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Japan के SLIM लैंडर की पहली तस्वीर... छोटे से रोवर ने ली ऐतिहासिक Photo, लैंडिंग के दिए सबूत

Japan के पहले मून लैंडर SLIM की चांद की सतह पर पड़े हुए कि पहली फोटो आ गई है. यह फोटो ली है LEV-2 रोबोट रोवर ने. जो इस लैंडर के साथ गया था. ये एक ऐतिहासिक तस्वीर है. ये इमेज 24 जनवरी 2024 की रात में ली गई है.

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ये है JAPAN के Slim Lander की चांद के सतह से आई पहली तस्वीर. (सभी फोटोः JAXA)
ये है JAPAN के Slim Lander की चांद के सतह से आई पहली तस्वीर. (सभी फोटोः JAXA)

Japan को अपने मून लैंडर SLIM की चांद की सतह से पहली तस्वीर मिल गई है. यह एक ऐतिहासिक फोटो है. तस्वीर लेने वाला कोई और नहीं. स्लिम के साथ गए LEV-2 रोवर ने ली है. यह छोटा सा ज्योमेट्री बॉक्स के आकार का रोबोट है. 19 जनवरी 2024 को स्लिम चांद पर उतरा. जापान सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला पांचवां देश बन गया. 

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अब नई फोटो ने यह सबूत दे दिया है कि जापान ने चांद की सतह पर विज्ञान और तकनीक के झंडे गाड़ दिए हैं... 

Japan Slim Moon Mission

तस्वीर में साफ दिख रहा है कि कैसे सोने के कवर से घिरा हुआ स्लिम मून लैंडर चांद की ग्रे मिट्टी वाली सतह पर पड़ा है. LEV-2 यानी लूनर एक्सप्लोरेशन व्हीकल. इसे जापानी वैज्ञानिक SORA-Q भी कहते हैं. LEV-2 स्लिम के साथ जाने वाला अकेला रोवर नहीं है. इसके साथ एक और रोवर गया है. 

जापानी खिलौना कंपनी तकारा तोमी के डायरेक्टर और चेयरमैन किन्तारो तोयामा ने कहा कि SORA-Q जापान का पहला रोबोट है, जिसने चांद की सतह पर लैंड किया. अब वहां फोटोग्राफी कर रहा है. इसके लिए उन सभी को शुक्रिया है, जो इस मिशन में शामिल थे. जिन्होंने मिलकरक एक सपने को पूरा किया. 

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जापान कोशिश कर रहा है स्लिम को जिंदा करने की

Japan को उम्मीद है कि चांद पर मौजूद उनके SLIM मून लैंडर में अब भी जान बाकी है. 19 जनवरी 2024 को जापान ने चांद पर सफल लैंडिंग कराई. लेकिन उसके सोलर पैनल पावर देने में फेल हो गए. वो बिजली पैदा कर ही नहीं पा रहे हैं. लैंडर के सोलर पैनल नहीं खुलने से उसे ऊर्जा नहीं मिल रही है. स्लिम का मतलब है स्मार्ट लैंडर फॉर इन्वेस्टिगेटिंग मून मिशन (SLIM - Smart Lander for Investigating Moon). 

Japan Slim Moon Mission

सोलर पैनल इलेक्ट्रिसिटी पैदा कर ही नहीं पा रहे हैं. जिस वजह से लैंडर का भविष्य खतरे में दिख रहा है. लेकिन जापानी स्पेस एजेंसी JAXA ने अभी तक स्लिम को मृत घोषित नहीं किया है. स्पेस एजेंसी ने कहा कि चांद पर लैंड होने के बाद जब सोलर पैनल नहीं खुले, तो एजेंसी ने जानबूझकर लैंडर की बैट्री की क्षमता को 12 फीसदी कम कर दिया.  

लैंडिंग से पहले और उतरने तक स्लिम ने भेजा अपना डेटा

स्लिम ने काफी ज्यादा टेक्निकल डेटा और तस्वीरें जापान तक भेजी हैं. इस हफ्ते के अंत तक यह पता चल जाएगा कि जापान का स्लिम लैंडर फिर से उठेगा या उसकी मौत वहीं हो जाएगी. 19 जनवरी को लैंडिंग से पहले जापान के अंतरिक्षयान ने धरती से चांद तक पहुंचने के लिए 5 महीने की यात्रा की. 

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जापान चांद की जमीन पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने वाला पांचवां देश बन चुका है. इससे पहले भारत, रूस, अमेरिका और चीन यह सफलता हासिल कर चुके हैं. लैंडिंग के बाद स्लिम चांद की सतह पर मौजूद ओलिवीन पत्थरों की जांच करेगा, ताकि चांद की उत्पत्ति का पता चल सके. इसके साथ कोई रोवर नहीं भेजा गया है.   

Japan Slim Moon Mission

अब तक की सबसे सटीक लैंडिंग कराने वाला देश बना जापान

जापानी स्पेस एजेंसी JAXA ने बताया कि लैंडिंग के लिए उसने 600x4000 km का इलाका खोजा है. स्लिम ने इसी इलाके में लैंडिंग की है. ये जगह चांद के ध्रुवीय इलाके में है. बड़ी बात ये है कि जो स्थान चुना गया था लैंडिंग के लिए उसके पास ही यान ने सटीक लैंडिंग की. क्योंकि जापान का टारगेट था कि लैंडिग साइट के 100 मीटर दायरे में ही उसका स्पेसक्राफ्ट उतरे. और इस काम में उसने सफलता हासिल कर ली है. 

इस लैंडिंग साइंट का नाम है शियोली क्रेटर (Shioli Crater). यह चांद पर सबसे ज्यादा अंधेरे वाला धब्बा कहा जाता है. एक और संभावित लैंडिंग साइट मेयर नेक्टारिस (Mare Nectaris) भी है. जिसे चांद का समुद्र कहा जाता है. स्लिम में एडवांस्ड ऑप्टिकल और इमेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी लगी है. 

स्लिम के साथ एक्स-रे इमेजिंग एंड स्पेक्ट्रोस्कोपी मिशन (XRISM) भी गया है. यह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाते हुए चांद पर बहने वाले प्लाज्मा हवाओं की जांच करेगा. ताकि ब्रह्मांड में तारों और आकाशगंगाओं की उत्पत्ति का पता चल सके. इसे जापान, नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने मिलकर बनाया है. 

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