16 दिनों तक लगातार मजदूरों तक पहुंचने के लिए भारी-भारी मशीनें. ऑगर ड्रिलिंग मशीन. सामने से खनन. ऊपर से रेस्क्यू टनल बनाने का प्रयास. लेकिन सफलता हासिल की रैट-माइनर्स (Rat Miners) ने. यानी वो खनन एक्सपर्ट जो हाथों से खुदाई करते हैं. उनके काम को रैट-होल माइनिंग (Rat-hole Mining) कहते हैं. यानी मैन्यूअल ड्रिलिंग.
यह वही रैट माइनर्स हैं, जिन्हें 2014 में मेघालय में प्रतिबंधित कर दिया गया. लेकिन आज इन्हीं की वजह से 41 मजदूरों के एकदम नजदीक पहुंचा जा सका. सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग का हिस्सा धंसने के बाद से लगातार कई सरकारी एजेंसियां, इंटरनेशनल एक्सपर्ट और आधुनिक मशीनें लगाई गईं. हर किसी का अपना-अपना काम था. अपनी-अपनी तकनीक थी.
हॉरीजोंटल यानी सामने से और वर्टिकल यानी सुरंग के ऊपर से रेस्क्यू के लिए छह योजनाओं पर काम किया गया. ड्रिलिंग तीन स्थानों से की गई. मशीनों की वजह से खाना-पानी और अन्य जरूरी चीजें मजदूरों तक पहुंच पाईं. लेकिन रेस्क्यू पाइप मजदूरों तक नहीं पहुंच पा रही थी. तब आए रैट-माइनर्स. उन्होंने आखिरी 10 से 13 मीटर की खुदाई हाथों से की. बिना किसी मशीन की मदद से. आमतौर पर ये रैट माइनर्स कोयले की खदानों में खनन करते हैं.
जहां नहीं पहुंच पाई ऑगर मशीन, वहां पहुंचे रैट माइनर्स
आखिरी के 10-13 मीटर में ऑगर मशीन से खुदाई संभव नहीं हो रही थी. तब सात रैट-माइनर्स की टीम ने सुरंग में रैट होल माइनिंग तकनीक अपना कर काम को पूरा किया. ये रैट माइनर्स पतले और हॉरीजोंटल खदानों से कोयला निकालने में माहिर होते हैं. ये तीन से चार फीट गहरे गड्ढे खोदकर उसके अंदर गहराई में खनन करते चले जाते हैं. फिर एक इंसान अंदर घुसकर कोयला निकालता रहता है. इसके लिए खुर्पी, फावड़ा, हथौड़े, तस्ले जैसे औजारों की मदद लेते हैं.
कैसे करते हैं रैट-माइनर्स अपना काम?
रैट माइनर्स अपने हाथ में छोटे फावड़े और हथौड़े लेकर खुदाई करते हैं. निकलने वाले मलबे को छोटे तस्ले या ट्राली के जरिए बाहर निकालते हैं. अगर छोटे औजारों से खनन नहीं हो पाता तो वो ड्रिलिंग मशीन का इस्तेमाल करते हैं. ऑक्सीजन मास्क, प्रोटेक्टिव ग्लास पहन कर जाते हैं. साथ ही पाइप में ब्लोअर चलाया जाता है. ताकि हवा का सर्कुलेशन बना रहे. इससे पहले इन रैट-माइनर्स ने दिल्ली और अहमदाबाद में ये काम किया है. इन रैट-माइनर्स ने कहा कि वो सुरंग में फंसे मजदूरों की तरह ही हैं. हम उन्हें बाहर निकालना चाहते हैं. हम भी तो किसी दिन फंस सकते हैं. वो हमारी मदद करेंगे.
अब तक सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग में क्या-क्या हुआ?
1. 12 नवंबर 2023 में सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग में एक हिस्सा धंस गया. मलबा 60 मीटर तक फैला ता. वहां काम कर रहे 41 मजदूर टनल में फंस गए. फिर राज्य और केंद्र सरकार ने उन्हें निकालने का रेस्क्यू मिशन शुरू किया.
2. शुरूआत में 900 मिलिमीटर व्यास वाली पाइप को मलबे के पार ले जाने का प्रयास किया गया. साथ ही साथ अन्य रेस्क्यू प्लान पर भी काम चल रहा था.
3. सुरंग में जिस जगह मजदूर फंसे थे, वह करीब 8.5 मीटर ऊंचा है. करीब 2 किलोमीटर लंबा है. यह सुरंग के अंदर निर्मित हिस्सा है. जिसकी वजह से मजदूर अब तक सुरक्षित रहे. वहां पर पानी और बिजली की सप्लाई सुरंग के दूसरे हिस्से से होती रही.
4. रेस्क्यू के लिए पांच एजेंसियां - ONGC, SJVNL, RVNL, NHIDCL और THDCL को लगाया गया. हर एक के जिम्मे अलग-अलग काम लेकिन सब मिलकर काम करने लगे. ताकि रेस्क्यू आसानी से किया जा सके.
5. 22 नवंबर को आधी रात के बाद ऑगर ड्रिलिंग मशीन ने काम शुरू किया लेकिन थोड़ी देर बाद झटका लगा. मशीन लेटिस गर्डर रिब में जाकर फंस गया. यह धातु से बनी सुरंग की पसली जैसी आकृति होती है.
6. लेटिस गर्डर रिब को गैस कटर से काटा गया. इसके बाद ऑगर मशीन 1.8 मीटर और अंदर भेजी जा सकी. लेकिन एक्सपर्ट्स को हल्के भूकंपीय झटके महसूस हो रहे थे. तो ड्रिलिंग बंद करा दी गई.
7. एक्सपर्ट्स ने देखा कि ड्रिलिंग के समय पाइप का मुड़ा हुआ हिस्सा भी ऑगर मशीन से टकरा रहा है, जिसकी वजह से कंपन महसूस हो रही है. अगले पांच दिनों तक ऑगर मशीन से 46.9 मीटर की ड्रिलिंग की गई. पाइप लगाई गई.
8. 27 नवंबर को ऑगर मशीन फिर धातु की वस्तु से टकराकर फंस गई. तब उत्तर प्रदेश के झांसी से बुलाए गए सात रैट माइनर्स की टीम ने 28 नवंबर की दोपह तक छोटे औजारों की मदद से आखिरी के 10-13 मीटर की खुदाई की.
मेघालय में रैट-माइनर्स पर लगा है प्रतिबंध
साल 2014 में रैट माइनर्स पर मेघालय सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने भी 2021 में 30 कोयला मजदूरों के खदान में फंसने के बाद रैट माइनर्स पर अस्थाई प्रतिबंध लगाया था. इस हादसे में 15 मजदूरों की जान चली गई थी. इसके बाद गुवाहाटी हाई कोर्ट की शिलॉन्ग बेंच ने मामला अपने हाथ में लिया. फिर उसे NGT को ट्रांसफर कर दिया.
अप्रैल 2014 में एनजीटी ने मेघालय सरकार को आदेश दिया कि वह तत्काल सभी अवैध रैट-होल माइनिंग एक्टीविटी को रोके. यह एक गैरकानूनी और अवैज्ञानिक तरीका है खनन का. इस प्रतिबंध की वजह से मेघालय में अवैध खनन पर रोक लग गई.