इस साल का जून और अगस्त महीना भारत के इतिहास का दूसरा सबसे गर्म मौसम वाला था. 1970 से सैटेलाइट डेटा जमा किया जा रहा है. तब से लेकर अब जितनी बार भी इन दो महीनों गर्मी ज्यादा पड़ी है. इस साल दूसरी बार ऐसा हुआ कि जब गर्मी ने जून और अगस्त में सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.
क्लाइमेट सेंट्रल की स्टडी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन का असर सिर्फ दुनिया पर ही नहीं बल्कि भारत पर भी पड़ रहा है. इस संस्था ने क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (CSI) और तापमान में आने वाले बदलावों का एनालिसिस करके यह स्टडी की. पता चला कि देश में इस साल जून-अगस्त में दूसरा सबसे गर्म मौसम था.
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जून से लेकर अगस्त तक 29 दिन भयानक गर्मी थी. तीन बार गर्मी सिर्फ जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ी. इन तीन महीनों में करीब 60 दिन तक 2 करोड़ से ज्यादा भारतीयों ने जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़े तापमान का सामना किया है. इस वजह से भारत को दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा गर्मी से प्रभावित होने वाला देश कहा गया.
42.6 करोड़ लोगों ने सात दिनों तक सही भयानक गर्मी
देश की करीब 138 करोड़ की आबादी में से 42.6 करोड़ लोग जानलेवा गर्मी का सामना सात दिन तक करते हैं. यानी पूरी आबादी का एक तिहाई. 11.2 करोड़ से ज्यादा लोगों ने पूरे एक महीने हीटवेव का सामना किया है. कई शहर तो जलवायु परिवर्तन की वजह से पैदा होने वाली गर्मी के भयानक शिकार हुए. जैसे- तिरुवनंतपुरम, थाणे, मुंबई, वसई-विरार, कवरत्ती और पोर्ट ब्लेयर.
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इन शहरों या इलाकों में क्लाइमेट चेंज की वजह से कम से कम तीन दिन तक भयानक गर्मी रही. मुंबई ने इस बार 54 दिन चरम गर्मी देखी. कानपुर और दिल्ली ने 39 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान लगातार कई हफ्तों तक देखा.
क्या चीज हैं CSI?
CSI से जलवायु परिवर्तन की वजह से तापमान पर पड़ने वाले असर को मापा जाता है. इसके 1 से 5 तक लेवल हैं. अगर 2 अंक है तो इसका मतलब मीन टेंपरेचर दोगुना है. ये तुलना उस समय से की जाती है, जब इंसानों की वजह से क्लाइमेट नहीं बदला था.