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हरियाणा की बेटी, अमेरिका में Phd और NASA का मिशन... जब कल्पना चावला ने भरी अंतरिक्ष की उड़ान

कल्पना चावला... अंतरिक्ष में जाने वाली पहली भारतीय मूल की महिला. इन्होंने अपने अपनी जीवन में कुल दो बार स्पेस मिशन की उड़ान भरी. पहली उड़ान तो सफल रही. लेकिन दूसरी बार स्पेस से लौटते वक्त कुछ ऐसा हुआ जिसमें स्पेस शटल आग में तब्दील हो गया और उसमें सवार सभी अंतरिक्ष यात्रियों की दर्दनाक मौत हो गई. आखिर उस दिन कोलंबिया स्पेस शटल में ऐसा क्या हुआ था. चलिए जानते हैं विस्तार से...

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कल्पना चावला.
कल्पना चावला.

भारत के वैज्ञानिकों ने शुक्रवार को चंद्रयान 3 का सफलता पूर्वक प्रक्षेपण कर एक इतिहास रच दिया. भारतीय साइंटिस्ट विज्ञान के क्षेत्र में नित नये आयाम स्थापित कर रहे हैं. आज हम बात करेंगे भारत में जन्मी उस बेटी की, जिसने अंतरिक्ष में उड़ान भरके ऐसे मिशन को अंजाम दिया था, जो पूरी दुनिया में इतिहास बन गया.

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कल्पना चावला का जन्म 17 मार्च 1962 में हरियाणा के करनाल में हुआ था. बचपन से ही आत्मविश्वासी रही कल्पना अपने चार भाई बहनों में सबसे छोटी थीं. उन्होंने अपनी पढ़ाई टैगोर बाल निकेतन स्कूल से की. साल 1976 में कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में अपनी बैचलर्स की डिग्री पूरी की.

उस समय एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग करने वाली वो अकेली लड़की थीं. 1982 में वो अमेरिका चली गईं. वहां जाकर उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास से एयरोनॉटिकल स्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की. अपनी मास्टर्स डिग्री के दौरान ही उनकी मुलाकात जीन पियरे हैरिसन से हुई. साल 1983 में उन्होंने जीन से शादी कर ली.

साल 1988 में यूनिवर्सिटी ऑफ कॉलोराडो बोल्डर से एयरो स्पेस इंजीनियरिंग में पीएचडी की. उसी साल उन्होंने NASA के साथ काम करना शुरू किया. साल 1991 में उन्हें अमेरिका की सिटिजनशिप मिल गई. फिर दिसंबर 1994 में उन्हें अंतरिक्ष यात्री के 15वें समूह में शामिल कर लिया गया.

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कल्पना की काबिलियत देखते हुए NASA ने 1996 में ही अपने पहले स्पेस मिशन के लिए उन्हें विशेषज्ञ और प्राइम रोबोटिक आर्म ऑपरेटर के रूप में नियुक्त कर लिया. 19 नवंबर 1997 को कोलंबिया स्पेस शटल ने अमेरिका की कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी. इसमें कल्पना चावला सहित 6 क्रू मेंबर्स सवार थे. इस मिशन को STS-87 नाम दिया गया. इस मिशन के दौरान उन्होंने स्पेस में 15 दिन और 16 घंटे बिताए. 5 दिसंबर 1997 को यह स्पेस शटल धरती पर सफलतापूर्वक वापस भी आ गया.

इसके बाद अंतिरक्ष में जाने वाली वह भारतीय मूल की पहली महिला बनीं. पिछले मिशन की सफलता के बाद NASA ने कल्पना को दूसरे स्पेस मिशन के लिए सलेक्ट कर लिया. इस मिशन को STS-107 नाम दिया गया. लेकिन कोलंबिया स्पेस शटल में बार-बार आ रही खराबियों को देखते हुए यह मिशन लगातार 18 बार पोस्टपोन हुआ.

दो साल तक स्पेस शटल की तमाम खामियों को ठीक करने के बाद फाइनली 16 जनवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल ने फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से अपनी 28वीं और आखिरी उड़ान भरी. इसमें कल्पना चावला समेत 7 अंतरिक्ष यात्री सवार थे. अपने मिशन के दौरान पूरे 15 दिन, 22 घंटे और 20 मिनट रहने के बाद 1 फरवरी 2003 को जब यह शटल धरती के वायुमंडल की तरफ बढ़ रहा था कि तभी स्पेस शटल सवार अंतरिक्ष यात्रियों को एक जोरदार झटका लगा.

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सभी स्पेस शटल सवार अंतरिक्ष यात्रियों की मौत

फिर उन्हें सांस लेने में दिक्क होने लगी. इससे पहले कि वे कुछ समझ पाते वे बेहोश हो गये. बेहोश होने के बाद उनके शरीर का तापमान बढ़ गया जिससे शरीर में मौजूद खून उबलने लगा और शटल में ब्लास्ट होने से पहले ही उनकी दर्दनाक मौत हो गई. जिसके बाद यह धरती पर पहुंचने से ही ब्लास्ट हो गया. इस घटना के कारणों की जांच के लिए नासा ने अंतरिक्ष शटल उड़ानों को अगले 2 साल से अधिक समय के लिए निलंबित कर दिया.

क्‍या थी हादसे की वजह?

जांच में पता चला कि फोम का एक बड़ा टुकड़ा शटल के बाहरी टैंक से टूटकर अलग हुआ और इसने अंतरिक्ष यान के पंख को तोड़ दिया. यह बाद में पाया गया कि बाएं पंख पर बने छेद के चलते बाहरी वायुमंडलीय की गैसें शटल के अंदर बहने लगीं. इसके चलते सेंसर खराब हो गए और आखिर में कोलंबिया सभी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ नेस्‍तोनाबूत हो गया. फोम के साथ यह समस्या वर्षों से जानकारी में थी, लेकिन फिर भी इसके इस्‍तेमाल को जारी रखने की अनुमति देने के लिए नासा कांग्रेस और मीडिया गहन जांच के दायरे में आ गया.

पहले ही तय हो गई थी कल्पना चावला की मौत

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इस हादसे के 10 साल बाद यानि, 17 जनवरी 2013 को कोलंबिया के प्रोग्राम मैनेजर ने Wayne Hale ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया. उनके मुताबिक, कोलंबिया स्पेस शटल के उड़ान भरते ही पता चल गया था कि ये सुरक्षित जमीन पर नहीं उतरेगा, तय हो गया था कि सातों अंतरिक्ष यात्री मौत के मुंह में ही समाएंगे. फिर भी उन्हें इसकी जानकारी नहीं दी गई. बात हैरान करने वाली है, लेकिन यही सच है.

अंतरिक्ष यात्रा के हर पल मौते के साये में स्पेस वॉक करती रहीं कल्पना चावला और उनके 6 साथी. उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगने दी गई कि वो सुरक्षित धरती पर नहीं आ सकते. वो जी जान से अपने मिशन में लगे रहे, वो पल-पल की जानकारी नासा को भेजते रहे लेकिन बदले में नासा ने उन्हें पता तक नहीं लगने दिया कि वो धरती को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर जा चुके हैं, उनके शरीर के टुकड़ों को ही लौटना बाकी है.

उस वक्त सवाल ये था कि आखिर नासा ने ऐसा क्यों किया? क्यों उसने छुपा ली जानकारी अंतरिक्ष यात्रियों से और उनके परिवार वालों से. लेकिन नासा के वैज्ञानिक दल नहीं चाहते थे कि मिशन पर गये अंतरिक्ष यात्री घुटघुट अपनी जिंदगी के आखिरी लम्हों को जिएं. उन्होंने बेहतर यही समझा कि हादसे का शिकार होने से पहले तक वो मस्त रहे. मौत तो वैसे भी आनी ही थी.

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7 क्रू मेंबर्स थे सवार

क्रू के 7 सदस्यों में रिक हसबैंड, कमांडर; माइकल एंडरसन, पेलोड कमांडर; डेविड ब्राउन, मिशन स्‍पेशलिस्‍ट; कल्पना चावला, मिशन स्‍पेशलिस्‍ट; लॉरेल क्लार्क, मिशन स्‍पेशलिस्‍ट; विलियम मैककूल, पायलट और इजराइली अंतरिक्ष एजेंसी के पेलोड स्‍पेशलिस्‍ट इलन रेमन शामिल थे. क्रू ने दिन में 24 घंटे दो शिफ्ट में काम करके अपनी शोध पूरी की. उन्होंने पृथ्वी पर वापस लौटने से पहले जीव विज्ञान, भौतिक विज्ञान, द्रव भौतिकी और अन्य विषयों के लगभग 80 प्रयोग किए.

5 फरवरी, 2003 को भारत सरकार ने कल्पना चावला के अभूतपूर्व योगदान को देखते हुए यह घोषणा की कि ISRO मौसम संबंधी जितने भी उपग्रह स्पेस में भेजेगी, उनके नाम कल्पना सैटेलाइट होंगे. इसके अलावा NASA ने कल्पना चावला के सम्मान में एक सूपर कंप्यूटर और मंगल गृह पर एक पहाड़ी का नाम भी कल्पना चावला के नाम पर ही रखा है.

 

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