोर्ट को पुख्ता करती है. वैश्विक गर्मी भयानक तेजी से बढ़ रही है. इसकी वजह से पूरी दुनिया को नुकसान झेलना पड़ेगा. सबसे बुरी हालत दक्षिण एशिया की होने वाली है. जलवायु परिवर्तन की वजह से सबसे ज्यादा समस्याएं भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में आएंगी.