भारत लगातार अपनी बढ़ती आबादी से जूझ रहा है. पर एक डराने वाली खबर भी आई है. 2050 तक भारत में कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) मात्र 1.29 रह जाएगा. अभी यह 1.91 है. 1950 में यह 6.18 था. यानी उस समय प्रति महिला 6.18 बच्चे थे.
आशंका ये भी है कि इस सदी के अंत तक प्रजनन दर घटकर 1.04 हो जाए. यह खुलासा अंतरराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में हाल ही में प्रकाशित हुआ है. किसी भी देश का प्रजनन दर वहां रहने वाली 15 से 49 साल की महिलाओं द्वारा पैदा किए जाने वाले बच्चों की संख्या पर निकाली जाती है. सिर्फ वही बच्चे जो जीवित हैं.
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सिर्फ भारत की प्रजनन दर कम नहीं हो रही है. दुनियाभर में ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है. वैश्विक स्तर पर भी पिछले 70 सालों में प्रजनन दर घटकर आधी रह गई है. 1950 में वैश्विक स्तर पर प्रजनन दर 4.8 से अधिक थी. 2021 में यह आंकड़ा घटकर औसतन 2.2 बच्चे प्रति महिला रह गया.
1950 से 2014 तक बढ़ी, 2021 में शुरू हुआ घटाव
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2050 तक यह आंकड़ा 1.8, जबकि सदी के अंत तक 1.6 पर पहुंच जाएगा. इसके लिए ग्लोबल वॉर्मिंग, क्लाइमेट चेंज, लाइफस्टाइल और आहार में गड़बड़ी जिम्मेदार हैं. 1950 में 9.3 करोड़ जीवित बच्चे पैदा हुए थे.
2014 तक यह आंकड़ा 14.2 करोड़ हो गया. लेकिन 2021 में इसमें गिरावट आई. यह घटकर 12.9 करोड़ रह गया. फिलहाल भारत दुनिया की सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है.लेकिन देश में प्रजनन दर में तेजी से गिरावट आ रही है. आने वाले कुछ दशकों में देश की आबादी बढ़ने की बजाय घट सकती है.
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बच्चों की सही मात्रा देश में बनाती है आबादी का संतुलन
घटती प्रजनन दर का असर देश की आबादी में मौजूद संतुलन पर पड़ेगा. आबादी में बच्चों, जवानों और बुजुर्गों के बीच संतुलन जरूरी है. इसलिए प्रजनन दर 2.1 के आसपास रहना जरूरी है. इससे देश में बच्चों और वयस्कों का संतुलन बना रहता है. लेकिन यह अभी जरूरी स्तर से काफी नीचे हैं. ऐसे में बुजुर्गों की संख्या बढ़ जाएगी.
यानी देश में श्रमिकों की कमी होगी. भारत ऐसा अकेला देश नहीं है जहां प्रजनन दर में गिरावट आने से आबादी का संतुलन बिगड़ेगा. दुनिया के आधे से अधिक यानी 204 में से 110 देशों में प्रजनन दर 2.1 से कम है. ऐसी ही स्थिति रही तो सदी के अंत तक 97% देश घटते प्रजनन दर से परेशान होंगे.
दुनियाभर के बच्चों के लिए है चिंता के कई अन्य मुद्दे
यह स्टडी इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) के वैज्ञानिकों ने किया है. स्टडी के लिए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के आंकड़ों को लिया गया है. आने वाले दशकों में ज्यादातर बच्चे दुनिया के कुछ सबसे संसाधन-सीमित क्षेत्रों में पैदा होंगे. सदी के अंत तक दुनिया के 77% से अधिक जीवित बच्चे निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में जन्म लेंगें.
यह देश पहले ही अनगिनत सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, गरीबी, आहार की कमी, कुपोषण, स्वास्थ्य, साफ पानी, स्वच्छता जैसी समस्याएं शामिल हैं. यदि इन देशों में आबादी बढ़ती है, तो इन समस्याओं का सामना करने के लिए पहले से तैयार रहने की जरूरत होगी.