कुछ महीने पहले की बात है, इसरो चीफ Dr. S. Somanath ने एक कार्यक्रम में प्रेजेंटेशन दिया था. उसमें उन्होंने बताया था कि बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर छल्लाकेरे में आर्टिफिशियल क्रेटर्स (Artificial Craters) बनाए गए हैं. इन्हीं क्रेटर्स यानी गड्ढों में चंद्रयान-3 और चंद्रयान-2 की टेस्टिंग की गई थी.
गड्ढे उलार्थी कवालू में बनाए गए थे, जो छल्लाकेरे में आता है. इन गड्ढों को बनाने में करीब 25 लाख रुपए की लागत आई थी. गड्ढों को अलग-अलग गहराई, चौड़ाई और अलग-अलग तरह के पत्थरों से भरकर बनाया गया था. ताकि चंद्रयान-3 और 2 के रोवर्स की जांच विभिन्न परिस्थितियों में की जा सके.
यहां तस्वीरों में जो लाल घेरे हैं, वो चंद्रयान-3 के लिए बनाए गए आर्टिफिशियल क्रेटर्स हैं. जबकि नीले रंग वाले चंद्रयान-2 के लिए बनाए गए क्रेटर्स हैं. इन क्रेटर्स में ही रोवर्स के सेंसर्स और थ्रस्टर्स और अन्य तकनीकी चीजों की जांच होती आई है. क्योंकि दोनों ही चंद्रयान मिशन में लगे सेंसर्स इन गड्ढों की स्टडी करके सेफ लैंडिंग की जगह खोज रहे थे.
चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए इन गड्डों में हुई थी सैकड़ों टेस्टिंग
साथ ही रोवर कहीं किसी बड़े गड्ढे में न जाए, इसकी भी तैयारी की गई थी. लैंडर उतरने के लिए सेंसर्स की मदद से गड्ढों से दूर हटकर समतल जगह पर लैंड करने का प्रयास करता. इसलिए इन गड्ढों पर पहले लैंडर और रोवर की टेस्टिंग की गई थी. चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के लिए इसरो ने 1000 से ज्यादा बार लैंडिंग की प्रैक्टिस कराई थी. इनमें से सैकड़ों इन्हीं आर्टिफिशियल क्रेटर्स में कराए गए थे.
इसरो ने चंद्रयान-2 के लिए भी ऐसे ही गड्ढे बनाए थे. उसपर परीक्षण भी किए गए थे लेकिन चांद पर पहुंचने के बाद विक्रम लैंडर के साथ जो हादसा हुआ, उसके बारे में कुछ भी कह पाना मुश्किल है. जिस तकनीकी खामी की वजह से वह हादसा हुआ था, उसे चंद्रयान-3 के लैंडर में दूर कर लिया गया है.