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विदेश में कैसे होता है फ्लड मैनेजमेंट? दिल्ली, मुंबई या पोरबंदर... डूब रहे हमारे शहर, हर जगह एक जैसा कहर

यहां आपको जो तस्वीर दिख रही है, उसमें सड़क दिख रही है क्या. या कोई नाला. ड्रेनेज सिस्टम. रेनवाटर मैनेजमेंट का कोई निशान. नहीं. एकदम नहीं. क्योंकि ये सब नदी बन चुके हैं. गुजरात के वड़ोदरा की ये तस्वीर हमारे शहरों में आने वाली 'Urban Flooding' की कहानी बयां कर रही है. सरकार, प्रशासन और आम लोगों की नाकामी की कहानी.

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ये है गुजरात का वड़ोदरा. इस तस्वीर में आम दिनों पर सड़कें दिखती हैं. ड्रेनेज सिस्टम भी. लेकिन अभी सब डूबे हुए हैं. (फोटोः PTI)
ये है गुजरात का वड़ोदरा. इस तस्वीर में आम दिनों पर सड़कें दिखती हैं. ड्रेनेज सिस्टम भी. लेकिन अभी सब डूबे हुए हैं. (फोटोः PTI)

बेतहाशा बारिश. फिर शहरों को बर्बाद करने वाली बेइंतहा बाढ़. शहर बड़ा हो या छोटा, डूबते सब हैं. दिल्ली, मुंबई, वड़ोदरा या पटना. सब पर एक ही कहर है. या तो समंदर से आई बाढ़ डुबाती है. यह नदी का उफान. ये तो चलो प्राकृतिक है. लेकिन शहर का वाटर मैनेजमेंट सिस्टम भी डुबा देता है इन्हें...जानिए कैसे? 

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देश की दोनों राजधानियां क्यों न हों. चाहे असल वाली दिल्ली या पैसे वाली मुंबई. गुजरात का पोरबंदर हो या बिहार का पटना. पूरे देश का यही हाल है. ड्रैनेज सिस्टम, रेनवाटर मैनेजमेंट, फ्लड रिस्क मैनेजमेंट... सब गड़बड़ है. हां सरकार बाढ़ की स्थिति आने से पहले तीन तरह के जवानों को जरूर अलर्ट कर देती है. ये हैं- पुलिस, NDRF/SDRF या फिर सेना. ताकि डूबे हुए इलाकों से लोगों और पालतू जानवरों को बचा सकें. 

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इमरजेंसी फोर्स को तैनात करिए लेकिन कम से कम अर्बन डेवलपमेंट तो सही हो. जलभराव होने पर मुंबई की हार्टलाइन यानी लोकल ट्रेन बंद हो जाती है. बेस्ट बसों को भी चलने में दिक्कत होती है. कई जगहों पर पानी में गाड़ियों के फंसे होने की तस्वीरें सामने आती हैं. ऐसा ही हाल दिल्ली का भी होता है. जरा सा बारिश में राष्ट्रीय राजधानी बुड़बुड़ाने लगती है. जैसे कोई जीव पानी में डूबते समय करता है.  

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पहले जानते हैं हमारे शहरों की दिक्कत. फिर पढ़िए लंदन जैसे शहरों की ऐसी व्यवस्था, जिससे जलभराव और जलजमाव नहीं होता. 

पोरबंदर, दिल्ली, मुंबई और पटना जैसे शहरों की दिक्कत... 

अपर्याप्त ढांचागत व्यवस्था... भारत के ज्यादातर शहरों में प्राचीन और अपर्याप्त ड्रेनेज सिस्टम हैं. ये सिस्टम ज्यादा बारिश की स्थिति को संभाल ही नहीं सकते. इसलिए आधे घंटे की बारिश में ये डूबने की कगार पर आ जाते हैं. गंभीर बाढ़ की स्थिति पैदा होती है. हर बारिश में 3-4 बार जलजमाव या जलभराव होता है. वजह ये है कि सीवरेज सिस्टम काम ही नहीं कर पाते. न ही इतने पानी का बहाव रोक पाते हैं. पिछले साल दिल्ली की बाढ़ देख लीजिए. इस साल भी वही हुआ. कुछ दिनों पहले मुंबई में ऐसे ही हालात थे. अब गुजरात के शहरों का यही हाल है.  

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रेनवाटर हार्वेस्टिंग की कमी... देश के शहरों में रेनवाटर हार्वेस्टिंग का काम थोड़ा बहुत ही शुरू हुआ है. लेकिन ये व्यापक पैमाने पर नहीं है. न ही इसे अर्बन प्लानिंग के साथ जोड़ा गया है. जबकि लंदन, न्यूयॉर्क या स्वीडन में यह व्यवस्था शुरूआत से लागू है. ये लागू हो तो शहर सही मात्रा में पानी को संजो सके. राजस्थान में कई इलाके इसी लिए आज भी बाढ़ से बच जाते हैं, क्योंकि वहां रेनवाटर हार्वेस्टिंग नियमों में शामिल हैं. लोग इसे फॉलो करते हैं. 

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शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन... तेजी से शहरीकरण होने की वजह से पानी को सोखने वाले इलाके कम हो गए हैं. वेटलैंड्स और हरियाली वाली जगहों की कमी होती जा रही है. जलवायु परिवर्तन की वजह से बारिश ज्यादा तेजी से और कभी भी हो जाती है. इससे वर्तमान ड्रेनेज सिस्टम पर काफी ज्यादा दबाव पड़ता है. 

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सीमित सरकारी सपोर्ट... विदेशों की सरकार की तरह भारत में सरकार की नीतियों में कमी है.रेनवाटर हार्वेस्टिंग के लिए सरकार को व्यापक पैमाने पर जागरुकता अभियान और इंसेटिव देने की योजना बनानी चाहिए. ताकि जो लोग इस तरह की चीजों को करना चाहते हैं, उन्हें प्रोत्साहन मिले. इमारतों में ये सिस्टम लगने से शहर में जल प्रबंधन आसान हो जाएगा. 

लोगों में जागरुकता की कमी... हमारे यहां लोग जागरूक नहीं हैं. ड्रेनेज में प्लास्टिक कचरा डाल देंगे. जिससे ड्रेनेज सिस्टम ब्लॉक हो जाता है. ऐसा ही कचरा बड़े पैमाने पर जाकर उस जगह को ब्लॉक करता है, जहां से गंदगी नदियों या समंदर में जाती है. इससे बारिश के समय बहाव रुक जाता है. पानी जमा होने लगता है. समंदर से लहरें आती हैं तो वो वापस नहीं जातीं. 

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दुनिया के अन्य बड़े शहरों क्या चीज बेहतर है... 

रेनवाटर हार्वेस्टिंग... पश्चिमी देशों के बड़े शहरों में अधिकतम जगहों पर रेनवाटर हार्वेस्टिंग पर पूरा ध्यान दिया गया है. इमारतों में इस तकनीक को शामिल किया गया है. बारिश के पानी को स्टोर करके फिर से इस्तेमाल किया जाता है. जैसे म्यूजियम ऑफ लंदन को ले लीजिए. यहां पर 850 वर्ग मीटर की छत है. यहां बारिश में 25 हजार लीटर पानी हार्वेस्ट किया जाता है. यानी स्टोर किया जाता है. जिसका इस्तेमाल टॉयलेट फ्लशिंग और सिंचाई में होता है. 

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टिकाऊ शहरी ड्रैनेज सिस्टम... स्टॉर्मवाटर प्रबंधन तकनीक बेहतर तरीके से लागू है. इससे सीवरेज सिस्टम पर लोड कम आता है. स्टॉर्मवाटर प्रबंधन से बारिश के पानी को सही समय पर निष्काषित किया जा सकता है. या एक जगह कलेक्ट करके फिर से इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे बारिश का पानी बेवजह सीवरेज सिस्टम में नहीं जाता. बल्कि बिना सीवर में मिले साफ जलस्रोतों में बह जाता है.  

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कानून और इंसेंटिव्स... रेनवाटर हार्वेस्टिंग को ज्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है. उसके लिए सख्त नियम बनाए जा रहे हैं. हर नई इमारत में इसे लागू करना होता है.

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