26 जुलाई से 7 अगस्त 1971 तक अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के चौपहिया वाहन ने चांद की सतह पर दौड़ लगाई थी. ये था अपोलो-15 (Apollo 15) मिशन. चांद पर चलाई जाने वाली कारें यानी लूनर रोवर (Lunar Rover) तब मैनुअल थीं. यानी हाथ से गियर बदलता पड़ता था. अब चांद पर जो कारें भेजी जाएंगी वो पूरी तरह से ऑटोमैटिक होंगी. तब बिना छत वाली कार थी. इस बार एस्ट्रोनॉट्स के सिर पर छत होने की पूरी संभावना है.
चांद और मंगल पर भेजे जाने वाली ऑटोमैटिक कारों का निर्माण अमेरिकी विमान और रॉकेट बनाने वाली कंपनी लॉकहीड मार्टिन (Lockheed Martin) और कार और इंजन निर्माता कंपनी जनरल मोटर्स (General Motors) मिलकर करेंगे. इसके बाद इन ऑटोमैटिक कारों की जांच NASA करेगा. उन्हें अपने रॉकेट्स में सेट करके अर्टेमिस प्रोग्राम (Artemis Programme) के तहत चांद और मंगल पर भेजेगा.
ज्यादा दूरी तय कर पाएंगी ऑटोमैटिक स्पेस कार
लॉकहीड मार्टिन और जनरल मोटर्स ने कहा है कि वो ऐसे रोवर्स बनाने जा रहे हैं, जिनकी बदौलत अंतरिक्षयात्री चांद और मंगल पर लंबी दूरी तय कर सकेंगे. अपोलो-15 के समय चांद पर उतारी गई कार लैंडिंग साइट से सिर्फ 6.45 किलोमीटर दूर तक ही गई थी. लेकिन अर्टेमिस प्रोग्राम के तहत जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स को इससे ज्यादा दूरी कवर करने का मौका मिलेगा. वो चांद और मंगल की सतह पर ज्यादा दूरी तक अपनी ऑटोमैटिक स्पेस कार (Autonomous Space Car) को चला पाएंगे.
कम समय में ज्यादा दूरी तय करने में होगी मदद
इस तरह की ऑटोनॉमस कारों की बदौलत एस्ट्रोनॉट्स कम समय में ज्यादा दूरी कवर करके ज्यादा बेहतर सैंपल जमा कर सकेंगे. ज्यादा बेहतर प्रयोग कर सकेंगे. ज्यादा लंबे समय तक चांद या मंगल पर बिता सकेंगे. लॉकहीड मार्टिन के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट रिक एम्ब्रोस ने कहा कि यह अत्याधुनिक नेक्स्ट जेनरेशन रोवर होंगे. जो चांद और मंगल ग्रह पर साइंटिफिक खोज को बहुत बड़े पैमाने पर मदद करेंगे. इन ऑटोमैटिक स्पेस कारों की वजह से इंसानियत को बहुत ज्यादा फायदा होगा.
कम ग्रैविटी वाली जगह पर कार चलाना आसान नहीं
रिक ने बताया कि अब तक चांद पर जितने भी मिशन भेजे गए हैं, उनसे सिर्फ उसका 5 फीसदी हिस्सा ही खोजा गया है. बाकी के 95 फीसदी हिस्से की जांच के लिए हमें ऐसी गाड़ियों की जरूरत है, जो चांद के कम गुरुत्वाकर्षण वाली सतह पर आराम से चल सके. क्योंकि चांद की सतह पर कार चलाना, धरती पर ऑफरोडिंग से ज्यादा कठिन है. क्योंकि यहां घना अंधेरा, सर्दी और खराब सतह मिलेगी. साथ ही ग्रैविटी का असर अलग रहेगा.
सबसे बड़ी चुनौती है तापमान में आने वाला बदलाव
धरती या मंगल की तरह चांद के दिन और रात नहीं होते. चांद पर दिन और रात 14 दिन लंबे होते हैं. यानी लॉकहीड मार्टिन और जनरल मोटर्स को ऑटोमैटिक स्पेस कार बनाने के लिए ऐसी डिजाइन का ख्याल रखना होगा जो रात में माइनस 173 डिग्री सेल्सियस और दिन में 126 डिग्री सेल्सियस का तापमान बर्दाश्त कर सके. क्योंकि इतनी गर्मी में मजबूत से मजबूत धातु पिघल जाए. कम तापमान में इंजन जम जाए. ईंधन जम गया तो कार का चलना मुश्किल हो जाएगा.
A trailblazer in the truest sense! We're excited at the prospect of driving his legacy forward with @GM: https://t.co/yNNoT9KdoV pic.twitter.com/bWzbTfaBu9
— Lockheed Martin Space (@LMSpace) June 6, 2022
ग्रैविटी के हिसाब से होगा कारों का डिजाइन
जनरल मोटर्स में ग्लोबल रिसर्च एंड डेवलपमेंट ग्रुप मैनेजर मधु राघवन ने कहा कि चांद पर कोई कार या गाड़ी चलाना गुरुत्वाकर्षण की वजह से मुश्किल हो जाता है. हमें ऐसी डिजाइन देनी होगी जिसमें ग्रैविटी का पूरा ख्याल रखा जाए. इसके अलावा तापमान में लगाता हो रहे बदलावों को बर्दाश्त कर सके. रेडिएशन की मार झेल सके. लेकिन हमें पूरा भरोसा है कि हमारी कंपनियों के एक्सपर्ट ये काम आसानी से कर लेंगे.