धरती हर सेकेंड तबाही की ओर बढ़ रही है. ऐसी तबाही जिसे रोक पाना किसी इंसान के बस में नहीं होगा. चाहे वह कितना ही धनवान या ताकतवर क्यों न हो. न ही वो बच पाएगा. न ही किसी को बचा पाएगा. अगर पेरिस समझौते के तहत दुनिया ग्लोबल वॉर्मिंग को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने देती है. तब भी उसे खतरनाक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि तब जलवायु (Climate) खुद ही अपने को ठीक करेगी. बिगाड़ेगी. सुधारेगी. इसे कोई ठीक नहीं कर पाएगा.
एक बड़े पैमाने पर हुई नई स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है. इस स्टडी को Science जर्नल में प्रकाशित किया गया है. वर्तमान परिस्थितियों में ही दुनिया पांच बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के मुहाने पर खड़ा है. जिसमें सबसे बड़ा खतरा है अंटार्कटिका (Antarctica) और ग्रीनलैंड (Greenland) की बर्फ का पिघलना. यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सटर के शोधकर्ता टिम लेंटन ने कहा कि जैसा मुझे लगता है कि इससे पूरी दुनिया की शक्ल बदल जाएगी. अगर आप अंतरिक्ष से धरती की ओर देखोगे तो आपको समुद्री जलस्तर में बढ़ोतरी दिखेगी. वर्षावन खत्म हो जाएंगे.
जिन पांच प्राकृतिक आपदाओं के मुहाने पर खड़े होने की बात कही जा रही है, उन्हें लेकर टिम लेंटन ने साल 2008 में एक और स्टडी की थी. दोनों ही स्टडी में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर हमनें जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) को नहीं रोका तो प्रकृति खुद ही अपना बदला लेगी. खुद ही उसे सुधारेगी. क्योंकि एक सीमा के बाद उसके सहने की क्षमता खत्म हो जाएगी. वह टूटेगी, बिखरेगी और धरती पर मौजूद इंसानों और जीव-जंतुओं को नष्ट करने लगेगी.
अगर आज की तारीख में ग्लोबल वॉर्मिग रुक जाए तब भी बर्फ का पिघलना फिलहाल नहीं रुकेगा. समुद्र में आ रहे बदलावों को रोका नहीं जा सकता. वर्षावनों का खत्म होना कोई नहीं रोक पाएगा. ये सब के सब एक नई स्थिति में आ जाएंगे. शुरुआती स्टडी में इस बात की जांच की गई थी कि अगर तापमान 3 से 5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो क्या होगा. इसके लिए कई ऑब्जरवेशन किए गए. मॉडलिंग की गई. पैलियोक्लाइमेट रीकंस्ट्रक्शन किया गया. ताकि यह पता चल सके कि कितने सालों में कितनी गर्मी बढ़ी है. धरती का जलवायु कितना बदला है.
साइंस जर्नल में छपी स्टडी में पहले की गईं 200 अन्य स्टडीज का विश्लेषण भी किया गया है. ताकि यह पता चल सके कि ये पांचों प्राकृतिक आपदाओं के मुहाने को धरती पार कब करेगी. पता चला कि इस समय 9 ग्लोबल टिपिंग प्वाइंट्स (Global Tipping Points) हैं, जो धरती के पूरे सिस्टम को खराब कर रही हैं. इसके अलावा सात क्षेत्रीय टिपिंग प्वाइंट्स (Regional Tipping Points) हैं. ये सभी प्वाइंट्स यानी प्राकृतिक आपदाओं के इशारे इंसानों ही नहीं जानवरों के लिए भी सुरक्षित नहीं हैं.
इन 16 टिपिंग प्वाइंट्स में से पांच प्वाइंट्स ऐसे हैं, जो आज भी मौजूद हैं. पहला ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के हिमखंडों का पिघलना. दूसरा पर्माफ्रॉस्ट का खत्म होना. तीसरा लैबराडोर सागर में कनवेक्शन की कमी. उष्णकटिबंधीय कोरल रीफ्स का तेजी से मरना और समुद्री जलस्तर का तेजी से बढ़ना. इनमें से चार तो 2100 तक होने के पूरे चांस हैं, अगर बढ़ते हुए तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा नहीं बढ़ने दिया गया तब. सबसे भयावह चेहरा दिखेगा अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के पूरी तरह से पिघलने पर.
टिम लेंटन ने कहा कि अगर अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के हिमखंड पूरी तरह से पिघले तो समुद्री जलस्तर में 10 मीटर की बढ़ोतरी होगी. यानी 32.80 फीट. इसका मतलब दुनिया के कई बड़े देश आधे से ज्यादा डूब जाएंगे. कुछ तो पूरी तरह से गायब ही हो जाएंगे. लगातार बढ़ रही गर्मी की वजह से कोरल रीफ्स दुनिया भर के समुद्रों में मारे जा रहे हैं. उनकी ब्लीचिंग बढ़ गई है. लेकिन अभी जो तापमान है, उसपर वो खुद को फिर से जीवित कर सकते हैं. बचा सकते हैं.
लेकिन हर बार तापमान बढ़ने पर कोरल रीफ्स खुद को बचा नहीं पाएंगे. खत्म हो जाएंगे. साथ ही उनके सहारे जीने वाले 50 करोड़ लोग. लैब्राडोर सी कनवेक्शन की वजह से अब तक यूरोप गर्म रहता था. लेकिन अब इसमें परिवर्तन आ रहा है. ज्यादा भीषण ठंड हो रही है. जिसकी तुलना छोटे हिमयुग से की जा सकती है. ऐसी घटना 14वीं से 19वीं सदी के मध्य तक हुई भी थी. लेकिन फिर गर्मी बढ़ी तो अब यह नजारा देखने को नहीं मिल रहा है.
Earth Is Teetering on The Edge of Five Disastrous Climate Tipping Points, Study Finds https://t.co/y9Afwixy7V
— ScienceAlert (@ScienceAlert) September 9, 2022
पर्माफ्रॉस्ट के खत्म होने का असर रूस, स्कैंडिनेविया और कनाडा में देखने को मिल रहा है. अगर कार्बन उत्सर्जन रोका नहीं गया तो वहां का पूरा जमीनी नक्शा ही बदल जाएगा. 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान पहुंता तो पश्चिम अफ्रीका और साहेल जैसे इलाकों में मॉनसूनी बारिश डिस्टर्ब हो जाएगी. अमेजन के जंगल बर्बाद हो सकते हैं. बड़े पेड़ खत्म होकर ग्रासलैंड में बदल सकते हैं.