पूर्वी फेंस छिपकली (Fence lizard) धूप सेक रही थी, तभी उसे महसूस हुआ कि उसकी पीठ पर एक छोटी सी लाल चींटी चल रही है. वो छिपकली भूखी नहीं थी इसलिए उसने उसे जाने दिया. लेकिन थोड़ी ही देर में बहुत सी चींटियां उसके पैरों पर रेंगने लगती हैं, छिपकली की सुरक्षा करने वाले स्केल्स को चींटियां काटने लगती हैं और उसके अंदर नर्म मांस में अपने डंक घुसा देती हैं.
इस खतरे से बचने के लिए छिपकली अपनी रक्षा के लिए अपना प्राकृतिक तरीका अपनाती है. वह आंख बद कर सपाट लेट जाती है. हालांकि, यह एक घातक फैसला हो सकता है. इनमें से सिर्फ 12 चींटियां एक वयस्क छिपकली को एक मिनट से भी कम समय में मार सकती हैं.
इस तरह की घटनाएं अब दक्षिणपूर्वी अमेरिका में आम है, जहां देशी जानवर जैसे कि पूर्वी फेंस छिपकलियां- स्केलोपोरस अंडुलाटस (Sceloporus undulatus) दशकों से आक्रामक लाल चींटियों- फायर आन्ट (सोलेनोप्सिस इनविक्टा) के साथ रह रही हैं.
वैज्ञानिक इन दोनों प्रजातियों के बीच के संबंध और समय के साथ इनमें हुए बदलावों पर शोध कर रहे हैं. ये 6 इंच लंबी छोटी छिपकलियां, हजारों सालों से दक्षिणपूर्वी अमेरिका में रह रही हैं. आक्रामक लाल चींटियां मूल रूप से दक्षिण अमेरिका से हैं, लेकिन 1930 के दशक में अनायास ही अलबामा के बंदरगाह पर आ गईं और उत्तर की ओर तेजी से फैल गईं.
शोधकर्ताओं को लगता है कि छिपकलियां आक्रमणकारी चींटियों के साथ रहना सीख रही हैं, चींटियों के हमलों से बेहतर तरीके से बचने के लिए वे अपने व्यवहार और शरीर में बदलाव कर रही हैं, यहां तक कि उन्हें खाने के एक नए स्रोत की तरह इस्तेमाल भी कर रही हैं.
हमलों से बचने के लिए शरीर और व्यवहार बदल रही हैं छिपकलियां
छिपकलियों और लाल चींटियों को जीवित रहने के लिए एक ही तरह का वातावरण चाहिए होता है. इसलिए ये दोनों प्रजातियां एक साथ ही रहती हैं. यहां हर कुछ मीटर पर लाल चींटियों के टीले देखे जा सकते हैं.
गंध की वजह से लाल चींटियों को मिनटों में ही छिपकली का पता चल जाता है और बाकी चींटियां भी जल्दी से वहां पहुंचकर हमला कर देती हैं. हालांकि, ऐसा नहीं होता कि छिपकली हार मान जाए. वह अपने शरीर को झटककर चीटिंयों को अलग कर देती है. ये व्यवहार छिपकलियों के बच्चों में आम है, लेकिन वयस्कों में खो जाता है. हालांकि, लाल चींटियों वाले क्षेत्रों में, वयस्क छिपकलियां इस व्यवहार को बनाए रखती हैं, जो उन्हें चींटी के हमले से बचने में मदद करता है.
छिपकलियां यह पता नहीं लगा सकतीं कि उनके शरीर पर कोई चींटी रेंग रही है या फिर कोई मक्खी, जिससे उसे कोई नुकसान नहीं है. इसलिए, सुरक्षित रहने के लिए, वे हर चीज़ पर इसी तरह रिएक्ट करती है. लेकिन यह व्यवहार छिपकलियों की सभी समस्याओं को हल नहीं करता, क्योंकि यह उनके छलावरण को तोड़ देता है, जिससे वे पक्षियों की निगाह में आ जाती हैं.
शोधकर्ताओं को पता लगा कि लाल चींटियों के साथ रहने वाली छिपकलियों के पैर लंबे हो गए थे, जो छिपकली को शरीर हिलाने और भागने में मदद करते हैं. यह इस प्रजाति में एक बड़ा बदलाव है, और इस प्रजाति के पुराने नमूनों को देखने पर यह स्पष्ट तौर पर नजर आता है. छिपकलियों की जो आबादी भूमध्य रेखा के करीब होती है, उसके अंग छोटे होते हैं.
खुद भी शिकार हो जाती हैं चींटियां
ये छिपकलियां, खासकर जब वे युवा होती हैं, तो अलग-अलग तरह की चींटियों को खूब खाती हैं. हालांकि, लाल चींटी खाने का मतलब होता है मुंह के अंदर डंक लगना. इससे ये खाना छिपकलियों के लिए काफी घातक भी बन सकता है. छिपकली के बच्चे जल्दी ही लाल चींटियों को नहीं खाना सीख जाते हैं. वहीं, वयस्क छिपकलियां लाल चींटियों को खाने के नए स्रोत की तरह देखती हैं.
छिपकलियों की इम्यूनिटी बढ़ रही है
लाल चींटियों का डंक मारना छिपकलियों के लिए बहुत तनावपूर्ण होता है. हमले के बाद इनके शरीर में तनाव से जुड़ा ग्लूकोकार्टिकोइड हार्मोन बढ़ जाता है. जिन छिपकलियों पर बार-बार हमला होता है उनका स्ट्रेस प्रोफाइल अलग होता है. आराम करते समय भी उनका ये हार्मोन बढ़ा हुआ होता है.
लाल चींटियों के साथ रहने वाली छिपकलियों के इम्यून सिस्टम में भी बदलाव दिखता है. उनके पास IgM एंटीबॉडी के स्तर ऊंचे हैं. साथ ही, एक तरह की सफेद रक्त कोशिकाओं का स्तर ज्यादा है जो ज़हरीले पदार्थों को बेअसर करने में मदद कर सकते हैं. लाल चींटी के हमलों से बचने के लिए इन छिपकलियों ने प्रतिरक्षा प्रणाली तैयार कर ली है.
समय-समय पर डंक मारने से छिपकली की त्वचा की प्रतिरोधक क्षमता उत्तेजित होती है, जो त्वचा को नुकसान पहुंचने से बचा सकती है. इसके अलावा लैब में जिन छिपकलियों ने चींटियां (इनके डंक निकाल दिए गए थे) खाई थीं, उनमें उन छिपकलियों के मुकाबले कुछ प्रतिरक्षा उपाए बढ़ गए थे जिनको चींटियों ने काटा था. छिपकलियों का इम्यून सिस्टम भविष्य में डंक से बचने में मदद कर सकता है.