scorecardresearch
 

New Experiment: वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया के DNA में स्टोर किया डेटा 

वैज्ञानिक जीवित बैक्टीरिया के DNA में डेटा स्टोर करने में सफल हुए हैं. उनका कहना है कि यह डेटा जीवों की संतानों तक भी पहुंचाया जा सकता है. ऐसी उम्मीद है कि इस तरह के डेटा से फ्यूचर में जेनेटिक बीमारियों को ठीक करने का मौका मिल सकता है.

Advertisement
X
बैक्टीरिया के DNA में स्टोर किया डेटा (फोटो- गेटी)
बैक्टीरिया के DNA में स्टोर किया डेटा (फोटो- गेटी)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • DNA synthesizer की मदद से किया यह काम
  • जीवों की संतानों तक भी पहुंच सकता है डेटा

एक डीएनए (DNA) के अंदर कितनी जगह होती है, यह जानकर आपके होश उड़ जाएंगे. नमक के एक कण के बराबर जगह में DNA 10 डिजिटल मूवी के बराबर डेटा स्टोर कर सकता है. लेकिन जर्नल साइंस रिपोर्ट के मुताबिक, कोलंबिया यूनिवर्सिटी (Columbia University) के वैज्ञानिकों ने जीवित जीवाणुओं (Living Bacteria) के डीएनए में डेटा स्टोर करके इस हैरानी को और बढ़ा दिया है. 

Advertisement

DNA के अंदर डेटा को स्टोर करने के लिए, डीएनए सिंथेसाइज़र (DNA synthesizer) की मदद से इसके एक (One) और शून्य (Zero) के बाइनरी फॉर्मेट (Binary Format) को कार्बनिक कोड में बदला जाता है. कार्बनिक कोड, अणु के चार आधारों एडेनिन (Adenine), गुआनिन (Guanine), साइटोसिन (Cytosine) और थाइमिन (Thymine) का कॉम्बिनेशन है.

Data stored in DNA
 डीएनए सिंथेसाइज़र की मदद से डीएनए के अंदर स्टोर किया डेटा. (Photo: NIAID)

यह कोड जितना लंबा होगा, सिंथेसाइज़र का काम उतना ही कम सटीक होगा. शोधकर्ताओं ने कोड को छोटे-छोटे हिस्सों में तोड़ दिया. अब डीएनए सीक्वेंसर को डेटा पाने के लिए उन्हें फिर से एक साथ जोड़ना होगा. हालांकि, ऐसा नहीं है कि यहां डेटा हमेशा के लए सुरक्षित रहे. समय के साथ जैसे-जैसे डीएनए कमजोर होगा, तो डेटा भी खत्म हो जाएगा. 

इस समस्या के समाधान के रूप में, कोलंबिया के शोधकर्ता यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या यही बात जीवित जीवों (Living Organisms) के साथ भी काम करती है. यह डेटा न केवल ज्यादा समय तक चलेगा, बल्कि ये जीवों की संतानों तक भी पहुंचाया जा सकता है.

Advertisement

कोलंबिया (Columbia) के हैरिस वांग (Harris Wang) की एक टीम पिछले कुछ सालों से इसी पर काम कर रही है. हाल ही में, टीम जीवाणु कोशिकाओं (Bacterial Cells) में, 'हैलो वर्ल्ड!'(Hello world) अक्षर की स्ट्रिंग लिखने के लिए, डेटा के 72 बिट्स (Bits) को इलेक्ट्रिकली एन्कोड करने में सफल रही है. 

 

जीन्स में डेटा स्टोर करने के लिए वैज्ञानिकों ने लोकप्रिय जीन-एडिटिंग तकनीक CRISPR का इस्तेमाल किया. इस तकनीक से डीएनए में नए सीक्वेंस जोड़े और एडिट किए जा सकते हैं. इस पेपर को नेचर केमिकल बायोलॉजी जर्नल (Nature Chemical Biology) में प्रकाशित किया गया है. 

Advertisement
Advertisement