3 जुलाई से 5 जुलाई 2023 तक दुनिया ने रिकॉर्ड तोड़ गर्मी महसूस की. 1979 के बाद पहली बार इस स्तर की गर्मी हुई है. या तो 44 साल पहले उस समय के तापमान की बराबरी हुई है. या फिर चढ़ते पारे ने उसे पीछे छोड़ दिया. 3 जुलाई को दुनिया का औसत तापमान 17 डिग्री सेल्सियस था. लेकिन 4 और 5 जुलाई को इसके भी आगे बढ़ गया.
4-5 जुलाई को औसत तापमान 17.2 डिग्री सेल्सियस हो गया. आप कहेंगे कि ये कोई तापमान है. ये तो कुछ भी नहीं है. लेकिन यहां बात हो रही है पूरी दुनिया के औसत तापमान की. यह उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के तापमान का औसत है. ध्रुवों पर इस समय सर्दी है. तापमान में इस बढ़ोतरी की वजह जलवायु परिवर्तन और अल-नीनो माना जा रहा है.
जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के क्लाइमेट साइंटिस्ट किम कॉब ने बताया कि प्रशांत महासागर पूरी दुनिया का लगभग आधा हिस्सा कवर करता है. अल-नीनो के समय इसका बड़ा हिस्सा गर्म हो जाता है. इसकी वजह से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तापमान बढ़ता जा रहा है. चाहे वह अमेरिका हो या फिर चीन. दोनों ही देश तप रहे हैं.
3 को रिकॉर्ड टूटा, 4-5 को नया रिकॉर्ड
दुनिया के तापमान पर मायन यूनिवर्सिटी का क्लाइमेट रीएनालाइजर नजर रखता है. यह एक तरह का टूल है जो दुनिया भर से डेटा जमा करता है. वो डेटा जो वैश्विक वायुमंडल की नाप-जोख करता है. उसी ने बताया कि दुनिया का औसत तापमान 3 जुलाई को 17 डिग्री सेल्सियस और 4-5 जुलाई को 17.2 डिग्री सेल्सियस था.
क्लाइमेट रीएनालाइजर सिर्फ वायुमंडल का ही नहीं, बल्कि सतह का तापमान भी देखता है. इसके अलावा सैटेलाइट्स से पूरी धरती के तापमान के आंकड़ों को भी जांचता है. इसके आंकड़ों को NOAA भी मानता है. ऐसा नहीं है कि सिर्फ जुलाई ही इकलौता महीना है जब तापमान इतना ऊपर चला जाता है.
जून महीना भी पिछले साल से गर्म था
यूरोपियन यूनियन के कॉपरनिकल क्लाइमेट चेंज सर्विस ने पिछले महीने यानी जून में भी गर्मी महसूस की थी. इस साल जून का महीना पिछले साल के जून महीने से 0.2 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म था. पिछले हफ्ते ही दक्षिणी और पूर्वी अमेरिका में हीटवेव का दौर था. टेक्सास में 13 लोगों की मौत हो गई थी.
जब बात आती है अल-नीनो की, तब उसे समुद्री गर्मी से जोड़ा जाता है. इस समय जो अल-नीनो चल रहा है, उसे वैज्ञानिक साल 2016 के अल-नीनो के बराबर पा रहे हैं. फिलहाल आंकड़े तो यही कह रहे हैं. इसकी वजह से समुद्री जीवों और कोरल रीफ पर आफत आती है. यानी मूंगा पत्थरों का रंग बदलने लगता है.
किम कॉब कहते हैं कि तापमान के डेटा आते रहेंगे. लेकिन हमें उन्हें डराने वाला नहीं देखना है. हम नहीं चाहते कि ये आंकड़े हमें डराएं नहीं. क्लाइमेट चेंज और अल-नीनो की वजह से वैश्विक स्तर पर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. जो पेरिस एग्रीमेंट के खिलाफ चला जाएगा. यानी दुनिया धधकने लगेगी.