हार्वर्ड मेडिकल स्कूल ने 70 हजार से ज्यादा डॉग बाइट की घटनाओं पर अध्ययन करने के बाद एक परेशान करने वाला ट्रेंड देखा. ये पैटर्न साफ कहता है कि कुत्तों का हिंसक होना वक्त के साथ बढ़ेगा. यहां तक कि गर्म और धूल-धुएं से भरे दिन में ये इंसानों पर ज्यादा हमला करेंगे. खासकर जब प्रदूषण ज्यादा हो, तब कुत्तों को हमला भी आम दिनों की तुलना में 11 प्रतिशत तक बढ़ सकता है. शोधकर्ताओं ने माना कि इंसानी गलतियों की वजह से ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है, जिसका असर कुत्तों के मूड पर भी होगा.
नेचर जर्नल के सांटिफिक रिपोर्ट्स में इसी 15 जून को ये शोध प्रकाशित हुई. अमेरिका के 8 बड़े शहरों में ये रिसर्च 10 सालों के दौरान की गई. इसमें साफ दिखा कि जब भी मौसम ज्यादा गर्म रहता है, या जिस दिन धूल ज्यादा रहती है, कुत्तों की आक्रामकता भी ज्यादा दिखती है.
Dog bites may occur more frequently on days with hotter, sunnier weather, and when air pollution levels are higher, suggests a paper in @SciReports. However, the authors caution that more data and further research is needed to confirm these findings. https://t.co/njHvX3z5BG
— Springer Nature (@SpringerNature) June 16, 2023
इस माहौल में, इतना बढ़ता है हमले का डर
शोध का पैटर्न देखें तो यूवी लेवल बढ़ने पर डॉग बाइट में 11 प्रतिशत बढ़त होती है, गर्म दिनों में ये बढ़कर 4 प्रतिशत हो जाता है, जबकि जिस दिन ओजोन लेवल ज्यादा रहता है, डॉग बाइट का डर 3 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. यहां तक कि तेज बारिश के समय भी खतरा टलता नहीं, बल्कि 1 प्रतिशत तक बढ़ा रहता है.
गर्मी का असर इंसानों पर भी कम नहीं
कई अध्ययन जोर देते हैं कि गर्म देशों के मौसम का अपराध से डायरेक्ट नाता है. एम्सटर्डम की व्रिजे यूनिवर्सिटी ने इसपर एक स्टडी की, जिसके नतीजे बिहेवियरल एंड ब्रेन साइंसेज में छपे. इसमें वैज्ञानिकों ने देखा कि आम लोग, जो क्रिमिनल दिमाग के नहीं होते, वो एकदम से अपराध कैसे कर बैठते हैं. इसके लिए क्लैश (CLASH) यानी क्लाइमेट, एग्रेशन और सेल्फ कंट्रोल इन ह्यूमन्स को वजह माना गया.
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, लोग जिस क्लाइमेट में रहते हैं, वो गुस्से को उकसाता या उसपर कंट्रोल करता है. गर्म इलाकों में क्राइम ज्यादा होता है, जबकि ठंडे इलाकों में ये घट जाता है. इंसानों पर दिखने वाली यही बात कुत्तों पर भी लागू होती है.
लगातार बढ़ता जाएगा ये टकराव
कुत्ते जैसा आमतौर पर दोस्ताना पशु इतना हिंसक हो रहा है कि बच्चों को चीरने-फाड़ने लगा है. ये एकाएक नहीं हुआ. कहीं न कहीं हम ही इसके जिम्मेदार हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की एक रिसर्च भी इसी ओर इशारा करती है. इसके मुताबिक तापमान में बदलाव के कारण खानपान का जो असंतुलन पैदा हो रहा है, वो इंसानों और पशुओं के बीच 80 फीसदी टकराव की वजह बनेगा. डॉग अटैक का मामला इसलिए ज्यादा दिख रहा है क्योंकि ये पशु इंसानी आबादी के साथ ही रहता है.
सारे महाद्वीपों पर हुई स्टडी
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इकोसिस्टम सेंटिनल्स की ये रिपोर्ट नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुई. इसके लिए अंटार्कटिका को छोड़कर बाकी सारे महाद्वीपों की केस स्टडी देखी गई. सारे वाइल्डलाइफ ग्रुप्स को भी इसमें लिया गया, जिसमें पक्षियों से लेकर हाथी भी शामिल थे. इसमें दिखा कि गर्मी के साथ-साथ इंसानों और जानवरों के बीच संघर्ष बढ़ता जाएगा, जिसमें कोई न कोई एक पक्ष गंभीर तौर पर जख्मी होगा.
इंसान और पशु एक-दूसरे के विरोधी की तरह दिखेंगे
शोध के अनुसार, बीते एक दशक में दोनों के बीच संघर्ष के मामले कई गुना बढ़ गए हैं. जैसे जंगल में रहते हाथी गांवों पर हमले कर रहे हैं, या फिर समुद्री मछलियां जहाज को खत्म करना चाहती हैं. नेचर क्लाइमेट चेंज में छपे इस शोध में इंसानों के साथ कई पशुओं के संघर्ष को देखा गया. कुत्ते इसमें शामिल नहीं हैं, लेकिन माना जा रहा है कि बढ़ती गर्मी और खाने के लिए जंग उन्हें आक्रामक बना रही है. चूंकि कुत्ते आबादी के बीच ही रहते हैं तो इंसान और खासकर बच्चे उनका पहला शिकार बनते दिख रहे हैं.
इसलिए भी बढ़ी आक्रामकता
पालतू कुत्तों की बात करें तो उनमें बढ़ते गुस्से की एक बहुत सीधी वजह है लोगों को एग्जॉटिक नस्ल को पालने का फितूर. उदाहरण के तौर पर, साइबेरियन हस्की ब्रीड बेहद ठंडी जगहों पर रहने वाले कुत्ते हैं, लेकिन अब ये भारत जैसे अमूमन गर्म देश में भी मिलने लगे हैं. लोग विदेशों से उन्हें मंगवाते और घरों पर रखते हैं. इसी तरह से पिटबुल या अमेरिकन बुलडॉग को लें तो ये भी जंगली ब्रीड हैं. इन्हें घर पर रखने से पहले पक्की ट्रेनिंग न हो, तो वे हिंसक होकर सीधा इंसानों पर अटैक करते हैं.
क्रॉस-ब्रीडिंग की कम जानकारी भी वजह
क्रॉस ब्रीडिंग यानी दो अलग-अलग नस्लों को वंश बढ़ाने के लिए आपस में मिलाना. इसके कई नियम हैं, जैसे किन दो नस्लों की ब्रीडिंग खतरनाक हो सकती है, किन दो नस्लों के मिलने से कुत्तों में बीमारियां बढ़ सकती हैं. हमारे यहां बहुत से डॉग सेंटर चलाने वालों को न तो इस नियम की जानकारी है, न ही वे इसे समझना ही चाहते हैं. यहां तक कि ऐसे बहुत से शॉप्स रजिस्टर्ड तक नहीं हैं.