Elon Musk ने कहा है कि वो अपने 100 स्टारलिंक सैटेलाइट्स को अगले छह महीने में धरती पर गिराएंगे. क्योंकि इस सैटेलाइट के डिजाइन में गड़बड़ी है. वो फेल होकर दूसरे सैटेलाइट्स या स्पेसक्राफ्ट्स को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसलिए उनकी SpaceX कंपनी इन स्टारलिंक सैटेलाइट्स को डी-ऑर्बिट करेगी.
डी-ऑर्बिट का मतलब हुआ कि सैटेलाइट्स को धरती पर लाया जाएगा. इस दौरान वह वायुमंडल पार करेगा. बस यहीं पर इन सैटेलाइट्स की बची-कुची जिंदगी भी खत्म हो जाएगी. वो जलकर खाक हो जाएंगे. अब सवाल ये उठ रहा है कि क्या वायुमंडल में जलने वाले सैटेलाइट्स की वजह से धरती के जलवायु पर कोई असर पड़ रहा है?
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दुनियाभर के कई वैज्ञानिक इस बात को लेकर परेशान हैं कि जिस तरह से सैटेलाइट्स वायुमंडल पार करके धरती की तरफ आ रहे हैं. या फिर लाए जा रहे हैं. उससे वायुमंडल खराब हो रहा है. इसका असर धरती के जलवायु पर भी पड़ रहा है. क्योंकि इन सैटेलाइट्स में ओजोन को कम करने वाले धातु होते हैं.
धातु के बारीक कण ओजोन को पहुंचा रहे नुकसान
ये धातु स्ट्रैटोस्फेयर में बारीक कणों के रूप में घूमते रहते हैं. इससे ओजोन की परत में कमी आती है. धरती की निचली कक्षा यानी Lower Earth Orbit सबसे ज्यादा सैटेलाइट्स का घर है. यहां पर अकेले एलन मस्क के 5000 से ज्यादा स्टारलिंक सैटेलाइट्स घूम रहे हैं. इस समय अंतरिक्ष में कचरा साफ करना सबसे बड़ी चुनौती है.
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सैटेलाइट को डालना होगा ग्रेवयार्ड ऑर्बिट या धरती पर
पांच साल पहले अमेरिका ने नया और सख्त नियम बनाया था कि जो भी सैटेलाइट्स लॉन्च होंगे. उन्हें 25 साल के अंदर वापस धरती पर लाना होगा. या ऑर्बिट से दूर हटाना होगा. या तो ऊपर अंतरिक्ष में ग्रेवयार्ड ऑर्बिट (Graveyard Orbit) में डालना होगा, या धरती पर लाकर खत्म करना होगा.
इन सैटेलाइट्स में थोड़ा बहुत फ्यूल होता है. जो धरती पर लाते समय या तो खत्म कर दिया जाता है. या फिर वो वायुमंडल में जल कर खत्म होता है. इस फ्यूल की वजह से भी वायुमंडल में केमिकल रिएक्शन होता है. आमतौर पर इन सैटेलाइट्स को प्रशांत महासागर में मौजूद प्वाइंट नेमो में गिराया जाता है.
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जलकर खत्म होने वाला डिजाइन चल रहा है सैटेलाइट्स में
इन सबके बावजूद कई बार सैटेलाइट्स अनियंत्रित तरीके से नीचे आते हैं. ये कहां गिरेंगे इसका पता करना मुश्किल होता है. हालांकि ज्यादातर वायुमंडल में जलकर खत्म हो जाते हैं. लेकिन कुछ टुकड़े जमीन तक आ ही जाते हैं. आजकल नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी सैटेलाइट का ऐसा डिजाइन बना रहे हैं, जिसे डिजाइन फॉर डिमाइस कहा जाता है. यानी मरने के लिए बनाया गया डिजाइन. सैटेलाइट वायुमंडल में आते ही जलकर खाक हो जाए.
इसका मकसद ये है कि सैटेलाइट के खतरनाक हिस्से जलते हुए धरती पर न पहुंचे न ही उनसे किसी तरह का जानमाल का नुकसान हो. लेकिन जो वायुमंडल में सैटेलाइट आकर जलते हैं उनसे सबसे ज्यादा नुकसान हमारे ओजोन लेयर को होता है.