अक्सर सर्दियों में हम लोग धूप सेकते हैं, जो हल्की हो तब तो बहुत अच्छी लगती है, लेकिन तेज धूप में बाहर रहने से अक्सर सनबर्न हो जाता है. यानी तेज धूप से त्वचा का रंग बदल जाता है, जिसे हम टैनिंग कहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह असल में एक तरह का रेडिएशन बर्न हैं?
सूर्य की रोशनी एक तरह की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन है, जिसके साथ रेडियो वेव्स, माइक्रोवेव्स और रेडियोएक्टिव वेव्स भी होती हैं. अंतरिक्ष से होते हुए जब सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर पहुंचती है, तब वेवलेंथ के आधार पर इसकी रेडिएशन तरह की हो जाती है- अल्ट्रावॉयलेट ए (UVA) और अल्ट्रावॉयलेट बी (UVB).
धूप कम मिले तो फायदेमंद होती है, इससे शरीर के लिए ज़रूरी पोषक तत्व विटामिन डी बनता है लेकिन अति तो हर चीज़ की बुरी होती है. ज़्यादा धूप UVA रेडिएशन से बनी होती है, जिसमें ज़्यादा हानिकारक UVB किरणों की तुलना में कम ऊर्जा होती है.
UVA किरणों से सनबर्न की संभावना कम होती है, लेकिन ये त्वचा से होते हुए शरीर में गहराई तक प्रवेश कर सकती हैं और धीरे-धीरे त्वचा ढीली लगने लगती है. जबकि, UVB किरणों में ऊर्जा ज़्यादा होती है जो त्वचा को तुरंत नुकसान पहुंचा सकती है.
धूप त्वचा को कैसे नुकसान पहुंचाती है?
UV रेडिएशन के ज़रिए त्वचा के अणुओं, जैसे डीएनए, वसा, प्रोटीन आदि में ऊर्जा जाती है, जिससे त्वचा को नुकसान पहुंचाता है. ये अणु, जो पहले से ही सही अरेंजमेंट में हैं, इस ऊर्जा को अवशोषित करते हैं. अगर अणु ज्यादा ऊर्जा अवशोषित करते हैं, तो उन्हें एक साथ रखने वाले बॉन्ड टूट सकते हैं और उनका आकार बदल सकता है.
यूवी रेडिएशन से DNA को भी नुकसान पहुंचता है. डीएनए एक विशाल अणु है और असल में काफी नाजुक भी है. जब डीएनए का एक अणु एक कोशिका में मौजूद होता है, तो यह एक ज़िप जैसा दिखता है. इसमें दो स्ट्रैंड होते हैं, हर स्ट्रैंड विपरीत दिशा में संबंधित अणुओं से कसकर बंधे होते हैं, जिन्हें बेस कहा जाता है.
ये बेस चार तरह के होते हैं- एडेनिन, गुआनिन, साइटोसिन और थाइमिन. थाइमिन और साइटोसिन आगे-पीछे होते हैं. जब सूरज की रोशनी इन वर्गों से टकराती है, तो थाइमिन और साइटोसिन चेन के दूसरी तरफ से हिल जाते हैं और एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं और डीएनए कोड अचानक टूट जाता है. और अगर यह डीएनए सेक्शन कोई प्रोटीन बनाता होगा, तो अब यह सही प्रोटीन नहीं बना पाएगा.
ये तो अच्छा कि कोशिका के पास ऑटो-करेक्ट अणुओं की अपनी छोटी आर्मी होती है जो अंदर जाकर टूटे हुए डीएनए खंड को ठीक कर सकती है. लेकिन अगर आप तेज धूप में बाहर होते हैं तो यह प्रक्रिया बहुत बड़े लेवल पर होती है और तब ये ऑटो-करेक्ट सही से काम नहीं पाता.
When you get a sunburn, when the damage to the DNA of the cells cannot be repaired, your skin cells essentially "commit suicide" through a process called apoptosis to prevent turning into cancer cells
— Massimo (@Rainmaker1973) January 16, 2023
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अगर कोई कोशिका बहुत ज्यादा डेमेज हो जाती है, तो उसका अपना ऑटो-डिलीट फ़ंक्शन भी होता है. तब इनमें एपोप्टोसिस (apoptosis) नाम की प्रक्रिया होती है और ये सेल आत्महत्या कर लेती है. यह सुनने में अजीब लगता है, लेकिन ज्यादा डेमेज वाली कोशिकाएं जमा हो जाती हैं और जल्द ही त्वचा वैसी नहीं रहती जैसी वह पहले थी. त्वचा पर झुर्रियां आ जाती हैं.
ऑटो-डिलीट फ़ंक्शन के लिए आपके खुद के डीएनए कोड करता है और अगर आपके डीएनए का उसी भाग को नुकसान पहुंचा है तो ऑटो-डिलीट नहीं होगा. सेल खुद को नहीं मारेगा और यह बेहिसाब बढ़ना शुरू कर सकता है. स्किन कैंसर ऐसे ही बनता है.