scorecardresearch
 

Chandrayaan-3: जहां अमेरिका, चीन और रूस की हिम्मत नहीं हुई, वहां ISRO उतारेगा अपने चंद्रयान का लैंडर

दुनिया के 11 देश हैं जो चंद्रमा पर अपने मिशन भेज चुके हैं. कई प्रकार के मिशन. इंसानों को सिर्फ अमेरिका ने उतारा है. भारत से पहले या लगभग साथ में जापान और इजरायल ने सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया लेकिन विफल रहे. आइए जानते हैं कि किन देशों ने कितने प्रकार के मिशन चांद पर भेजे... चंद्रयान-3 उनसे कैसे अलग है?

Advertisement
X
चंद्रमा पर इंसानों को सिर्फ अमेरिका ही उतार पाया है. सिर्फ तीन देशों के पास है सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक.
चंद्रमा पर इंसानों को सिर्फ अमेरिका ही उतार पाया है. सिर्फ तीन देशों के पास है सॉफ्ट लैंडिंग की तकनीक.

चंद्रमा पर ISRO अपना तीसरा मून मिशन भेज चुका है. यानी Chandrayaan-3. भारत दूसरी बार चांद की सतह पर लैंडिंग का प्रयास कर रहा है. वह भी ऐसी जगह, जहां पर अब तक किसी भी देश ने लैंडिंग की कोशिश तक नहीं की है. न ही हिम्मत. वैसे दुनिया में 11 देश हैं, जिन्होंने अपने मून मिशन भेजे हैं. अगर भारत का यह मिशन सफल होता है, तो दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारने वाला पहला देश बन जाएगा भारत. दुनिया की पहली स्पेस एजेंसी बन जाएगी इसरो. 

Advertisement

भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक स्थित मैंजिनस-यू (Manzinus-U) क्रेटर के पास चंद्रयान-3 को उतार सकता है. इसरो प्रमुख डॉ. एस सोमनाथ पहले ही बोल चुके हैं कि हम चंद्रयान-3 को दक्षिणी ध्रुव के पास उतार रहे हैं. न कि दक्षिणी ध्रुव पर. इसकी वजह ये है कि दक्षिणी ध्रुव का तापमान माइनस 200 डिग्री सेल्सियस या उससे भी कम हो जाता है. वहां रोशनी पर्याप्त नहीं रहती.

Chandrayaan-3 Vikram Lander Descending
दक्षिणी ध्रुव पर नहीं उतरेगा चंद्रयान-3, वह उसके पास रोशनी वाली इलाके में उतरेगा. (फोटोः ISRO)

अगर चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे सोलर पैनल्स को सूरज की रोशनी नहीं मिलेगी तो वह ऊर्जा कहां से पाएगा. लेकिन विक्रम लैंडर जिस जगह उतारा जा रहा है, वहां पर आज तक किसी भी देश ने अपना कोई भी यान नहीं उतारा है. दक्षिणी ध्रुव के सबसे नजदीक अगर कोई यान उतरा था, तो वह था 10 जनवरी 1968 को उतारा गया अमेरिका का सर्वेयर-7 स्पेसक्राफ्ट. लेकिन ये जगह चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्पॉट से काफी दूर है. 

Advertisement

ये भी पढ़ेंः Chandrayaan 3 Location: बदल गया चंद्रयान-3 का चौथा ऑर्बिट 

ये मून मिशन अलग-अलग प्रकार के थे. 

1. फ्लाईबाई यानी चंद्रमा के बगल से गुजरने वाला मिशन. 
2. ऑर्बिटर यानी चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगाने वाला मिशन. 
3. इम्पैक्ट यानी चंद्रमा की सतह पर यंत्र गिराने वाला मिशन. 
4. लैंडर यानी चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग. 
5. रोवर यानी चंद्रमा की जमीन पर रोबोटिक स्वचालित यंत्र उतारना. 
6. रिटर्न मिशन यानी वहां से कोई सामान लेकर आने वाला मिशन. 
7. क्रू मिशन यानी इंसान को चांद पर पहुंचाना. 

Russia LUNA 24 Moon Mission
रूस ने सबसे पहले चंद्रमा पर कराई थी सॉफ्ट लैंडिंग. उसके लूना-9 मिशन ने हासिल की थी ये सफलता. 

ये भी पढ़ेंः अंतरिक्ष से सामने आई Chandrayaan-3 की तस्वीर

अब जानिए किस देश ने भेजे किस तरह के मिशन

1. फ्लाईबाईः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, लग्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली. 
2. ऑर्बिटरः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण कोरिया. 
3. इम्पैक्टः अमेरिका, सोवियत संघ, चीन, जापान, भारत, यूरोपियन स्पेस एजेंसी, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात, लग्जमबर्ग.
4. लैंडरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन.
5. रोवरः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन. 
6. रिटर्नः अमेरिका, सोवियत संघ और चीन.
7. क्रूः अमेरिका. 

Advertisement
US Apollo 17 Mission
इकलौता अमेरिका ही ऐसा देश है, जिसने अपने 24 अंतरिक्षयात्रियों को चांद की सैर कराई है. (फोटोः NASA)

कितने देशों ने कराई सॉफ्ट लैंडिंग

अमेरिकाः 2 जून 1966 से 11 दिसंबर 1972 के बीच अमेरिका ने 11 बार चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग कराई. इसमें सर्वेयर स्पेसक्राफ्ट के पांच मिशन थे. छह मिशन अपोलो स्पेसक्राफ्ट के थे. इसी के तहत नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर पहला कदम रखा था. जिनके बाद 24 अमेरिकी एस्ट्रोनॉट्स चांद पर गए. अमेरिका का पहला लैंडर चंद्रमा पर 20 मई 1966 में उतरा था. रूस के लैंडर के उतरने के तीन महीने बाद.

ये भी पढ़ेंः Chandrayaan-3 Difficulties: रास्ते में किस तरह की समस्याएं आएंगी चंद्रमा तक पहुंचने में

रूस (तब सोवियत संघ): 3 फरवरी 1966 से 19 अगस्त 1976 के बीच आठ सॉफ्ट लैंडिंग वाले लूना मिशन हुए. जिसमें लूना-9, 13, 16, 17, 20, 21, 23 और 24 शामिल हैं. रूस कभी भी चांद पर अपने अंतरिक्षयात्रियों उतार नहीं पाया. 3 फरवरी 1966 में लूना-9 चांद पर उतरने वाला पहला मिशन था. लूना के दो मिशन चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर भी वापस आए. 

China's Moon Mission
चीन भी तीन बार चंद्रमा के अलग-अलग स्थानों पर करवा चुका है सॉफ्ट लैंडिंग. (फोटोः रॉयटर्स)

चीनः भारत के इस पड़ोसी देश ने 14 दिसंबर 2013 को पहली बार चांद पर चांगई-3 मिशन उतारा. 3 जनवरी 2019 को चांगई-4 मिशन उतारा. 1 दिसंबर 2020 को तीसरा मिशन चांगई-5 उतारा. इसमें से आखिरी वाला रिटर्न मिशन था. यानी चांद से सैंपल लेकर आने वाला. 

Advertisement

दक्षिणी ध्रुव के आसपास लैंडिंग कठिन

चंद्रमा का साउथ पोल यानी दक्षिणी ध्रुव चुनौतियों से भरा है. वहां लैंडिंग काफी मुश्किल है. लेकिन हमारा चंद्रयान-3 उसके अंधेरे में नहीं उतरेगा. वह उसके पास मौजूद रोशनी वाले इलाके में उतरेगा. ताकि वह सूरज की ऊर्जा से 14 दिनों तक काम कर सके. हालांकि वहां पर तापमान में काफी तेजी से बदलाव होता है. अधिकतम 100 डिग्री सेल्सियस से ऊपर और न्यूनतम माइनस 200 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है. ऐसे में चंद्रयान-3 के यंत्रों को सुरक्षित रखने के लिए सूरज की रोशनी जरूरी है. 

चंद्रयान-3  को चांद पर जाने में इतना समय क्यों लगता है?

Advertisement
Advertisement