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दोबारा जिंदा होने वाला है 4 सौ साल पहले मारा जा चुका डोडो पक्षी, कबूतर के अंडे से लेगा जन्म!

विलुप्त पशु-पक्षियों की बात होती है तो डोडो का जिक्र जरूर आता है. हिंद महासागर के द्वीपों में पाई जाती ये भारी-भरकम चिड़िया 17वीं सदी के मध्य में गायब हो गई, जिसकी वजह हम इंसान ही थे. अब लगभग 4 सौ साल पहले विलुप्त हो चुके इस पक्षी को दोबारा जिंदा करने की कोशिश हो रही है. वैज्ञानिक इसके लिए जीन एडिटिंग का सहारा ले सकते हैं.

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डोडो पक्षी 17वीं सदी में गायब हो गया. सांकेतिक फोटो (Getty Images)
डोडो पक्षी 17वीं सदी में गायब हो गया. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

जेनेटिक इंजीनियरिंग पर काम करने वाली अमेरिकी कंपनी कोलोसल बायोसाइंसेज इस दिशा में कोशिश शुरू कर चुकी. हाल ही में कंपनी ने आधिकारिक तौर पर इसका एलान किया. इसके लिए उसे काफी सारी फंडिंग भी हो रही है. डी-एक्सटिंक्शन यानी अ-विलुप्तीकरण पर फोकस करने पर हो सकता है कि फ्यूचर में हमें डोडो के अलावा डायनोसोर भी सड़कों पर घूमते-फिरते दिख जाएं. वैसे फिलहाल ये काफी दूर की बात है, और ये भी पक्का नहीं कि जीन तकनीक से गायब हो चुके जीव वापस धरती पर लौट सकेंगे, लेकिन कोशिश होने लगी है. 

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टर्की के आकार का डोडो 13 से 23 किलो तक भारी होता है. पक्षी होने के बावजूद ये उड़ नहीं सकता. साल 1507 में सबसे पहले एक पुर्तगाली नाविक ने इसे देखा और शिकार किया था. इसका मांस इतना स्वादिष्ट लगा कि शिकार का सिलसिला चल निकला. बहुत तेजी से डोडो पक्षी खत्म होने लगे और 17वीं सदी में ये पूरी तरह से गायब हो गए. ब्रिटानिका वेबसाइट के मुताबिक आखिरी डोडो पक्षी साल 1681 में मॉरिशस में मार दिया गया, जिसके बाद सिर्फ म्यूजियम में इसके अवशेष दिखते हैं. 

खत्म होने के बाद इस पक्षी की बात बार-बार होने लगी. ये एक तरह से उदाहरण बन गया कि कैसे इंसानी गतिविधियों के कारण मासूम जीव-जंतु मारे जाते हैं. अब इसी गिल्ट को दूर करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग पर काम कर रही कंपनी इसे दोबारा जीवित करने पर जोर लगा रही है. 

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dodo extinction
जेनेटिक एडिटिंग की मदद से डोडो को वापस लाने की कोशिश हो रही है. सांकेतिक फोटो (Getty Images)

साल 2002 में ही डोडो से माइटोक्रॉन्ड्रियल DNA निकालकर सुरक्षित करने में सफलता मिल चुकी. ये वो DNA है, जो मां से बच्चे में ट्रांसफर होता है. इसे mtDNA कहा जा रहा है. जांच पर पाया गया कि इसका सबसे करीबी रिश्तेदार निकोबारी कबूतर है. अब इसी कबूतर की स्टडी की जाएगी ताकि डोडो को वापस लौटा लाने पर काम शुरू हो सके.

ये भी हो सकता है कि जीन तकनीक की मदद से कबूतर के जीन्स में बदलाव लाकर उन्हें ही डोडो पक्षी में बदल दिया जाए. ये भी हो सकता है कि वैज्ञानिक जीन एडिटिंग से नई तरह की कोशिकाएं बनाएं और उसे दूसरी चिड़िया के अंडों में डाल दें. जैसे कबूतर या मुर्गियों के विकसित हो रहे अंडों में. इससे शायद ऐसा हो सके कि नए जन्मा बच्चा आगे चलकर डोडो जैसे पक्षी को जन्म दे. 

हालांकि फिलहाल ये सब थ्योरी में है. साथ ही साइंटिस्ट ये भी मानते हैं कि 15वीं- 16वीं सदी से लेकर अब तक क्लाइमेट में भारी बदलाव हो चुका, ऐसे में बिल्कुल डोडो ही धरती पर दोबारा आ जाए, ये मुमकिन नहीं.

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निकोबार कबूतर फिलहाल डोडो का सबसे करीबी पक्षी माना जा रहा है तो सारी उम्मीद इसी से है. (Getty Images)

वैज्ञानिकों की एक बिरादरी डोडो या किसी भी विलुप्त हो चुके जीव को दोबारा जिंदा करने की कोशिशों का खूब विरोध कर रही है. उनका मानना है कि दुनिया में अभी इतनी स्पीशीज खत्म होने की कगार पर हैं, पहले उन्हें बचाने पर फोकस करना चाहिए, न कि मरे हुओं को जिंदा करने पर. वैसे भी अगर जीन एडिटिंग से डोडो वापस लौट आया तो उसकी कीमत उन पक्षियों को चुकानी होगी, जिनके जीन्स में बदलाव किए जाएंगे. 

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डोडो ही नहीं, कंपनी कई और एनिमल्स को जीवित करने की कोशिश में है, जिनमें से एक है तस्मानियन बाघ, जिसे थायलासिन भी कहते हैं. साल 1936 में दुनिया में आखिरी थायलासिन की मौत हो गई. इससे पहले ये जीव ऑस्ट्रेलिया में पाए जाते थे लेकिन धीरे-धीरे इनका शिकार होने लगा. इसकी वजह ये भी थी कि ये टाइगर मुख्य रूप से भेड़ खाते. भेड़ों का शिकार करने के कारण पशुपालन करने वाले इनपर भड़क उठे और यहां तक कि सरकार को भी इस जीव को मारने का फैसला लेना पड़ गया. 

 

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