ट्रेन पटरियों से उतरती है, विमान क्रैश होता है या रॉकेट फटता है, परमाणु रिएक्टर मेल्टडाउन हो जाता है या फिर कोई आतंकी हमला होता है तो उसकी बाकायदा जांच होती है. उसके बाद सख्त और कड़ी नीतियां बनाई जाती हैं, ताकि अगली बार ऐसी घटना को रोका जा सके. इस सदी का सबसे बड़ा हादसा कोरोना महामारी है. सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद यह सबसे बड़ी दुर्घटना है. लेकिन इसकी जांच किसी ने सही से नहीं की, न ही ये पता करने की कोशिश हुई कि कोरोना वायरस कहां से आया.
India Today से बात करते हुए अमेरिकी मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट रिचर्ड एच. ईब्राइट ने कहा कि WHO की तरफ से जो जांच बिठाई गई, उसमें कोई नई बात निकल कर नहीं आई. WHO की जांच असल में जांच जैसी नहीं थी. रिचर्ड रटगर्स यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री और केमिकल बायोलॉजी में बोर्ड गर्वनर्स में भी शामिल हैं. रिचर्ड ने पूछा कि क्या दुनिया ये नहीं जानना चाहती कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति कैसे हुई है. क्योंकि दुनिया में अब कोई ऐसा तरीका नहीं है जो इस महामारी से बचा सके.
प्रोफेसर रिचर्ड ने बताया कि अब दुनियाभर के कुछ साइंटिस्ट अपनी आवाज उठा रहे हैं. अमेरिका स्थित फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर की साइंटिस्ट जेसी ब्लूम अपने 18 साथियों के साथ मिलकर यह सवाल पूछ रही है कि आखिर ये कोरोना वायरस हादसे की वजह से लीक हुआ या इंसानों की गलती से. या फिर ये प्राकृतिक रूप से फैला. जेसी ने इसकी आधिकारिक जांच कराने के लिए एक पत्र लिखा है, जिसपर 18 अन्य साइंटिस्ट्स के हस्ताक्षर हैं.
जेसी ब्लूम ने अपने पत्र में लिखा है कि हम चाहते हैं कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति की आधिकारिक, पारदर्शी, डेटा ड्रिवेन, एक्सपर्ट्स की निगरानी में जांच हो. इसमें किसी तरह की व्यक्तिगत रुचि न हो. सही तरीके से ये पता किया जाना चाहिए कि कोविड 19 का वायरस लैब में हादसे से लीक हुआ, इंसानों की गलती से लीक हुआ या फिर यह प्राकृतिक रूप से फैला.
चीन की सरकार ने ध्यान बंटाने के लिए किया था वुहान वेट मार्केट की ओर इशारा
दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस के फैलने के तुरंत बाद ही चीन की सरकार ने वुहान के वेट मार्केट की तरफ इशारा किया. कहा गया कि यहीं से वायरस फैला है. इसकी वजह से लोगों ने कोरोना वायरस की तुलना 2002 के सार्स और 2012 में फैले मर्स से करनी शुरू कर दी. क्योंकि ये दोनों बीमारियां भी जानवरों से ही इंसानों में फैली थीं. कोरोना वायरस का जीनोम सार्स और मर्स के बीटा कोरोना वायरस की फैमिली का है. ये माना जा रहा था कि कोरोना वायरस अपने पूर्वजों की तरह ही प्राकृतिक रूप से फैला है.
अब साइंटिस्ट्स उठा रहे हैं लैब लीक के जांच की बात
दुनिया के कई साइंटिस्ट्स अब ये बात मानने लगे हैं कि इस बारे में जांच होनी चाहिए कि वायरस वुहान के लैब से निकला है या नहीं. क्योंकि लैब से लीक होने वाली थ्योरी पर सभी साइंटिस्ट्स ध्यान दे रहे हैं. हालांकि कुछ साइंटिस्ट्स ने इस बात की दलील दी थी कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से फैला है. क्योंकि उनका वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में किसी न किसी तरह की हिस्सेदारी है.
कई बड़े साइंटिस्ट्स को वुहान लैब से हो रहा था फायदा
न्यूयॉर्क स्थित इकोहेल्थ एलायंस के प्रेसिडेंट पीटर डैसजैक ने शुरुआत में 27 साइंटिस्ट्स के साथ मिलकर इस बात को प्रमाणित करने में लगे थे कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से फैला है. बाद में पता चला कि पीटर डैसजैक की संस्था वुहान लैब में चल रहे कोरोना वायरस रिसर्च को फंडिंग कर रही थी. इसके बाद लोगों ने पीटर की बात को सुनना बंद कर दिया. वुहान लैब में बरसों से कोरोना वायरस जैसे खतरनाक वायरसों पर प्रयोग हो रहे हैं. ताकि भविष्य में आने वाली बीमारियों की जांच की जा सके. इसमें दुनिया भर के कई साइंटिस्ट्स का इंट्रेस्ट है. वो किसी न किसी तरीके से इससे जुड़े हुए हैं.
वुहान की लैब में हुआ था कोरोना वायरस का जीनोम सिक्वेंस
रिचर्ड ने बताया कि कोरोना वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग से पता चलता है कि यह RaTG13 कोरोना वायरस का प्रोजेनिटर है. यह वायरस वुहान लैब के साइंटिस्ट्स ने चीन के युनान प्रांत की एक गुफा से चमगादड़ों से लिया था. इसी वायरस की वजह से 2012 में चीन में लोग सार्स जैसी बीमारी से मारे गए थे. इसके बाद इस वायरस को वुहान की लैब में 2013 और 2016 आंशिक रूप से बदला गया. इसके बाद 2018 और 2019 में वुहान लैब ने इस वायरस की पूरी सिक्वेंसिंग कर डाली.