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ISRO's Missions After Chandrayaan-3: मिशन निसार, आदित्य और गगनयान... चंद्रयान के बाद अंतरिक्ष में और गहरे होंगे तिरंगे के निशान

Chandrayaan-3 के बाद इसरो के पास कई मिशन की लंबी फेहरिस्त है. इसरो वैज्ञानिकों को सांस लेने की भी फुरसत नहीं मिलेगी. एक मिशन सूरज के लिए, दूसरा पूरी धरती की सुरक्षा के लिए, तीसरा अंतरिक्ष की स्टडी के लिए और चौथा गगनयान. आइए जानते हैं कि इस साल कौन-कौन से बड़े मिशन हैं?

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Chandrayaan-3 के बाद इसरो के पास कई बड़े मिशन की लॉन्चिंग होगी. ये मिशन दुनिया में मिसाल कायम करेंगे. (सभी फोटोः ISRO)
Chandrayaan-3 के बाद इसरो के पास कई बड़े मिशन की लॉन्चिंग होगी. ये मिशन दुनिया में मिसाल कायम करेंगे. (सभी फोटोः ISRO)

Chandrayaan-3 के बाद भी ISRO को फुरसत नहीं मिलने वाली. एक के बाद एक कई प्रोजेक्ट्स हैं. कई मिशन हैं. चंद्रयान-3 के ठीक बाद भारत का सूर्ययान यानी आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन लॉन्च होना है. संभावित तारीख 30 या 31 अगस्त या फिर सितंबर महीने के पहले हफ्ते में हो सकती है. सूर्ययान सूरज के वातावरण का अध्ययन करेगा. 

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इसके बाद एक्सपोसैट (XPoSat) यानी एक्स-रे पोलैरीमीटर सैटेलाइट (X-ray Polarimeter Satellite) की लॉन्चिंग इसी साल होने वाली है. यह देश का पहला पोलैरीमीटर सैटेलाइट हैं. यह अंतरिक्ष में एक्स-रे सोर्सेस की स्टडी करेगा. यह लॉन्च के लिए तैयार है. इसके लॉन्चिंग की तारीख जल्द ही घोषित हो सकती है.  

NISAR
ये है निसार सैटेलाइट. जो पूरी धरती को कई तरह की प्राकृतिक आपदाओं की पहले ही सूचना दे देगा. 

इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ ने बताया कि इनके अलावा एक क्लाइमेट ऑब्जरवेशन सैटेलाइट भी लॉन्च किया जाएगा. जिसका नाम है INSAT-3DS. यह देश के मौसम से संबंधित जानकारी देगा. इसके अलावा सबसे बड़ा मिशन होगा, गगनयान (Gaganyaan) के क्रू मॉड्यूल का मानवरहित फ्लाइट टेस्ट. 

दो बार क्रू मॉड्यूल के मानवरहित फ्लाइट टेस्ट के बाद भारतीय एस्ट्रोनॉट्स यानी अंतरिक्ष यात्रियों को गगनयान कैप्सूल में बिठाकर अंतरिक्ष में भेजा जाएगा. यानी भारत में बनी तकनीक, कैप्सूल और रॉकेट से भारत के एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष की सैर करेंगे. इसके बाद भारत और अमेरिका का ज्वाइंट मिशन लॉन्च होगा. इसका नाम है निसार (NISAR). यानी इंडिया-यूएस बिल्ट सिंथेटिक अपर्चर रडार. 

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PSLV Launch

निसार की बदौलत दुनिया में आने वाली किसी भी प्राकृतिक आपदा का अंदाजा पहले ही लगाया जा सकता है. निसार को धरती की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा. यह हर 12 दिन में पूरी दुनिया का नक्शा बनाएगा. लगातार धरती के इकोसिस्टम, बर्फ की मात्रा, पेड़-पौधे, बायोमास, समुद्री जलस्तर, भूजल का स्तर, प्राकृतिक आपदाएं, भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी और भूस्खलन आदि पर नजर रखेगा. 

निसार में L और S ड्यूल बैंड सिंथेटिक अपर्चर रडार लगा है जो सार तकनीक के जरिए बेहद बड़े इलाके का हाई रेजोल्यूशन डेटा दिखाता है. इसमें इंटिग्रेटेड रडार इंस्ट्रूमेंट स्ट्रक्चर (ISRI) भी लगा है. दोनों मिलकर एक ऑब्जरवेटरी का काम करते हैं.  

Gaganyaan Capsule
ये है गगनयान का क्रू मॉड्यूल जिसके अंदर बैठकर भारतीय एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में जाएंगे. (फोटोः ऋचीक मिश्रा)

इसके अलावा इसरो प्रमुख ने यह भी कहा था कि इस साल इसरो देश की सुरक्षा से संबंधित भारी मात्रा में सैटेलाइट बना रहा है. गगनयान मिशन के मानवरहित क्रू मॉड्यूल अगले साल तक मिल जाएंगे. ये परीक्षण भारत को उन देशों की सूची में शामिल कर देंगे, जिनके पास अपने लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता है. 

गगनयान मिशन के तहत इसरो दुनिया को यह दिखाना चाहता है कि वह अपनी तकनीक और अपने यंत्र से अपने एस्ट्रोनॉट्स को अंतरिक्ष की यात्रा कराएगा. इसके लिए ऑर्बिटल मॉड्यूल होगा. जिसके दो हिस्से होंगे. क्रू मॉड्यूल जिसमें एस्ट्रोनॉट्स रहेंगे. दूसरा सर्विस मॉड्यूल जो क्रू मॉड्यूल को ऊर्जा देगा. 

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क्रू मॉड्यूल में एस्ट्रोनॉट्स को बिठाकर धरती से करीब 400 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में एक से तीन दिन के लिए भेजा जाएगा. ये मॉड्यूल पृथ्वी के चारों तरफ गोलाकार ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा. इसके बाद तय स्थान पर समुद्र में लैंड करेगा.  

चांद के करीब पहुंचते ही चंद्रयान-3 की स्पीड में कैसा बदलाव?

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